मनोकामना पूर्ण होने पर दहकते अंगारों से नंगे पैर निकलते हैं यहां श्रद्धालु 

मनोकामना पूर्ण होने पर दहकते अंगारों से नंगे पैर निकलते हैं यहां श्रद्धालु 

400 वर्षों से श्रीदेव खंडेराव मेले का किया जा रहा आयोजन

सागर। देवरी नगर में श्री देव खंडेराव जी के मंदिर में प्रतिवर्ष लगता है भव्य मेला जहां पर मनोकामना पूर्ण होने पर आग के अंगारों से निकलते है श्रृद्धालु। इसी क्रम मे हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 18 दिसंबर दिन सोमवार को प्रथम दिवस 135श्रद्धालु श्री देव खंडेराव मंदिर प्रांगण मे दहकते अंगारों से नंगे पैर निकले ।श्रद्धालुओं की मनौती पूर्ण होने पर आग के अंगारों के बीच से निकलते है।

सागर से दक्षिण में 65 किलोमीटर व नरसिंहपुर से उत्तर में 75 किलोमीटर दूरी पर सागर,नरसिंहपुर मार्ग पर देवरी कलां में स्थित है यह प्रचीन भव्य व ऐतिहासिक आलोकिक मंदिर यहां प्रति वर्ष अगहन शुक्ल में चम्पाछठ से पूर्णिमा तक दिसंबर माह मे मेला लगता है। इस दिव्य मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है यहाँ षष्ठी से पूर्णिमा तक भक्त गण अपनी मनोकामना पूरी होने पर नंगे पैर आग पर से चलते है।

श्रीदेव खंडेराव कथा-  खंडेराव मंदिर का इतिहास और महत्ता के अनुसार प्राचीन समय में मणिचूल पर्वत पर वहां कि प्राकृतिक छठा से मुग्ध होकर ऋषि लोग परिवार सहित वहां वास कर हवन जप व पूजा कर अपनी तपस्या करते थे। इसी बीच वहां मणि व मल्ल नामक दो राक्षसों द्वारा उत्पात मचाकर यज्ञ देवी अपवित्र कर समस्त संतो को घोर यातना देना शुरू कर दिया ऋषिओ ,साधुओं के साथ अत्याचार किया। ऋषियों को गले मे रस्सी बांधकर कूपों में डुबाया इस प्रकार की अनेक यातनायें ऋषियों को देकर  तपस्या विध्वंश कर दी। इस प्रकार पीडि़त संतो ने देवराज इन्द्र की शरण ली व सारा वृतांत देवराज को सुनाया देवराज वृतान्त सुनकर अत्यंत दुखित हुये परंतु इन राक्षसों का वध करने में अपनी असमर्थता जताई उन्होने कहां कि ये दोनों राक्षस ब्राह्रमा से वरदान प्राप्त हैं अतः में इन्हें मारने (वध करने) में असमर्थ हूं। हम और आप सब श्रीहरि की शरण मे जाकर सारा वृतांत सुनायें शायद वे अपनी सहायता कर सके। अतः श्री देव ने यह अवतार धारण किया राजसी वैश धारणकर घोडे पर सवार हुये उसके बाद मल्ल से युद्ध कर उसका वध किया तब उसके द्वारा वरदान मांगा गया कि मेरा नाम आप के साथ जुड़ना चाहियें ताकि मेरा नाम भी अमर रहें आदि। इस प्रकार दोनों राक्षसों को दिये गये वरदान की पूर्ति हेतु श्री देवाअधिदेव महादेव द्वारा राजसी वस्त्र घोड़े की सवारी व गंगा पार्वती का इक्ट्ठा रूप म्हालसा आई के रूप में अपने साथ बिठाकर भक्तों का कल्याण करते हैं आदि।

मणिचूल पर्वत महाराष्ट्र की सीमा पर होने से श्रीदेव उपासक महाराष्ट्र प्रांत में अधिक है। महाराष्ट्र में कुलदेवता के रूप में पूज्य हैं।

-400 सालों से पुरानी है यह परंपरा

आग से निकलने की प्रथा भी मंदिर निर्माण के  समकक्ष है। राजा यशवंत राव जी के एकलोते पुत्र युवराज किसी अज्ञात बीमारी से ग्रसित होकर मरणासन्न स्थिति में थे तब राजा यशवंत राव जी द्वारा देवखंडेराव जी से प्रार्थना कर कहा गया कि आप का दिया हुआ यह पुत्र है। इसकी रक्षा करें उसी रात राजा यशवंत राव जी पुनः श्री देव ने दर्शन  देकर कहां कि तुम मेरे दर्शन में जाकर हल्दी के उल्टे हाथ लगाकर प्रार्थना करों। एक लंबे व चौड़े गड्डे नाव की आकृति के में करीब 1 मन लकड़ी डालकर जलाकर विधि विधान से आपकी पूजा कर ठीक दिन में 12 बजे नंगे पैर आग पर चलूंगा मेरा बेटा ठीक हो जावें। श्री देवी ने उनकी प्रार्थना सुनी व राजा के पुत्र को ठीक किया तब से यह प्रथा प्रारंभ है। जो आज भी चलती जा रही हैं। दस दिन में करीब 1200 के आसपास श्रद्धालु नंगे पैर आग पर चलकर अपनी मनौती पूरी करते है।

देवरी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक सुनील जैन  विगत 32 वर्षों से क्षेत्र की खुशहाली की  मनोकामना को लेकर अग्नि कुंड से निकल रहे हैं सुनील जैन का कहना है की मैं हर वर्ष क्षेत्र की खुशहाली एवं क्षेत्र के हर व्यक्ति की खुशहाली के लिए प्रतिवर्ष अग्निकुंड में से निकल रहा हूं

मंदिर की विशेषता- 

मंदिर के निर्माण की एक बड़ी ही अनोखी विशेषता हैं कि मदिर में बने दक्षिण तरफ के ताक के सूर्य की रोशनी अगहन सुदी षष्टी को ठीक 12 बजे पिण्ड पर पड़ती है जो कि एक दर्शनीय है।

पुजारी के अनुसार- सन् 1850 से वैद्य परिवार के पास मंदिर है जो कि उनकी सेवा करते हैं, मंदिर प्रबंधक नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं, पुजारी का कहना है कि मेले की परंपरा 400 वर्ष पुरानी है और लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है तब श्रद्धालु अंगारों में से निकलते हैं पहले दिन 135 श्रद्धालु अंगारों में से निकली जिसमें महिलाओं की सर्वाधिक संख्या थी।

मनोती माँगना बोलना करना

प्रथा है कि श्री देव मंदिर में हल्दी के उल्टे हाथ लगा अपनी मनोकामना कहे कार्य होने पर हाथ सीधे करना आवश्यक है जो बोलना कि वह पूरा करें नारियल बांधने की प्रथा है ।

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