पिता के कच्चे मकान और भाई बहनों के लिए आरती बेटे से बड़कर साबित हुई

आज में आपको कहि सुनी नही बल्की एक सच्ची दास्तां बताने वाला हूँ ,मप्र के सागर जिले में केसली ब्लॉक का यह विश्कर्मा परिवार जिसकी माली हालत ठीक न थी पर 6 भाई बहनों में से आरती ने सारा घर कैसे सम्हाला देखिए
सागर 23 जून 2019/ म.प्र. डे- राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन सागर इकाई के अंतर्गत संचालित डीडीयू-जीकेवॉय (दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौषल्य योजना) ने इस बेटी के जीवन में परिवार की जिम्मेदारी निभाने का जज्बा पैदा किया। ग्राम इंदलपुर ग्राम पंचायत नारायणपुर, विकासखण्ड केसली की कुमारी आरती विश्वकर्मा पिता राजाराम विश्वकर्मा अपने छः भाई बहिनो में दूसरे नंबर पर जन्मी आरती ने बायलॉजी से बीएससी तक की पढ़ाई की। पिता शादी विवाह के ऑर्डर से परिवार की रोजी-रोटी चलाते हैं। अपनी पांच बेटियों और सबसे छोटे बेटे की पढ़ाई लिखाई, भोजन के खर्च को पूरा करने के लिए उनके पास साल भर पर्याप्त ऑर्डर नहीं होते।
इस कारण गरीबी और अभाव से जूझता परिवार केवल पेट पालने की मशक्कत में ही जुटा रहता है। सयानी हो चली बेटियों को देखकर राजाराम की चिंता और बढ़ने लगी। अपने पिता की मजबूरी और परेशानी को कम करने का सपना लेकर निकलीं आरती ने मिशन के अंतर्गत फनमेे ब्वतच स्जक में रिटेल सेल्स विषय पर सघन प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के तत्काल बाद उन्हें अहमदाबाद में रिलाइंस मॉल में प्रमोटर के पद पर नियुक्ति मिल गई। नौकरी की पहली तनख्वाह 8200 रूपये थी लेकिन अपने काम की निपुणता के कारण आज वे तरक्की कर सुपरवाइजर बन गईं है और प्रतिमाह 20 हजार रूपये से अधिक वेतन प्राप्त करती हैं।
कच्चे और सीलन भरे मकान में रहते भाई-बहिनों के दर्द को कम करने के लिए आरती ने अपने पिता की मकान निर्माण में 45 हजार रूपया देकर मदद की। बड़ी बहिन की शादी के लिए आरती ने 1 लाख रूपया नगद जोड़ रखा है। पिता अब सुयोग्य वर की तलाश में निकले हैं।
आरती दूर शहर में अपने को अकेला महसूस करती थीं परिवार की याद आती थी कभी तो मन करता की नौकरी छोड़कर घर चले जाये पर जिम्मेदारी के एहसास ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। अपने अकेलेपन को दूर करने का आरती ने नया तरीका निकाला उसने अपनी एक बहिन को भी रिलायंस मॉल में नौकरी दिला दी। अब घर में दो हाथ कमाने वाले हो गये और दोनों बहिनें साथ रहकर एक दूसरे का संबल बन गई। उसकी बहिन को भी 17 हजार रूपया वेतन मिलता है। अब वे गांव की शर्माती सकुचाती युवती नहीं बल्कि एक आत्मविश्वासी सेल्स एक्ज्यूकेटिव हैं।
परिजनों का कहना हैः-
हमाई मौडि़यों ने मौड़ौं से भी ज्यादा घर की मदद करी है। अब हमें लगत है कै पांच बीटियें ज्यादा भारी नईयां, आज वे मौड़ौं से ज्यादा हमाये लाने सहारो दये हैं………………..।
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