दुबे द्वंद: हनीट्रैप उर्फ मोहनीपाश अस्त्र की खोज या अविष्कार

हनीट्रैप उर्फ मोहनीपाश अस्त्र: एक सिंहावलोकन
अगर ईसाई और इस्लाम जगत की माने तो “हनीट्रैप” नामक घातक अस्त्र की खोज या अविष्कार, जो भी आप समझे, इस पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पहले ही हो चुकी थी/चुका था। पुरानी बाइबिल के जिनिसिस एक के अध्याय तीन के अनुसार मनुष्यो के आदि पिता मिस्टर एडम जिन्हें इस्लाम मे जनाब आदम कहते है, को हमारी आदि माता मिस ईव ने जिन्हें इस्लाम मे खातून हव्वा कहते है, सर्प रूपधारी सेटन या शैतान के बहकावे पर “हनीट्रैप” में फसाया और ईश्वर द्वारा वर्जित “ज्ञानरूपी सेव फल” तोड़कर खाने और खिलाने को विवश किया।

इस एक घटना के “रेपरकेसन्स” बेहद दूरगामी हुए।सेटन अपने उद्देश्य में सफल रहा और “गॉड” ने एडम और ईव को तत्काल “स्वर्गनिकाले” की सजा सुनाई और उनके लिए स्वर्ग से बहुत दूर पृथ्वी नामक एक नई जेल को सोमवार से शनिवार तक छह दिवस की “समय सीमा” में निर्मित कर सातवें दिन यानी रविवार को विश्राम के पश्चात आदम और हव्वा को वहां छोड़कर अगले दिन स्वर्ग  वापस लौट गए और फिर कभी वापस नही आये । हमारी वर्तमान प्रदेश सरकार ने “टी एल” वाली प्रशासनिक दक्षता शायद यहीं से सीखी है। हव्वा देवी अपने साथ अपना “हनीट्रैप” अस्त्र साथ लेकर आई और दोनों ने ईश्वर की नकल करते हुए हर रविवार  विश्राम करना शुरू कर दिया।  हनीट्रैप और रविवार अवकाश पृथ्वी पर आज भी पाए जाते है।

अन्य परिणामो में हव्वा और उसकी बेटियो की विश्वसनीयता हमेशा को खत्म हो गई और वह आदम और उसके बेटों से कमतर मानी जाने लगी। ईसाई जगत तो उस घटना को आजतक मानव जाति का “मूल पाप” मानता है और निरन्तर क्षमा मांगता रहता है। सनातनी ऋषियों ने तो इस पर अपने ग्रंथो में नारी की अविश्वसनीयता पर संस्कृत में एक दोहा ही रच दिया, “त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम; देवो न जानाति, कुतो मनुष्यम!”।

हमारी सनातनी दुनिया में हनीट्रैप की उत्पत्ति की चर्चा के पूर्व इसके “सनातनीनाम” को सुन ले—“मोहनीपाश अस्त्र”, जो लंकेश पुत्र इंद्रजीत के “नागपाश” अस्त्र के समकक्ष है। मोहनीपाश अस्त्र में  नाग के स्थान पर नागिन होती है जो सबसे पहले पुरुषों की ” इन्द्रियों” को ही अपने पाश में बांधती है। तब नागपाश का तोड़ तो शुसेन वैद्य को पता था और हिमालय से लाने वाले हमारे बजरंगवली बब्बा भी मौजूद थे। पर अब तो वैद्यो की असली प्रजाति ही नष्ट हो गई है और बजरंगवली बब्बा की सिर्फ मूर्तिया ही बची है। वैसे तो उनके नाम पर एक दल भी है पर उसकी “एक्सपरटाइज” सिर्फ ठुकाई पिटाई में है, संजीवनी लाने में नही।
सनातनी दुनिया मे “मोहनीपाश अस्त्र” समुद्रमंथन का “बाइप्रोडक्ट” है। जगत पालनहार को स्वयं दुष्ट असुरो से”अमृत कलश” के रक्षार्थ इस अस्त्र का उपयोग करना पड़ा  जब उन्होंने मोहनी रूप धारण कर असुरो को “उल्लू” बनाया था। जाहिर है कि उन्हें अपने सबसे घातक अस्त्र “सुदर्शन चक्र” से भी घातक यह अस्त्र लगा होगा! तब से लेकर आज तक मानव इतिहास के हर दौर में इस अस्त्र का बोलबाला रहा है।

मनुष्य प्रजाति में सबसे बलशाली पुरुष नामक जीव अपने बल प्रदर्शन हेतु सत्ताबल,धनबल या बाहुबल का प्रयोग करता है। पर वह महसूस करते हुए भी  कभी स्वीकार नही करता कि शारीरिक बल में उससे कमजोर उसकी “महिला काउंटरपार्ट” के पास उसके बल से सहस्त्र गुणा अधिक घातक दो बल होते है– “रूपबल और योनिबल”।कामनी सूरत पर मोहक मुस्कान लाते हुए एक “तिरछी नज़र” का प्रहार और पुरुषों में “युलिसिस” भी उधर खींचा चला जाता है जैसे लोहा चुम्बक की ओर। हनीट्रैप या मोहनीपाश अस्त्र की “मोडस ऑपरेंडी” यही है।

विश्व इतिहास हनीट्रैप या उसके सनातनी संस्करण के मामले में बेहद “समृद्ध” है। पूरे विश्व की बहुत सी पौराणिक कथाएं भी इसी पर आधारित है। पुरानी और नई बाइबिल में ऐसी कथाये भरी पड़ी है फिर चाहे वह सेमसन और दलीलाह की कथा हो या जोसफ और पोलिथर की पत्नी की कथा हो।  न्यू टेस्टामेंट में  राजा होरेडस और नृत्यांगना सलोमी की कथा जिसमे उसने अपने उत्तेजक नृत्य से राजा को “हनीट्रैप” में फसाया और जॉन द बैप्टिस्ट का सिर कटवा दिया।

इधर सनातनी लोक कथाये तो “हनीट्रैप” कथानक से भरी पड़ी है। विश्वामित्र और मेनका की कथा जिसमे इंद्रदेव  के इशारे पर अप्सरा मेनका ने उन पर “मोहनीपाश” अस्त्र चलाया और प्रतिफल में ऋषिराज ने तपस्या भंग के साथ शकुंतला को पाया। तब से शायद भारतीय सुंदरियों ने ” मेनका” नाम रखना बंद कर दिया। मैंने साढ़े छह दशक के अनुभव में एक पूर्व “एक्सीडेंटल” नेत्री के नाम के अलावा यह नाम और कहीं नही सुना।
सनातनी गाथाओ में भीष्म पितामह के पिता महाराज शांतनु दो बार हनीट्रैप में फसे। पहली बार तो “त्रिवेणी” वाली “गंगा मैया” ने “लेडी गागा”  बनकर उन्हें फसाया और अजेय योद्धा भीष्म पितामह की माता बनकर वापस लौट गई। यों उनका उद्देश्य पवित्र माना गया है क्योंकि उन्हें शापित “वसुओं” को शापमुक्त करवाना था। पर था तो वह “हनीट्रैप” ही! “समरथ को नही दोष गुसांईं” कहावत शायद इसी लिए बनी। दूसरी बार महाराज को महारानी “सत्यवती” ने फसाया और ऐसी शर्ते रखी जिसकी अंतिम परिणीति “महाभारत युद्ध” के रूप में हुई। यह महारानी बेहद तेज थी।इसके पहले इसने “ऋषि पराशर” को “हनीट्रैप” में फसाया और न केवल हरदम इत्र के समान सुंगंधित रहने का वरदान पाया बल्कि “वेदव्यास” रूपी महान पुत्र की माता बनी जिन्होंने महाकाव्य महाभारत की रचना की।

दुर्वाशा ऋषि का वरदान वाली कथा तो लीपा पोती लगती है।वस्तुतः महारानी कुंती भी “हनीट्रैप” विशेषज्ञ थी।उन्होंने तो मनुष्यों पर नही बल्कि कई देवताओं पर “मोहनीपाश” अस्त्र चलाया और पूरे एक धन पांच असाधारण पुत्रो की माता बनी और पति पांडु की नपुंसकता को ढाके रखा। लंकेश रावण और उसके भाई बहिन भी महान”हनीट्रैप” के ही “बाई प्रोडक्ट” थे। उनकी माता “राक्षसकुमारी कैकसी” ने “ऋषि विश्वश्रवा” को बुद्धिमान संतानो को पाने के उद्देश्य से अपने “मोहनीपाश” अस्त्र में फसाकर रावण , विभीषण, कुम्भकरण और शूर्पणखा जैसी संतानो को पाया।
इसी शूर्पणखा ने अपनी माँ के नक्शे कदमो पर चलते हुए हमारे “मर्यादा पुरुषोत्तम” भगवान को भी “हनीट्रैप” में फसाने की कोशिश की थी। पर भला हो हमारे लखन भैया का जिन्होंने उसे उचित दंड देकर “मर्यादा पुरुषोत्तम” की लाज रख ली। अब जिस देश की लोककथाओं में  मनुष्य तो क्या देवता और अवतार भी “हनीट्रैप” से पीड़ित रहे हो वहां अगर कलयुग में किसी जिले की कोतवाली का अदना सा “बड़ा दरोगा” “मोहनीपाश अस्त्र” की तकलीफ से तड़पकर प्रयाश्चित स्वरूप स्वयं अपना जीवन त्याग दे तो हमे उसके प्रति सहानुभूति रखना चाहिए !

मूलतः प्राचीन काल से वर्तमान तक  “मोहनीपाश अस्त्र” वाली “वीरांगनायें” ” राजकीय सेवा ” की हिस्सा रही है।अब यह न पूछो कि वह “राजपत्रित” पद पर थी या “गैर राजपत्रित”। पर इनके कारनामे अच्छे अच्छे राज्यों की नींव हिलाते रहे है। वैसे यह उस देश के विदेश सेवा की गुप्तचर विभाग से संबंध रखती है बिना “डिप्लोमैटिक इम्युनिटी” के।लगभग उसी टाइप की जैसे हमारे आईएफएस अफसर होते है, पर इन्हें बिना Upsc के सीधी भर्ती मिलती है।इनमे प्रथम विश्वयुद्ध की अवधि की “हनीट्रैपर” माताहारी देवी को बहुत सम्मान के साथ याद किया जाता है।

इन राजकीय हनीट्रैपर  के समकक्ष प्राइवेट “फ्रीलांसर” हनीट्रैपर भी प्राचीन काल से सक्रिय है। इनका काम परंपरा गत रूप से शुल्क लेकर अपने सुंदरता रूपी “हनी” बेचना है। इनका शुल्क पूर्वनिर्धारित नही होता बल्कि “इनकी हनी” पुरुष रूपी “भंवरे” को जितना “बेकरार” करती है, उतना अधिक शुल्क इन्हें प्राप्त होता है।इनमे से कुछ तो  देवदास बन जाते है और सत्यजीत राय को अवार्ड विंनिग फ़िल्म की प्रेरणा मिल जाती है। इस स्तर तक यह व्यवसाय अगर वैधानिक नही तो निरापद तो माना जा सकता है। वर्तमान में “थाईलैंड” नामक “लैंड” इन “भंवरो” का “फेवरिट डेस्टिनेशन” है। बुद्ध काल की “वैशाली की नगरवधू” और मध्यकाल में लखनऊ की तवायफ “उमराव जान” इस क्षेत्र की “स्पेशलिस्ट” मानी गई है।
बीसवी सदी के अंतिम कुछ दशकों से इसके स्वरूम में गंभीर बदलाव शुरू हुए और इसकी प्रवित्ति  आपराधिक होती गई। अब “हनीट्रैपर” बालाएं “टेक्नो फ्रेंडली” हो चुकी थी और उन्होंने उन अंतरंग क्षणों को “गुपचुप” विधि से “शूट” कर शिकार की इज्जत को “बूट” से कुचलने की धमकी देकर उसके “वैलेट” की अर्थव्यवस्था की “लूट” करने लगी। और अब तो इन्होंने अपना सिंडीकेट बनाकर “माफिया” स्वरूप धारण कर लिया है और आभासी यानी वर्चुअल स्वरूप में आपके सोशल मीडिया पर मुर्गे फसाने लगी है।हाल ही में आगरा की डिफेंस फैक्ट्री के अधिकारी पाकिस्तान की विदेश सेवा की “हनीट्रैप अधिकारी” के आभासी जाल में उलझ गए। अब वह  कृष्णा जन्मभूमि की आगरा शाखा में विश्राम कर रहे है।
इक्कीसवी सदी में इनका एक संगठित “भूतिया स्वरूप” भी प्रगट हुआ जिसे विद्वानों ने “मी टू” नाम की संज्ञा दी।यह भूतपूर्व “हनीट्रैपर का सिंडिकेट है जिनका “हनी” अब चूक गया है पर फसाने और बसूलने की चाहत अभी भी जवान है। तो अब वह अपने अपने पुराने कद्रदानों जिन्होंने इनका “हनी” पीकर इन्हें “undue favour” देकर आगे बढ़ाया, की इज्जत का फालूदा निकालती है। चंद वर्ष पहले भारत सरकार में मंत्री एक बड़े पत्रकार इसका शिकार हो चुके है।

आधुनिक मेडिकल विज्ञान के अनुसार वह महिलाएं जिनमे सेक्सुअल क्रियाशीलता “हाइपर” होती है उन्हें चिकित्सा शास्त्र की भाषा मे “निम्फोमोनिक” कहा जाता है।प्राचीन भारतीय कामसूत्र विद्वान वात्स्यायन जी ने इन्हें ही “गजगामनी” कहा है। यही महिलाएं “मोहनीपाश अस्त्र” धारण करती है। वही जिन पुरुषों  में सेक्सुअल क्रियाशीलता “हाइपर” होती है उन्हें चिकित्सा विज्ञान”satyriasis” कहती है पर हमारी बुंदेलखंडी उन्हें “लंपट” नाम से जानती है। धनी या अच्छे पदों पर आसीन  अधेड़ और वृद्ध “लंपट”  मोहनीपाश अस्त्र के आदर्श लक्ष्य है।

तो निष्कर्ष यह निकलता है कि जिस पृथ्वी की आदि माता हव्वा की “जीन्स” में ही “हनीट्रैप” विद्यमान है तो उनकी आगे की स्त्री संतानो में अनेकों  में तो यह गुण “वंशानुगत “स्वरूप में रहेगा। यही फार्मूला आदि पिता आदम और उनकी पुरुष संतानो पर भी लागू होगा। जब आदि पिता के स्वयं के ही  डी एन ए  में लगोंट का ढीला होना पाया गया तो वह उसकी अनेक पुरुष संतानो में पाया जाना स्वाभाविक है। भारत देश का नाम राजा भरत के नाम पर रखा गया है जिनकी पत्नी  वही शकुंतला थी जो मेनका-विश्वामित्र हनीट्रैप एपिसोड  की ” “प्रतिफल” थी। अतः भारत की कुछ महिलायों में हनीट्रैप योग्यता पाया जाना भी बहुत स्वाभाविक है।
इससे बचाव का एक ही रास्ता है कि अपनी लंगोट को चमेली चौक, बड़ा बाजार के नगदनारायण अखाड़े के पठ्ठों के समान मजबूती से बांधो। वहाँ के पठ्ठे और सबकुछ गलत कर सकते है परअपनी लंगोट कभी ढीली नही होने देते।इस्लाम के विद्वान बेहद होशियार थे। उन्होंने अपने धर्म की महिलाओं को मिश्र की ममी के समान पूरे शरीर को बुरका और हिजाब से ढकने का नियम बना दिया ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साथ ही अपने पुरुषों को चार चार बीबियाँ रखने की इजाजत दे दी, जिससे उनको पूरा जायका मिलता रहे और हनीट्रैप में न फसे।

सो भंते, अंत मे एक सिद्ध मंत्र बता रहा हूँ। इसके नियमित जाप करने से आप “मोहनीपाश अस्त्र” से सुरक्षित रहेंगे। ध्यान रखे कि इसे दूर से आंखे बंद कर करना है:
ए छोरी कामभूतेषु ,रंडी -रूपेण संशिथा,
अनमस्तुभ्यं,अनमस्तुभ्यं,अनमस्तुभ्यं, अनमोह् अनमः

डॉ अमिताभ दुबे- सागर

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