समाजशास्त्र विषय सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक दोनों रूप में उपयोगी: प्रो दिवाकर सिंह राजपूत

समाजशास्त्र विषय सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक दोनों रूप में उपयोगी: प्रो दिवाकर सिंह राजपूत

सागर-

डॉ  हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्यप्रदेश के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभाग में पदस्थ प्रोफ़ेसर दिवाकर सिंह राजपूत ने एक राष्ट्रीय बेवीनार में मुख्य वक्ता के रूप में उदबोधन देते हुए “वर्तमान समय में समाजशास्त्र विषय की उपयोगिता” पर विस्तार से चर्चा की। डॉ  राजपूत ने कहा कि समाजशास्त्र की उपादेयता को पाँच प्रमुख भागों में समझा जा सकता है- विषय के अध्ययन अनुसंधान के स्तर पर, सामाजिक समस्याओं की पहचान कारण एवं समाधान के स्तर पर, व्यक्तित्व निर्माण जीवन स्थापना और मूल्यों के स्तर पर, नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन के स्तर पर, रोजगार अर्थोपार्जन और स्थापना के स्तर पर।

डॉ  राजपूत ने कहा कि महामारी के दौर में समाजशास्त्र विषय की भूमिका और अहम हो जाती है जब परेशानियों के दौर से गुजर रहे समाज को सामाजिक साँस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक काउंसिलिंग के माध्यम से राहत देने में सहयोगी भूमिका का निर्वहन करता है। डॉ  राजपूत ने कहा कि समाजशास्त्र विषय राष्ट्रीय निर्माण के साथ ही विश्व कल्याण की बात को भी आकार देता है।

वेबीनार में प्रतिभागियों अखिलेश, सोनम, लक्ष्मण आदि ने अपनी जिज्ञासायें व प्रश्न रखे, जिनका समाधान विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ  राजपूत ने किया।

विशेष व्याख्यान माला का आयोजन शासकीय स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग छत्तीसगढ़ द्वारा किया गया। प्राचार्य डॉ आर एन सिंह के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में आयोजित कार्यक्रम के प्रारंभ में आयोजन सचिव डॉ  सचित्रा शर्मा ने विषय की भूमिका प्रस्तुत करते हुए स्वागत भाषण दिया। अंत में डा सपना शर्मा सारस्वत ने आभार व्यक्त किया। विशेष व्याख्यान माला में दुर्ग विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सहभागिता की।

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