मध्यान्ह भोजन के बिलो के भुगतान की ऐवज में रिष्वत लेने वाली आरोपी को 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं दस हजार रूपये अर्थदण्ड

मध्यान्ह भोजन के बिलो के भुगतान की ऐवज में रिष्वत लेने वाली आरोपी को 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं दस हजार रूपये अर्थदण्ड

सागर। मध्यान्ह भोजन के बिलो के भुगतान की ऐवज में रिष्वत लेने वाली आरोपी कीर्ति जैन को विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर म.प्र श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने दोषी करार देते हुये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7 के अंतर्गत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं दस हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है।मामले की पैरवी प्रभारी उप-संचालक (अभियोजन) श्री धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्षन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी श्री लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।

घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है दिनांक 27.02.2020 को आवेदक हीरालाल चौरसिया ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त सागर को सम्बोधित करते हुये एक शिकायत/आवेदन इस आशय का दिया कि फरियादिया ग्राम सहजपुर में 03 आंगनबाड़ी केन्द्रों का मध्यान्ह् भोजन समूह लक्ष्मी बचत समूह चलाती है व समूह की अध्यक्ष है, जब उक्त समूह के फरवरी माह बिल भुगतान हेतु अभियुक्त से मिली, तो अभियुक्त ने 5,000/-रु. (पांच हजार रुपये) रिश्वत की मांग की, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहती थी, बल्कि रंगे हाथ पकड़वाना चाहती है। जिस कारण उसने अभियुक्त के विरुद्ध लोकायुक्त कार्यालय, सागर में शिकायत के लिये आवेदक हीरालाल चौरसिया को लिखित सहमति देकर कार्यवाही करने हेतु अधिकृत किया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वि. पु.स्था. लोकायुक्त कार्यालय, सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्यवाही हेतु निरीक्षक मंजू सिंह को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकॉर्डर दिया गया इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकॉर्ड करने हेतु निर्देशित किया तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मॉग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्यवाहियॉ की गई एवं टेªप कार्यवाही आयोजित की गई । नियत दिनॉक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राषि दी गई व आवेदक का इषारा मिलने पर टेªपदल ने मौके पर पहुंचकर अभियुक्त को घेरे में लिया। आवेदक से रिश्वत राशि के संबंध में पूछा, तो उसने अभियुक्त द्वारा उससे रिश्वत राशि हाथ में लेकर अपने साथ में लिये काले रंग के पिट्ठू बैग में रख लेना बताया, अभियुक्त से पूछे जाने पर उसने भी ऐसा ही बताया। उक्त आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया।विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किये गये, घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा- 7, का अपराध आरोपी के विरूद्ध दर्ज करते हुये विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेष किया।विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया । जहॉ विचारण उपरांत न्यायालय-विषेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुये उपरोक्त सजा से दंडित किया है ।

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