सफलता की कहानी
वनोपज की अच्छी समझ है इनको, मजदूरी छोड़ समूह में स्वयं शुरू किया थोक का व्यापार, शिक्षित नहीं फिर भी माहिर हैं हिसाब-किताब में, बेर, तेंदू फल से किया अतिथि सत्कार
सागर –
मालथौन के भोले स्वयं सहायता समूह की साक्षरता से कोसों दूर श्यामबाई ने उंगलियों पर सारा हिसाब जिला कलेक्टर दीपक सिंह को भ्रमण के दौरान उन्होंने अपने संग्रहित वनोपज की मात्रा और रूप्ये का हिसाब किताब फटा-फट जोड़कर बता दिया। इस समूह से जुड़ी श्रीमती तारारानी, आरती, लीलाबाई काशीबाई, श्याम देवी समेत 10 महिलायें जंगल से विभिन्न प्रकार के वनोपज का संग्रहण कर ललितपुर के व्यापारियों को बैचने जाती थीं। इनके पास इतनी पूंजी नहीं थी कि वे अपने इस काम को वृहद रूप में कर सकें। इस कारण वे अकेले अकेले अपनी संग्रहित थोड़ी थोड़ी मात्रा को व्यापारी को देती थीं मात्रा कम होने के कारण व्यापारी लोग भी इन्हें अच्छे दाम नहीं दे पाते थे कई बार खुदरा व्यापारी ही इनसे माल लेकर उसे थोक के भाव बड़े व्यापारियों को अधिक कीमत पर पहुंचा रहे थे। समूह के बनने के बाद आजीविका मिशन से उन्हें 1 लाख 80 हजार रूप्ये की राशि बैंक लिंकेज समेत अन्य पात्रता राशि प्राप्त हुई। श्यामबाई ने नेतृत्व किया और अपने व्यापार का तरीका बदल दिया अब समूह के सदस्यों के अलावा अन्य लोगों का वनोपज वे एक स्थान पर समूह के माध्यम से क्रय कर लेती हैं इससे उनके पास अधिक मात्रा में सामान एकत्रित हो जाता फिर वे व्यापारियों से बात करके जब उन्हें लगता कि इनके रेट ठीक हैं उसे बैच देतीं। कई बार वे बाजार के भाव उठने तक अपने माल को रोक के रखना भी सीख गईं। सामान की तुलाई के लिए इन्होंने एक स्थानीय व्यापारी से 50 रूप्ये प्रतिदिन किराये पर इलेक्ट्रॉनिक तोल मशीन ले रखी है।
जिला कलेक्टर दीपक सिंह, डॉ. इच्छित गढ़पाले, अपर कलेक्टर जब इस समूह से मिलने पहुंचे तो महिलाओं ने अपनी एकत्रित सामग्री उत्साहपूर्वक दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने संग्रहित तेंदू बेर खिलाकर शबरी की नाईं इन लोगों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि किरावन और चिलो ऐसी वनोपज है जिसे तेल में उबालकर शरीर के आंतरिक और बाह पुराने चोटों को ठीक किया जा सकता है। वे समय समय पर सीलोटा, घमरा, सीलामरी, अफोह, गुल्ली, कंजी, बिच्छू, गुरवेल, कारी महूआ, शहद, जिम्मी कांदा तेंदू आदि का संग्रहण करती हैं। समूह के पास अभी 80 क्विंटल से अधिक बेरों का संग्रहण है। इसके पहले उन्होंने 600 क्विंटल बेल संग्रहित कर व्यापारियों को सप्लाई की है। जिला कलेक्टर ने मौके पर एसडीएम को इनके सामुदायिक वनोपज संग्रहण लायसेंस प्रक्रिया कर इन्हें इस काम को सफल रूप में करने के लिए पात्रता प्रमाणपत्र जारी करने के निर्देश दिये हैं। अपर कलेक्टर एवं सीईओ जिपं डॉ इच्छित गढ़पाले ने कहा कि दर्द निवारक तेल बनाने का काम समूह के स्तर पर प्रारंभ किया जाकर इसे आगे बढ़ाया जा सकता है जबकि बेर से बिरचुन, लब्दो, बेल से पाउडर, बेल शरबत जैसे उपयोगी उत्पाद शहरी आबादी को ये समूह देने में सक्षम होगा। श्यामबाई ने बताया कि 12 वर्ष पूर्व आमाषय की बीमारी के कारण उनके पति की मृत्यु हो गई थी। वे वेलदारी, खेतीहर मजदूरी और वनोपज संग्रहण से अपने बाल बच्चे पाल रहीं थीं समूह से जुड़ने के बाद व्यापार करने योग्य धन राशि मिलने से उन्होंने अब मजदूर से मालिक का सफर प्रारंभ कर दिया। इस यात्रा में उन्होंने अपने साथ जुड़ी अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। यही कारण है कि आज इन महिलाअें ने अलग-अलग स्थानों पर 80 क्विंटल से अधिक बेर का भण्डारण कर रखा है और अभी महूए के संग्रहण और भण्डारण का कार्य जारी किये हुए हैं। अपने भ्रमण में कलेक्टर महोदय ने दुग्ध प्रशीतलन इकाई का बांदरी में निरीक्षण भी किया। आजीविका मिशन डीपीएम हरीश दुबे ने बताया कि प्रसंस्करण एवं विपणन कार्य के लिए आवश्यक दक्षता संबंधी प्रशिक्षण कराते हुए इन महिलाओं को आगे बढ़ने में मिशन सहयोगी होगा। इस दौरान भ्रमण में हेमेन्द्र गोविल जनपद सीईओ, रजनीश दुबे विकासखण्ड प्रबंधक, छोटेलाल सोनकर सहा. विकासखण्ड प्रबंधक उपस्थित रहे।