दक्षता के लिए अभ्यास आवष्यक- कुलाधिपति डाॅ.अजय तिवारी
स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वाधान में दिनाँक 28 नवम्बर 2020 को ʻʻचरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के अन्न्यमय कोष की अवधारणा़ʼʼ विषय पर कार्यषाला आयोजित की गई। इस कार्यषाला को आयोजित करने का प्रयोजन एवं औचित्य पर विषय भूमिका रखते हुए षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास महाकौषल प्रांत के अध्यक्ष एवं स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय के कुलाधिपति डाॅ.अजय तिवारी ने कहा-किसी भी कार्य को करने के लिए अगर उसके लक्ष्य को प्राप्त करना है तो निरंतर अभ्यास करते हुए उस कार्य में दक्ष होना पड़ेगा यदि गीता में हम देखें तो सात्विक, तामसिक एवं राजसी प्रवृत्ति का उल्लेख मिलता है और ये सभी क्रियायें चाहे समाज के कल्याणार्थ हो, राज्यों का अधिग्रहण हो अथवा आसुरी प्रवृत्ति में लीन होना हो तो हर एक का माध्यम शरीर है क्योंकि शरीर से ही नाम है और नाम से हम जाने जाते हैं हमारे अभिव्यक्ति का प्रथम प्रकटन शरीर के द्वारा होता है क्योंकि शरीर ही हमारे हर कार्य का माध्यम होता है आपने वैष्विक आपदा का बिन्दु रखते हुए कहा कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का यदि विकास कर लिया जाये तो वात, पित्त, कफ़ ऐसे त्रिदोष से मनुष्य बच सकता हैै। इस अवसर पर प्रबंध निदेषक डाॅ.अनिल तिवारी ने कहा- हम ईष्वर द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठ रचना है और ब्राह्यण की सारी शक्तियाँ अंर्तनिहित हैं आवष्यकता है हम अपने भौतिक जगत में उसका संचालन संरक्षण कैसे करते हैं शरीर से व्यक्ति, व्यक्ति से व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए शरीरिक संरचना उसकी कार्यपद्धति तथा उसके उपांगों की क्रियाविधि जानना आवष्यक है क्योंकि शरीर साधन है इस कार्यषाला से हम सभी को अपने शरीरिक स्वास्थ्य भोजन, निद्रा आदि के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलेगी। इस अवसर पर प्रबंध निदेषक महोदय ने चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास की चेतना यात्रा 31 दिसम्बर की घोषणा की। दीपप्रज्जवल एवं स्वागत भाषण कुलपति डाॅ.राजेष दुबे द्वारा दिया गया। बीज वक्तव्य देते हुए मुख्य वक्ता पंजाब से उपस्थित हुए श्री देषराज शर्मा जी ने कहा- हम दो प्रकार से जीवन बनाते हैं जैसे मनुष्य का जन्म लेना और फिर षिक्षा ग्रहण करना और उस षिक्षा को अपने जीवन में उतारना मनुष्य के रूप में आये हुए हमारे शरीर का प्रकटीकरण होता है फिर वह व्यक्ति से व्यक्तित्व बन जाता है जिसमें विष्व की संकल्पना निहित होती है पंचतत्व से बनी हमारी यह काया दृष्य और अदृष्य कार्यों का संचालन करती है जिनमें हमारी पाँच कार्यांन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं शरीर, मन प्राण, आनन्द से ही शरीर संचालित होता है सभी अंग उपांगो को सैद्धांतिक क्रियाविधि के साथ-साथ प्रायोगिक भी जीवन में करना उचित होता है इसके लिए पौष्टिक आहार स्वच्छ वातावरण भरपूर निद्रा और मन का संतुलन आवष्यक है शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को निरंतर बनाये रखने के लिए व्यायाम अति आवष्यक है यह षिक्षा जब बालक को दी जायेगी और शरीर स्वस्थ्य होगा तो उसके व्यक्तित्व का विकास आधार बन जायेगी। विषय संकलनकर अपना वक्तव्य देते हुए जबलपुर के प्राध्यापक डाॅ.रामकुमार रजक जी ने कहा- जीवन जीने के लिए सदैव मन, वचन, कर्म को संतुलित रखना होगा नई षिक्षा नीति के अनुसार छात्रों को खेल-खेल कर सिखाना और अपने क्रियाकलापों से विद्यार्थियों को प्रभावित करना षिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए केवल लाक्षणिक भाषा ज्ञान का प्रदर्षन मात्र ही छात्र को व्यक्तित्व विकास के लिए प्रेरित नहीं करेगा शरीरिक स्वास्थ्य के साथ श्रम का संकल्प छात्र एवं षिक्षक दोनों को लेना होगा। तरंग ध्वनि पर के माध्यम से कार्यषाला निष्चित अवधि में सम्पन्न हुई प्रतिभागी बंधु, भगिनी, की संख्या 89 रही। जिसमें 5 छात्र भी तरंग ध्वनि से सहभागिता करते रहे। विष्वविद्यालय के सभी शैक्षणिक, अषैक्षणिक स्टाफ ने कार्यषाला में अपनी उपस्थिति दर्ज की। तरंग ध्वनि का संचालन अभिषेक तिवारी द्वारा सफलता पूर्वक किया गया। कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वाधान में दिनाँक 28 नवम्बर 2020 को ʻʻचरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के अन्न्यमय कोष की अवधारणा़ʼʼ विषय पर कार्यषाला आयोजित की गई। इस कार्यषाला को आयोजित करने का प्रयोजन एवं औचित्य पर विषय भूमिका रखते हुए षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास महाकौषल प्रांत के अध्यक्ष एवं स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय के कुलाधिपति डाॅ.अजय तिवारी ने कहा-किसी भी कार्य को करने के लिए अगर उसके लक्ष्य को प्राप्त करना है तो निरंतर अभ्यास करते हुए उस कार्य में दक्ष होना पड़ेगा यदि गीता में हम देखें तो सात्विक, तामसिक एवं राजसी प्रवृत्ति का उल्लेख मिलता है और ये सभी क्रियायें चाहे समाज के कल्याणार्थ हो, राज्यों का अधिग्रहण हो अथवा आसुरी प्रवृत्ति में लीन होना हो तो हर एक का माध्यम शरीर है क्योंकि शरीर से ही नाम है और नाम से हम जाने जाते हैं हमारे अभिव्यक्ति का प्रथम प्रकटन शरीर के द्वारा होता है क्योंकि शरीर ही हमारे हर कार्य का माध्यम होता है आपने वैष्विक आपदा का बिन्दु रखते हुए कहा कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का यदि विकास कर लिया जाये तो वात, पित्त, कफ़ ऐसे त्रिदोष से मनुष्य बच सकता हैै। इस अवसर पर प्रबंध निदेषक डाॅ.अनिल तिवारी ने कहा- हम ईष्वर द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठ रचना है और ब्राह्यण की सारी शक्तियाँ अंर्तनिहित हैं आवष्यकता है हम अपने भौतिक जगत में उसका संचालन संरक्षण कैसे करते हैं शरीर से व्यक्ति, व्यक्ति से व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए शरीरिक संरचना उसकी कार्यपद्धति तथा उसके उपांगों की क्रियाविधि जानना आवष्यक है क्योंकि शरीर साधन है इस कार्यषाला से हम सभी को अपने शरीरिक स्वास्थ्य भोजन, निद्रा आदि के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलेगी। इस अवसर पर प्रबंध निदेषक महोदय ने चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास की चेतना यात्रा 31 दिसम्बर की घोषणा की। दीपप्रज्जवल एवं स्वागत भाषण कुलपति डाॅ.राजेष दुबे द्वारा दिया गया। बीज वक्तव्य देते हुए मुख्य वक्ता पंजाब से उपस्थित हुए श्री देषराज शर्मा जी ने कहा- हम दो प्रकार से जीवन बनाते हैं जैसे मनुष्य का जन्म लेना और फिर षिक्षा ग्रहण करना और उस षिक्षा को अपने जीवन में उतारना मनुष्य के रूप में आये हुए हमारे शरीर का प्रकटीकरण होता है फिर वह व्यक्ति से व्यक्तित्व बन जाता है जिसमें विष्व की संकल्पना निहित होती है पंचतत्व से बनी हमारी यह काया दृष्य और अदृष्य कार्यों का संचालन करती है जिनमें हमारी पाँच कार्यांन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं शरीर, मन प्राण, आनन्द से ही शरीर संचालित होता है सभी अंग उपांगो को सैद्धांतिक क्रियाविधि के साथ-साथ प्रायोगिक भी जीवन में करना उचित होता है इसके लिए पौष्टिक आहार स्वच्छ वातावरण भरपूर निद्रा और मन का संतुलन आवष्यक है शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को निरंतर बनाये रखने के लिए व्यायाम अति आवष्यक है यह षिक्षा जब बालक को दी जायेगी और शरीर स्वस्थ्य होगा तो उसके व्यक्तित्व का विकास आधार बन जायेगी। विषय संकलनकर अपना वक्तव्य देते हुए जबलपुर के प्राध्यापक डाॅ.रामकुमार रजक जी ने कहा- जीवन जीने के लिए सदैव मन, वचन, कर्म को संतुलित रखना होगा नई षिक्षा नीति के अनुसार छात्रों को खेल-खेल कर सिखाना और अपने क्रियाकलापों से विद्यार्थियों को प्रभावित करना षिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए केवल लाक्षणिक भाषा ज्ञान का प्रदर्षन मात्र ही छात्र को व्यक्तित्व विकास के लिए प्रेरित नहीं करेगा शरीरिक स्वास्थ्य के साथ श्रम का संकल्प छात्र एवं षिक्षक दोनों को लेना होगा। तरंग ध्वनि पर के माध्यम से कार्यषाला निष्चित अवधि में सम्पन्न हुई प्रतिभागी बंधु, भगिनी, की संख्या 89 रही। जिसमें 5 छात्र भी तरंग ध्वनि से सहभागिता करते रहे। विष्वविद्यालय के सभी शैक्षणिक, अषैक्षणिक स्टाफ ने कार्यषाला में अपनी उपस्थिति दर्ज की। तरंग ध्वनि का संचालन अभिषेक तिवारी द्वारा सफलता पूर्वक किया गया। कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।