MP: डॉ गौर जन्मस्थल हुआ जर्जर, विवि द्वारा कराया गया नव निर्माण कुछ ही साल में बिगड़ा

डॉ गौर जन्मस्थल फिर हुआ जर्जर, नव निर्माण कुछ ही साल में बिगड़ा

खबर गजेंद्र ठाकुर – 9302303212

सागर। शनीचरी टौरी वार्ड में 26 नवम्बर 1870 को डॉ हरिसिंह गौर का जन्म जिस घर में हुआ था उसको विश्वविद्यालय प्रशासन मूल स्वरूप को तोड़ कर फिर से निर्माण तो करा दिया पर अब गौर जन्म स्थली जो बंगला स्कूल भी कहलाती थी को नई बिल्डिंग मिल गयी लेकिन वह भी जर्जर होती जा रही है यहां विश्वविद्यालय प्रशासन की से 4 कमर्चारी तैनात बनाये गए हैं। नए निर्माण में लाइब्रेरी, कम्प्यूटर क्लास, आदि व्यवस्था तो की गई पर विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता के चलते छात्र उपलब्ध नही हो सके जिसके कारण गौर जन्म स्थली अब खंडर में तब्दील होता प्रतीत हो रहा हैं।
बिल्डिंग की बाहरी दीवार आगे को झुक गयी हैं जो कभी भी धराशायी हो सकती है वहीं अंदर सीढियां भी टूट चुकी हैं और अन्य जगह भी जर्जर स्थिति बन चुकी हैं।

पर विश्वविद्यालय प्रशासन लाखों रुपये का निर्माण करा कर मानो इस स्थली को भूल गया हैं।

डॉ गौर का संछिप्त परिचय

डॉ हरीसिंह गौर का बचपन सनीचरी टोरी अपने इसी पैतृक आवास में बीता है, उनकी प्रासमरी शिक्षा सागर में ही हुई। प्राइवेट पाठशाला में दो साल पढ़ने के उपरान्त कटरा की हिन्दी शाला में तीन साल अध्ययन किया जहां से जिला स्कूल (वर्तमान म्युनिसिपल हाई स्कूल) में भर्ती हुये कुशाग्र तीवृ बुद्धि धनी थे। सन् 1921 में केन्द्रीय सरकार ने दिल्ली में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई एवं डॉ. हरीसिंह गौर प्रथम कुलपति नियुक्त हुए और 1924 तक इस पद पर आसीन रहे। इस विश्वविद्यालय की प्रारंभिक प्रगति का इतिहास डॉ. गौर की शैक्षणिक प्रतिमा एवं प्रशासनिक अनुभव बतलाता है। इसके पश्चात डॉ. हरीसिंह गौर नागपुर विश्वविद्यालय में दो बार सन 1928 और 1936 में कुलपति पद पर नियुक्त हुए एवं इंग्लैण्ड में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत 27 विश्वविद्यालयों का 25 दिवसीय सम्मेलन भी डॉ. गौर की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।
1945-46 के बाद उन्होंने अंतिम समय सागर में बीता, इस नगर के विकास एवं समृद्धि के लिये उनके मस्तिष्क में बहुत सी योजनाऍ थी जैसे – अच्छा स्टेशन, हवाई मार्ग अड्डा विश्वविद्यालय तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था, राजधानी बनाने पर विचार जल योजना आदि। कुछ को तो वे अपने जीवनकाल में ही पूरी कर गये। विश्वविद्यालय का कार्य मकरोनिया स्थित मिलिटरी की पुरानी बैरकों में शुरू किया। अपने इस नगर को विश्वविद्यालय के लिये चुनने के संबंध में वे कहा करते कि केम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के समान ज्ञान केन्द्र राजसत्ता से दूरी ही होना चाहिये। उन्होने 20 लाख की धनराशि से हमारे प्रान्त में इस प्रथम विश्वविद्यालय को शुरू किया एवं अपनी वसीयत द्वारा अपनी सम्पत्ति का 2/3 जो लगभग दो करोड़ था इसके लिये दान दिया।
वर्तमान में गौर विश्वविद्यालय केंद्रीय मान्यता प्राप्त है और अब और विशाल रूप ले लिया हैं, साथ ही अनेक विभाग इसके अंदर बन चुके हैं जिसमें विभिन्न उच्च स्तरीय शिक्षा दी जाती है सारे प्रदेश देश से यहां छात्र अध्ययन करने या रहे हैं।

इनका कहना हैं

गौर जामस्थल का सिरे से निर्माण कराया गया है हफ्ते में एक बार यहां स्वास्थ्य कैम्प लगता हैं, लाइब्रेरी उपलब्ध हैं, प्राथमिक कम्प्यूटर शिक्षा भी दी जाती हैं, में अधिक जानकारी लेकर बताऊंगा- विवेक जैसवाल मीडिया प्रभारी विश्वविद्यालय

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