अमृत सरोवर से खिला बलोप गांव: सिंचाई बढ़ी, पैदावार में उछाल, पर्यटन को मिला नया ठिकाना

अमृत सरोवर से खिला बलोप गांव: सिंचाई बढ़ी, पैदावार में उछाल, पर्यटन को मिला नया ठिकाना

सागर। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा शुरु की गई अमृत सरोवर योजना के तहत किए गए विकास कार्यों से एक ओर जहां किसानों को सिंचाई हेतु जल की उपलब्धता बढ़ी है वहीं भूजल स्तर में सुधार हुआ है। सिंचाई क्षमता बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होने से लोगों की जिंदगी में बदलाव आया है। एक ओर जहां तालाब के पानी से गाँव की फसलें बढ़ रही हैं, वहीं वन्य जीवन फल-फूल रहा है, और पर्यटन में वृद्धि हो रही है। गाँव के लोगों ने सीखा है कि पानी का महत्व क्या है और कैसे इसका संरक्षण किया जा सकता है।

आज हम बात कर रहे हैं जिले के खुरई विकासखंड के बलोप गांव में अमृत सरोवर योजना अंतर्गत बनाए गए तालाब की। बलोप गांव में 9 माह पहले बनाए गए अमृत सरोवर यानी तालाब ने क्षेत्र की तस्वीर बदल दी है। बलोप सहित गढ़ौला जागीर, चेनपुरा गांव में 110 हेक्टेयर यानी 275 एकड़ जमीन सिंचित हो रही है। जिससे किसानों की उपज बढ़ी है। जबकि इससे भी बड़ा फायदा यह हुआ है कि तालाब वाला क्षेत्र पर्यटन केंद्र बन गया है। पानी की उपलब्धता ने यहां जलीय और जंगली जीवों का बसेरा बना दिया है। पानी की तलाश में यहां मगरमच्छ से लेकर चीतल, हिरण, जंगली सूअर, नीलगाय, खरगोश, लोमड़ी, लकड़बग्घा, सियार ने आना शुरू किया। जब पानी की उपलब्धता लगातार रही तो उन्होंने यहीं अपना डेरा जमा लिया।

पारिस्थितिक तंत्र सुधरा, नई वनस्पति, जलीय जीव हुए उत्पन्न

अमृत सरोवर बनने के बाद पारिस्थितिक तंत्र में सुधार आया है। सिंचाई रकबे में वृद्धि के साथ आसपास के पारिस्थितिक तंत्र संतुलित हुआ है। तालाब बनने के बाद यहां काफी मात्रा में वनस्पति और जीव उत्पन्न हुए। जिन्होंने एक जटिल पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण किया। तालाब के आसपास 8 से 10 प्रकार के चहचहाते पक्षियों और जल में विचरण करते मगरमच्छ एवं मछलियां क्षेत्र के संतुलित पारिस्थितिक तंत्र के गवाह बने हुए हैं।

सिंचाई से पैदावार 30 फीसदी तक बढ़ी

तालाब निर्माण के बाद गढ़ोला जागीर, चेनपुरा एवं बलोप गांव में 275 एकड़ जमीन सिंचित हुई है। रबी सीजन में गेहूं, चना की सिंचाई के लिए किसानों को पानी मिल रहा है इससे पैदावार में 30 फीसदी तक की वृद्धि आई है। किसानों के मुताबिक पहले जहां बिना सिंचाई या एक मात्र सिंचाई से 12 से 15 क्विंटल गेहूं की पैदावार होती थी, वह बढ़कर 18 से 22 क्विंटल तक पहुंची। ऐसी ही वृद्धि चना एवं अन्य फसलों में भी हुई।

ग्रामीणों की सुबह-शाम की सैर, पर्यटक भी जुड़े

तालाब बनने के बाद लोगों ने सुबह-शाम की सैर के लिए इस स्थान को चुन लिया है। कई ग्रामीण अब यहां जाते हैं। इसके साथ ही मगरमच्छ, चीतल, हिरण को देखने भी लोग पहुंचते हैं। नए पर्यटकों का आना भी शुरू हुआ है। पहले सिर्फ गांव के लिए ही यहां आते-जाते थे, अब गांव में आने वाले रिश्तेदारों को भी ग्रामीण यहां घुमाने ले जाते हैं। आसपास के गांव के लोग भी मगरमच्छ, हिरण आदि देखने की उम्मीद में यहां पहुंचते हैं।

वन्य-जल जीव वापस न लौटें, इसलिए पानी बचाया

इस तालाब का निर्माण वाटर शेड परियोजना के तहत किया गया है। परियोजना के अधिकारी जय गुप्ता बताते हैं कि तालाब कई गांवों में बनते हैं, परंतु इस तालाब की खूबी यह है कि यहां वन और जल जीवों ने बसेरा बना लिया। स्थानीय किसानों ने भी संवेदनशीलता व जागरुकता दिखाई कि तालाब में इतना पानी छोड़ दिया कि जीवों को यह जगह छोड़कर न जाना पड़े। यही वजह रही कि मई माह की गर्मी में भी यहां पानी रहा।

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