सागर जिला पंचायत द्वारा संचालित महिला स्वयं सहायता समूह बना रहें हैं गोबर के दिये

गोबर से बने दीपक- दीवाली के लिए तैयार हो रहे,
महिला समूह बना रहीं गोबर के दीये इस साल दीपावली में विदेशी दीयों की जगह रोशनी करेंगे यहीं दीए

सागर–/सागर विकासखण्ड के ग्राम चितौरा में गोबर से अब महिलायें दीवाली के दीये भी बना रहीं हैं। इन दीयों की खासियत है कि धार्मिक महत्व रखने वाले गोबर इनका मुख्य रॉ मटेरियल है।
परम्परागत तौर पर मिट्टी से बने दीये दीपावली में लोग अपने घरों को रोशन करने के लिए जलाते थे। परन्तु अब बाजार में विदेशों में निर्मित आयातित दीयों का प्रचलन बढ़ गया है। सिंथेटिक मटेरियल से निर्मित ये आयातित दीये पर्यावरण के लिए न केवल घातक हैं। बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी नुकसान देय हैं। कोविड-19 में लॉक डाउन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में गठित महिला स्वयं सहायता समूहों ने आमदनी के नये आयाम खोले हैं। इसी के चलते ग्राम चितौरा में गीतांजलि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी रानी पटैल, लीलावती पटैल, सुनीता पटैल ने अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ गोबर से दीये बनाने का काम शुरू किया है। समूह के द्वारा निर्मित ये दीये अब लोगों को विक्रय के लिए भी उपलब्ध होंगे। चितौरा में फॉर लाइन पर स्थित आजीविका फ्रेश दुकान में जहां पहले से समूह की महिलायें ताजी सब्जियां बैचतीं थीं अब गोबर से निर्मित ये दीये भी बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे। अंकुर कॉलोनी में जैन मंदिर के सामने स्थित आजीविका फ्रेश दुकान में भी ये दीये आम ग्राहकों के लिए विपणन हेतु उपलब्ध हैं। समूह की महिलाओं द्वारा निर्मित इन दीयों में गोबर, गो-मूत्र, शुद्ध जल, खेत की मिट्टी निर्माण हेतु प्रयुक्त की गई है। न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में सहयोग करने के लिए सवर्था उपयुक्त हैं। लीलावती का कहना है कि इस साल सागर जिले के घरों में आयातित दीयों के स्थान पर समूह द्वारा निर्मित इन दीयों का लोग उपयोग करते हैं तो वे परोक्ष रूप से गरीब परिवारों की मदद भी कर सकेंगे। देवरी विकासखण्ड में समूह की महिलायें गोबर से बनने वाली लकड़ी को भी तैयार कर रहे हैं। ईंधन के एक उपयुक्त विकल्प के रूप में ये गोकाष्ट जंगलों के दवाब को घटा सकें हैं।
जिला पंचायत, सागर मुख्य कार्यपालन अधिकारी, डॉ. इच्छित गढ़पाले ने बताया  कि महिला स्वयं सहायता समूहों को आय संवर्धन के लिए सिलाई, ब्यूटीपार्लर, स्वरोजगार, पशुपालन, मुर्गी पालन, सब्जी उत्पादन, अनाज संग्रहण एवं विपणन केन्द्रों का संचालन जैसी गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है ताकि वे आत्म निर्भर होकर बेहतर जीवन यापन कर सकें। चितौरा की इन महिलाओं ने लॉक डाउन में आजीविका फ्रेश के माध्यम से लोगों को बाजिव दामों में सब्जी व फल उपलब्ध कराये थे। गोबर से बने दीये बनाकर अब वे पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में आगे बढ़ रहीं हैं।

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