काल भैरव अष्टमी पर हुआ पूजन हवन अनुष्ठान महा आरती के साथ काल भैरव को लगा मदिरा भोग
सागर। देव काल भैरव की सागर जिले की सबसे ऊंची प्रतिमा (4 फीट) सागर शास्त्री वार्ड के जय मां हरसिद्धि माँ ललित धाम में विराजमान है।
शास्त्री वार्ड में सिद्ध श्री क्षेत्र जय मां हरसिद्धि मां ललिता धाम में स्थापित भगवान शिव के रूद्र अवतारी काल भैरव जी अष्टमी के उपलक्ष में भगवान काल भैरव जी का हवन पूजन अनुष्ठान और महा आरती आयोजित की गई l तत्पश्चात भगवान जी को भोग में उरद दाल से निर्मित बरा मंगोड़ी इमरती काली तिल मदिरा एवं अन्य फल मिष्ठानों का भोग लगाया और भगवान काल भैरव जी से समस्त भक्तों के कल्याण की कामना की l पुजारी अंकित सनकत ने बताया की यह मंदिर सागर शहर का सबसे सुप्रसिद्ध भगवान काल भैरव मंदिर है जो कि खुरई रोड शास्त्री वार्ड में स्थित है जहां भगवान काल भैरव जी की लगभग 4 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है प्रतिमा एकदम विकराल स्वरूप में है जिसकी एक हाथ में बज्र दूसरे हाथ में ब्रह्मा जी का कटा हुआ सर तीसरे हाथ में डमरू चौथे हाथ में गदा है गले मे नाग साथ ही भगवान काल भैरव की सवारी श्वान उनके साथ में है प्रतिमा अत्यंत ही मनमोहन और भक्तो का मन आकर्षित करने वाली जिसके दर्शन के लिए दूर दराज से लोग प्रतिदिन आते हैं और मनवांछित फल प्राप्त करते हैं l
धाम संस्थापक राकेश सनकत ने बताया कि काल भैरव की उत्पत्ति एक धार्मिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा ने स्वयं को शिव से भी बड़ा बताया तो भगवान शिव ने उनका अहंकार समाप्त करने का निश्चय किया l
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने क्रोध से कालभैरव का अवतार लिया l यह अवतार अत्यंत भयंकर और बलशाली था l कालभैरव क्रोध में तुरंत ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनके पांच मुखों में से एक को काट दिया यह मुख ब्रह्मा के घमंड और अहंकार का प्रतीक था इस घटना के बाद ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी l लेकिन ब्रह्मा का सिर काटने की वजह से कालभैरव को ब्रह्महत्या दोष लग गया इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कालभैरव को काशी पहुंचने का आदेश दिया गया काशी पहुंचने पर उनका दोष समाप्त हो गया इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। तब से कालभैरव को काशी का रक्षक और न्याय के देवता माना जाता।
खबर के लिए संपर्क करें वाट्सएप 9302303212