परिवार में सभी को अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहिए – डॉ. सुश्री शरद सिंह

समकालीन जीवन को समझती स्त्री अनुभूति की कविताएं- डॉ छाया चौकसे

परिवार में सभी को अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहिए – डॉ. सुश्री शरद सिंह

 

सागर। प्रगतिशील लेखक संघ सागर इकाई द्वारा पुस्तक विमोचन समारोह सिविल लाइंस सागर में आयोजित हुआ। मंचासीन अतिथियों, आयोजकों एवं श्यामलम् अध्यक्ष उमाकांत मिश्र, सुधीर श्रीवास्तव ने रचनाकार आराधना खरे द्वारा रचित द्वय पुस्तकों काव्य संग्रह “काव्य रश्मि” एवं कहानी संग्रह “जीवन एक रंग अनेक” का विमोचन किया।
इसके उपरांत आयोजक संस्था एवं अतिथियों द्वारा रचनाकार आराधना खरे को शॉल श्रीफल सम्मान पत्र भेंट करते हुए सम्मानित किया गया।
अपने लेखकीय वक्तव्य में आराधना खरे ने उपस्थित सभी का वंदन अभिनंदन करते हुए बताया कि सूर्य की किरणों में समाये सातों इन्द्रधनुषी रंगों के सदृश्य ज़िन्दगी अगणित विचित्र रंगों से भरी हुई है, मेरे मन-मस्तिष्क के भावों को जब जिस भाव, स्थिति और व्यक्ति ने प्रभावित किया, मैंने उसे ही कलम की स्याही से कागज की सपाट छाती पर शब्दों में पिरोने का प्रयास करते हुए आप सभी साहित्यानुरागियों के सामने प्रस्तुत किया है।

कार्यक्रम के द्वितीय चरण में डॉ छाया चौकसे ने समीक्षात्मक वक्तव्य देते हुए कहा कि आराधना खरे की कविताओं में उनके कोमल, सरल,सहज स्वभाव सहनशील व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट झलकती है, वे जीवन के स्थूल और सूक्ष्म सजीव उपादानों में जीवन की जीवंतता महसूस करती जब अपने भाव प्रकट करती हैं तो यह तो स्पष्ट हो ही जाता है‌ कि उन्होंने अपने जीवन को बड़ी शिद्दत से जिया है।
कला समीक्षक डॉ कविता शुक्ला ने कहा कि श्रीमती आराधना खरे का रचना संसार इंगित करता है कि उनकी कविताओं के भावों की अभिव्यक्ति से हम यह कह सकते हैं कि वे सहज जीवनानुभूति और घर परिवार से आगे बढ़ती समाज और नारी विमर्श की लेखिका बनने की सम्पूर्ण सम्भावनाऐं रखती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार समालोचक पी आर मलैया ने आराधना खरे की, कहानियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल एक कहानी का प्रवक्ता पुरुष है, शेष सभी कहानियों की प्रवक्ता स्त्री है और इन सब कहानियों में दैनंदिन जीवन का स्त्री विमर्श है, स्त्री मनोविज्ञान की दृष्टि से सभी कहानियां अच्छी हैं।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नगर व देश की प्रख्यात साहित्यकार डॉ सुश्री शरद सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि परिवार में सभी को अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहिए, तब ही सभी में समर्पण की भावना जागृत हो सकती है, आराधना जी की रचनाओं में घर का जिस तरह मानवीयकरण करते हुए एक बालक की आकांक्षाओं का चित्रण किया है वह अद्भुत है। उनसे अपेक्षा है कि आगामी वर्ष में उनकी अन्य कृतियां प्रकाशित होंगीं।
कवि मुकेश तिवारी के सस्वर मधुर स्वागत गीत ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया, प्रतीक श्रीवास्तव, श्रीमती ऊषा जैन ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रलेस के महासचिव एडवोकेट पेट्रिस फुसकेले ने रचनाकार आराधना खरे के अभिनंदन पत्र का वाचन किया।
डॉ मनोज श्रीवास्तव ने सफल व प्रभावी संचालन करते हुए अनेक नई नई जानकारियां दी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में टीकाराम त्रिपाठी ने आराधना खरे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके साहित्यिक जगत की चर्चा की और नये रचनाकारों को परामर्श दिया कि वे रचना लिखने से पहले इस तथ्य का अभिज्ञान कर लें कि जो साहित्य में अछूते विषय हैं उन पर अपने प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से नये आयाम रचें। कवियों के लिए लिखी हुई शब्द दर्पण कविता के द्वारा कविता के व्याकरण, लय और प्रवाह पर जोर देते हुए व्याख्या की।
अंत में प्रलेस इकाई सागर के सहसचिव डॉ एम के खरे ने उपस्थित सभी का आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर डॉ गजाधर सागर, मुन्ना शुक्ला, कुंदन पाराशर, के एल तिवारी अलवेला, वीरेन्द्र प्रधान, स्वाति हलवे, दिनेश साहू, कपिल बैशाखिया, प्रफुल्ल हलवे, वृन्दावन राय सरल, ज ल राठौर, प्रभात कटारे, शिव नारायण सैनी, पी एन मिश्रा सहित रचनाकार खरे के परिजनों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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