जब 14 साल की दुष्कर्म पीड़िता पहुंची सुप्रीम कोर्ट, फिर आया यह फैसला 

जब 14 साल की दुष्कर्म पीड़िता पहुंची सुप्रीम कोर्ट, फिर आया यह फैसला 

नई दिल्ली। देश में जब कहीं से न्‍याय नहीं मिलता है तो लोग अंतिम उम्‍मीद के साथ न्‍याय के सबसे बड़े मंदिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं. कुछ दिनों पहले एक ऐसा ही मामला सामने आया, जब हर तरफ से थक-हार कर 14 वर्षीय रेप पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. नाबालिग पीड़िता की मांग पर शीर्ष अदालत ने अभूतपूर्व फैसला दिया. मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने किया.

दरअसल, महाराष्‍ट्र की रहने वाली 14 वर्ष की किशोरी रेप पीड़िता है. दहला देने वाली घटना के सप्‍ताहों बाद नाबालिग को पता चला कि वह गर्भवती है. वह इसके लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी. इसके बाद उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अबॉर्शन यानी की गर्भपात कराने की मांग वाली याचिका दायर की गई. किशोरी के गर्भ में तकरीबन 30 सप्‍ताह का बच्‍चा पल रहा था. मौजूदा कानून के अनुसार, इसकी इजाजत नहीं दिया जा सकता था. इसके बाद प्रधान न्‍यायाधीश की अध्‍यक्षता वाली दो जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्‍छेद 142 के तहत प्रदान की गई शक्तियों का इस्‍तेमाल करते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया.

अबॉर्शन को लेकर मौजूदा प्रावधान

अबॉर्शन यानी की गर्भपात कराने को लेकर देश का कानून काफी सख्‍त है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी एक्‍ट के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, 24 महीने तक के गर्भ को ही निष्क्रिय करने का प्रावधान है. विवाहित महिलाओं के साथ रेप सर्वाइवर, दिव्‍यांग महिलाएं और नाबालिग किशोरियों पर यह प्रावधान लागू होता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निर्धारित प्रावधानों से हटकर फैसला दिया है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इस मामले में पीड़िता की ओर से 20 मार्च 2024 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी. चौंकाने वाली बात यह है कि तब तक पीड़िता को गर्भ धारण किए हुए 24 सप्‍ताह से ज्‍यादा का वक्‍त हो चुका था. पुलिस ने धारा 376 के साथ ही पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत मामला दर्ज किया था. यह मामला सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष आया. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मेडिकल बोर्ड की सिफारिशों को स्‍वीकार करते हुए नाबालिग रेप पीड़िता को 30 सप्‍ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी. इस पूरी प्रक्रिया में आने वाला खर्च सरकार को वहन करना होगा. मेडिकल बोर्ड ने अपनी सिफारिश में कहा था कि नाबालिग की मर्जी के विपरीत जाकर प्रेग्‍नेंसी को बरकरार रखा जाता है तो मानसिक के साथ शारीरिक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ सकता है. अनुच्‍छेद 142

सुप्रीम कोर्ट ने 30 सप्‍ताह के गर्भ का अबॉर्शन कराने का आदेश संविधान के अनुच्‍छेद 142 के तहत दी गई शक्तियों के आधार पर दिया. अनुच्‍छेद 142(1) के तहत कहा गया है कि उच्‍चतम न्‍यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्‍याय करने के लिए आवश्‍यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्‍यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्‍त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्‍ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा.

KhabarKaAsar.com
Some Other News

कुछ अन्य ख़बरें

error: इस पेज की जानकारी कॉपी नहीं की जा सकती है|
Scroll to Top