मध्य प्रदेश सरकार प्राचीन परंपरा, संस्कृति को सहेजने एवं संरक्षित करने का कार्य कर रही है – मंत्री गोविंद सिंह राजपूत

गुड़ी पड़वा एवं हिन्दू नववर्ष का पर्व एक सामान्य त्यौहार नहीं बल्कि नई ऊर्जा, नई उमंग और नए उत्साह का पर्व है
 
मध्य प्रदेश सरकार प्राचीन परंपरा, संस्कृति को सहेजने एवं संरक्षित करने का कार्य कर रही है – मंत्री गोविंद सिंह राजपूत
 
सागर। गुड़ी पड़वा का पर्व एवं हिन्दू नववर्ष एक सामान्य त्यौहार नहीं बल्कि नई ऊर्जा, नई उमंग, नए उत्साह का पर्व है। मध्यप्रदेश सरकार प्राचीन परंपरा, संस्कृति को सहेजने एवं संरक्षित करने का कार्य कर रही है। उक्त विचार खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्री गोविंद सिंह राजपूत ने सागर में महाकवि पद्माकर सभागार में आयोजित विक्रमोत्सव 2025 (सृष्टि आरंभ दिवस, वर्ष प्रतिपदा, विक्रम सम्वत् 2082 के शुभारंभ) – सूर्य उपासना कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस अवसर पर सागर विधायक श्री शैलेंद्र जैन,  नरेंद्र अहिरवार,  पप्पू फुसकेले, कलेक्टर  संदीप जी आर, अपर कलेक्टर रुपेश उपाध्याय, संयुक्त कलेक्टर  आरती यादव, एसडीएम  अदिति यादव, तहसीलदार सुनील शर्मा , जिला शिक्षा अधिकारी अरविंद जैन, महिला बाल विकास अधिकारी बृजेश त्रिपाठी, अन्य अधिकारी सहित बड़ी संख्या में जन समूह उपस्थित था।
मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने सभी प्रदेशवासियों को नव वर्ष और गुड़ी पड़वा तथा चेती चंद की बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज के दिन यह त्यौहार कर्नाटक महाराष्ट्र में होली , दिवाली की तरह मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि इस त्योहार से प्राचीन परंपराओं, संस्कृति को समझने, सहेजने एवं संरक्षित करने का मौका है। हमें अपनी पुरानी संस्कृति और परंपरा को कभी नहीं भूलना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि भारतीय नववर्ष विक्रम संवत् को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त कराने वाले उज्जयिनी के प्रतापी राजा सम्राट विक्रमादित्य की महाविजय और राष्ट्र गौरव की पुनस्थापना का कालजयी अभिनंदन है, जो हमें एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास से भर देता है।
 यह बेमिसाल ताकत उस विक्रम सम्वत् की है, जिसे महाकाल की नगरी उज्जयिनी के पराक्रमी राजा सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी शासकों को देश की सीमाओं से खदेड़कर निर्णायक रूप से विजय को शास्वत करने के उपलक्ष्य में 57 ईसवी पूर्व चलाया था। विडंबना यह है कि भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय पंचांग शक संवत है।
शुद्ध कालगणना अथवा कालक्रम को आधार बनाने की बजाय यदि इतिहास की प्रवृत्तियों और उसके राजनीतिक, भावनात्मक पक्ष को समझें तो विक्रम सम्वत् ही भारत का राष्ट्रीय पंचांग कहलाने का अधिकारी है। वैसे भी लोक इतिहास को अपने ढंग से संजोता और संरक्षित करता है। आज भी हमारे सभी तीज त्यौहार, संस्कार व ज्योतिष गणनाएं ज्यादातर विक्रम संवत् के हिसाब से ही होती हैं न कि शक सम्वत् से। इसका सीधा अर्थ यही है कि आज भी विक्रम संवत् सर्वमान्य है। विक्रम सम्वत् भारत के सभी संवतों में से और आज भी प्रयोग में है। समूचे उत्तर भारत में तो यह जन्म से लेकर अंत तक प्रयुक्त होता है। यह सम्वत् चंद्रमा पर आधारित है। विक्रम सम्वत् को पहले कृत सम्वत् के नाम से जाना जाता था। कुछ शिलालेखों में मालवगण का सम्वत् उल्लिखित है।जैसे-नरवर्मइस शिलालेख के स्थापना वर्ष में विक्रम सम्वत 794 का उल्लेख है, जो ईसवी सन् के हिसाब से वर्ष 737 होता है। भारत में मुस्लिम शासकों के सत्ता पर काबिज होने तक देश में मुख्य रूप से विक्रम और शक सम्वत् ही प्रचलन में थे। बौद्ध साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है। नेपाल के पूर्व राणा राजवंश ने 1901 में विक्रम सम्वत् को ही नेपाल के अधिकृत हिंदू कैलेंडर के रूप में मान्य किया था।
विक्रम संवत् का आरंभ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तर भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। मान्यता है कि वर्ष में 12 माह और 7 दिन का एक सप्ताह मान्य करने का प्रारंभ विक्रम सम्वत् से ही हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर आधारिक है। ये बारह राशियाँ ही 12 सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन संक्रान्ति होती है। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घंटी 48 पन छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है। जिसे अधिक मास’ कहते है।
इस अवसर पर विधायक श्री शैलेंद्र जैन ने कहा कि विक्रम संवत पर आधारित प्रदर्श की गई पुस्तिका में अनेक उपयोगी जानकारी एकत्र की गई है। उन्होंने सभी सागर वासियों को नववर्ष की शुभकामनाएं एवं बधाई दी। आज हर्ष,आनंद उत्सव का विषय है कि भारतीय परंपरा के मान बिंदुओं को स्थापित किया जा रहा है, उनके प्रति श्रद्धा को प्रेरित किया जा रहा है। यह नव वर्ष उत्साह, ऊर्जा और आनंद की अनुभति देता है। भारतीय नव वर्ष प्रकृति एवं ऊर्जा के सकारात्मक पहलुओं को लेकर आता है। विक्रम संवत भारतीयों के लिए गौरव और मान का वर्ष है।
कार्यक्रम में राजा विक्रमादित्य के नाटक का मंचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अमर कुमार जैन ने और आभार संयुक्त कलेक्टर एवं कार्यक्रम की नोडल अधिकारी श्रीमती आरती यादव ने माना।
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