36 साल बाद मिला न्याय: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 23 कलेक्टरों से वसूला जाएगा मुआवजा

36 साल बाद मिला न्याय: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 23 कलेक्टरों से वसूला जाएगा मुआवजा

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में जबलपुर के निवासियों को 36 साल बाद न्याय दिलाया है। इस मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि 1988 से अब तक जबलपुर के कलेक्टर पद पर रहे सभी 23 कलेक्टरों से मुआवजे की राशि वसूली जाएगी। यह मामला याचिकाकर्ता शशि पांडे की 29,150 वर्गफुट जमीन के अधिग्रहण से जुड़ा है, जिसे 1988 में सरकार द्वारा लिया गया था, लेकिन उन्हें तब से अब तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया था।

लंबी चली न्याय की लड़ाई

शशि पांडे ने अदालत में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने बताया कि आधारताल बायपास के पास स्थित उनकी जमीन को 5 फरवरी 1988 को सरकार ने अधिग्रहित कर लिया, लेकिन न तो मुआवजा दिया गया और न ही अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी की गई। यह मामला कई दशकों तक लंबित रहा। हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की बेंच ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि शशि पांडे को 1988 से लेकर अब तक के लिए 10,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से मुआवजा दिया जाए।

कलेक्टरों से वसूली का आदेश

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि मुआवजे की राशि उन सभी 23 कलेक्टरों से वसूली जाएगी, जिन्होंने 1988 से 2024 के बीच जबलपुर के कलेक्टर पद पर कार्य किया। कुल मुआवजा राशि 43 लाख 90 हजार रुपये तय की गई है, जो 439 महीनों के हिसाब से दी जानी है। इस फैसले में प्रशासनिक अधिकारियों को भी उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाई गई है कि उनकी चूक के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति का अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिए।

सबसे अधिक राशि वसूलने का आदेश

इन कलेक्टरों में सबसे ज्यादा मुआवजा तत्कालीन कलेक्टर संजय दुबे से वसूला जाएगा, जिन्होंने जबलपुर में 37 महीने तक सेवा दी थी। उन्हें 3 लाख 70 हजार रुपये की राशि चुकानी होगी। इसके अलावा, विवेक पोरवाल, गुलशन बामरा और एसएस डंगस से भी 36 महीने की सेवा के हिसाब से 3 लाख 60 हजार रुपये की वसूली की जाएगी। वहीं, सबसे कम राशि अजय सिंह से ली जाएगी, जिन्होंने जबलपुर में सिर्फ 2 महीने काम किया था और उन्हें 20 हजार रुपये का भुगतान करना होगा। वर्तमान कलेक्टर दीपक सक्सेना को 90 हजार रुपये जमा करने होंगे।

36 साल बाद आया न्याय

हाईकोर्ट का यह फैसला यह दर्शाता है कि भले ही न्याय में देरी हो, लेकिन न्याय की जीत अवश्य होती है। शशि पांडे की 36 साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद यह फैसला उनके जैसे पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत है। इस निर्णय से यह संदेश भी जाता है कि प्रशासनिक लापरवाही को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता और इसके लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।

भविष्य के लिए महत्वपूर्ण संदेश

यह फैसला भविष्य में प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करेगा कि उनकी जिम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे इस मामले में क्या कदम उठाए जाते हैं, लेकिन फिलहाल शशि पांडे को उनकी लंबी लड़ाई के बाद न्याय मिलना तय है।

 

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