काव्य मे व्यंजना व्यापार कथ्य को ह्रदय से जोड़कर सुगम्य बनाती है : आचार्य शास्त्री
सागर। जमुना फाउंडेशन एवं आर्य परिषद के द्वारा पंडित नर्मदा प्रसाद तिवारी स्मृति प्रसंग के तहत कालिदास एकादमी से राज्य स्तरीय भोज पुरस्कार प्राप्त प्रो आचार्य बाल कृष्ण शर्मा ने मुख्य अतिथि के रुप मे शास्त्र और लोक का अंत: संबंध शरीर और आत्मा के स्वरूप मे प्रतिपादित करते हुए काव्य मे व्यंजना व्यापार विषय पर अपना उदबोधन आचार्य पंडित नरेश कुमार त्रिपाठी पुण्य स्मृति मे समर्पित किया।
प्रख्यात संस्कृत विद्वान धर्म श्री महाविद्यालय के पंडित के. के. सिलाकारी की अध्यक्षता मे आयोजित तत्व बोध व्याख्यान मे पंडित श्री बाल कृष्ण शास्त्री जी ने शब्द को ब्रह्म बताते हुए उसकी उपासना के लिए व्यंजना व्यापार को महत्वपूर्ण साधन बताते हुए इसे मानव इतिहास के लिए आदि काल से सभ्यता विकास क्रम का मील का पत्थर निरुपित किया।
धर्म श्री संस्कृत महाविद्यालय सागर के सभागार मे आयोजित तत्व बोध व्याख्यान के इस आयोजन का शुभारम्भ माँ सरस्वती जी के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से किया गया!! अतिथियों का स्वागत पंडित भुवनेश्वर प्रसाद तिवारी, श्रीमती श्री देवी त्रिपाठी द्वारा किया गया श्री बृजेश त्रिपाठी ने स्वागत उदबोधन दिया जबकि कार्तिकेय तिवारी ने रुपरेखा प्रतिवेदित की।
धर्म श्री महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य श्री खम्परिया ने विषय प्रतिवादित करते हुए अविधा लक्षणा व्यंजना की सरल उदाहरणो से व्याख्या करते हुए काव्य मे इनकी महत्ता को न केवल साहित्य ही बल्कि साधारण बोलचाल लिए अभिन्न बताया। अध्यक्षीय उदबोधन मे श्री सिलाकारी ने व्यंजना पर तुलसीदास जी की रामचरित मानस के उदाहरण देते हुए इसे जन कल्याण के लिए समर्पित बताया।
कार्यक्रम मे कथा वाचक सुश्री राज राजेश्वर, पूर्व प्राचार्य श्री सुख देव तिवारी, धर्म श्री संस्था के सचिव वैद्य घनश्याम दुबे एवं नगर के विभिन्न साहित्य प्रेमी सहित महाविद्यालय के बटुक गण उत्साह पूर्वक उपस्थित रहे। कार्यक्रम मे संस्कृत आचार्यो काश्री फल से स्वागत सम्मान आयोजको द्वारा किया गया आभार आर्य परिषद सागर के ऋषभ भारद्वाज द्वारा व्यक्त किया गया।