महाशिवरात्रि का महा पर्व इस साल 21 फरवरी को मनाया जायेगा, बाकी शिवरात्रि पर्व से इस महाशिवरात्रि को क्यों माना गया है खास इसके महत्व को जानने के लिए इस पौराणिक कथा को जानना जरूरी है जिसके अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी हुआ करता था वह जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था, साथ ही एक साहूकार का कर्जदार भी था, लेकिन उसका ऋण समय पर चुका न सका इससे आक्रोशित साहूकार ने चित्रभानु को अपनी कैद में रख लिया, संयोग से उस दिन महाशिवरात्रि थी, मुश्किल में फंसे शिकारी ने भगवान शिव का स्मरण करते-करते सारा दिन गुजार दिया, कहते हैं अगले दिन चतुर्दशी को पास में हो रही भगवान शिव की कथा भी सुनी, तभी शाम तक साहूकार आया और उससे अगले दिन तक कर्ज चुकाने की बात कर मुक्त कर दिया। इधर भूख-प्यास से व्याकुल शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह एक तालाब के किनारे बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा,बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जिस पर शिकारी के द्वारा तोड़े हुए बिल्व पत्र गिर रहे थे। शिकारी को इस बात की खबर नहीं थी। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। रात्रि बीतते ही एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची कि तभी शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर उसका शिकार करने लगा। तभी हिरणी बोली, ‘मैं गर्भवती हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी, एक साथ दो जीवों की हत्या करना ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मुझे अपना शिकार बना लेना,शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ दिनों के इंतजार के बाद हिरणी वहां से गुजरी कि शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया तब उसे देख हिरणी ने निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी को दया आ गई और वह इस बार भी उसे जाने दिया।
वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। वहीं कुछ देर बाद हिरणी फिर से वापस आई तो शिकारी फिर से उसे अपना शिकार बनाना चाहा लेकिन हिरणी ने कहा, मैं अपने बच्चों को उसके पिता के पास छोड़ दूं इसके बाद मुझे शिकार बनाना। लेकिन इस बार शिकारी मानने को तैयार न हुआ। बोला मैंने पहले भी तुम्हें दो बार छोड़ चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं,इस प्रकार प्रात: हो आई।
उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया,अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई, जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
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इस महाशिवरात्रि महापर्व को क्यों माना है खास:- पढ़े
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