शिक्षण और शोध के लिए कल्याणकारी दृष्टिकोण जरूरी : प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
सागर-
डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्यप्रदेश के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभागमें पदस्थ प्रोफ़ेसर दिवाकर सिंह राजपूत ने एक ऑनलाइन कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में उदबोधन देते हुए कहा कि शिक्षा और शोध के साथ विश्व कल्याण की भावना समाहित हो तभी वह सार्थक होती है। डाॅ राजपूत ने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व विकास, सीखने का मुख्य उद्देश्य आचरण व अनुपालन और शोध का मुख्य उद्देश्य विश्व कल्याण होना चाहिए। सामाजिक मूल्यों, साँस्कृतिक प्रतिमानों और वैधानिक नियमावलियों को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक न्याय की अवधारणा पर आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण ही सदैव सार्थक होता है । डाॅ राजपूत ने “टीचिंग, लर्निंग एण्ड रिसर्च : टुडे एण्ड टुमारो” विषय पर उद्घाटन वक्तव्य देते हुए “एजुकेशन फार नेशन बिल्डिंग, लर्निंग फार सोशल डेवलपमेंट, रिसर्च फार ग्लोबल वैलफेयर ” की अवधारणा को प्रस्तुत किया। डाॅ राजपूत ने वर्तमान और भविष्य में शिक्षा के स्वरूप और आवश्यकता पर चर्चा करते हुए नवीन तकनीकी चरणों पर प्रकाश डाला।
डाॅ राजपूत ने सोशल लेग, आइस माॅडल एवं आई के डबल्यू प्रारूप को समझाया।
कार्यक्रम में स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग की डाॅ सोमाली गुप्ता ने अपने उदबोधन में शोध परियोजना के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला। डाॅ गुप्ता ने कहा कि शोध परियोजनाओं के लिए चरणबद्ध तरीके से कार्य करना चाहिए । एस एफ एस कालेज नागपुर द्वारा पाँच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन के उद्घाटन सत्र में प्राचार्य डॉ थामस के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में संचालित हो रहे कार्यक्रम का संचालन डॉ सोनिका ने किया । ऑनलाइन कार्यक्रम में देश के विभिन्न स्थानों से लोगों ने सहभागिता की और प्रश्नोत्तर के माध्यम से अकादमिक विमर्श किया।