किसानों की मेहनत से संस्कृति और स्वास्थ्य दोनों का ही संरक्षण होता है – दिवाकर सिंह राजपूत
सागर। “मोटा अनाज को श्री अन्न भी कहते हैं क्योंकि वह स्वास्थ्य, संस्कृति और प्रकृति तीनों के संरक्षण में सहयोगी होता है. गाँवों में लोगों ने मोटा अनाज के साथ ही भारत को भी जीवंत बना रखा है. किसानों की मेहनत और समाज की जागरूकता से नयी राह बनती है. जरूरी है कि हम सब मिलकर परंपरागत ज्ञान को जीवंत बनाएँ.” यह विचार दिए प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने किसान सम्मेलन एवं फूड फैस्टिवल के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित अतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए. प्रो राजपूत ने कहा कि इस तरह के किसान सम्मेलन और फूड फेस्टिवल लोगों में जागरूकता और रूचि पैदा करने में सहायक होते हैं.
साफबिन परियोजना और केरीतास के साथ मानव विकास सेवा संघ की अकादमिक अनुसंधान परक गतिविधियों के संचालन से अनेक गाँव के किसान परिवारों को लाभ मिल रहा है. आज के फूड फेस्टिवल में किसानों और स्व सहायता समूहों ने मोटे अनाज उत्पादन और भोजन के स्टॉल लगाए
उद्घाटन समारोह में डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के डीन एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत, मेंगलुरु से आये श्री अनिल, कृषि अनुसंधान केंद्र सागर से डॉ तिवारी एवं डॉ ममता, उद्यानिकी विभाग से डॉ भदौरिया आदि ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में सागर विश्वविद्यालय के छात्रों, विभिन्न गांवों के किसानों और ग्रामवासियों आदि ने सहभागिता की. मानव विकास सेवा संघ के डायरेक्टर श्री फिलिप ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए स्वागत भाषण दिया. कार्यक्रम का संचालन श्री दिनेश नामदेव ने किया।