पांडव सत संगति में थे और कौरव कुसंगति में थे तो अपनी संगति को ठीक करें- ब्रह्माकुमारी गीता बहन

वेद शास्त्रों से प्यार है तो कर्म सुधारे ज्ञान समान पवित्र करने वाला इस संसार मे दूसरा कुछ भी नही उक्त बातें सिवनी मध्यप्रदेश से पधारी ब्रह्माकुमारी गीता बहनजी ने रामायण,महाभारत, एवं श्रीमद्भागवत गीता पर आधारित सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ में दशहरा मैदान ब्लॉक कॉलोनी के पास राहतगढ़ में प्रथम दिवस पर अपने प्रवचन में कही।उन्होंने आगे बताया किवेदों पुराणों का सार है श्रीमद्भागवत गीता
गीता का ज्ञान आया कहा से ?
जब व्यास जी ने विस्तार किया ग्रंथ का नाम जय हो गया और 8000 श्लोक लिखे ,फिर उनके शिष्यों ने विस्तार किया तो 24 हज़ार श्लोक और नाम पड़ा भारत संहिता,और विस्तार हुआ 1 लाख श्लोक बढ़ गए तब नाम पड़ा महाभारत ।
दुर्योधन को जब केशव ने ज्ञान देने की कोशिश की तो उसने कहा कि मुझे ज्ञान देने की कोशिश मत करना। अपना ज्ञान अपने पास रखो।
शास्त्रों में जितने भी पात्र है उनके नाम प्रतीकात्मक है।
आधुनिक महाभारत काल में पांडव वे है जो परमात्मा से प्रीत रखते है। पांडु के 5 पुत्र थे कुंती उनकी माता थी कुंती अर्थात अपने कर्तव्यों का ज्ञान रखने वाली।
पांच पांडव आधुनिक काल मे युधिष्ठिर माना युद्ध जैसी परिस्थिति में जिसकी बुद्धि स्थिर हो।भीम माना जो भय से मुक्त हो साहस का प्रतीक ज्ञान रूपी गदा जिसके हाथ में हो। अर्जुन माना -ज्ञान सुन करके ज्ञान अर्जन (धारण ) करने वाला । नकुल वह जो अच्छे गुणवान लोगों की नकल करके पांडवों की लिस्ट में गया,जिसकी बुद्धि सुन्दर बन गई।सहदेव माना श्रेष्ठ कार्य में सहयोग देने वाला ।
अर्जुन के साथ मदन मोहन था अर्थात मद न मोह न द्रौपदी माना इन पाँचों क़्वालिटी का वरण करने वाली।ऐसी द्रौपदी की रक्षा स्वयं भगवान करते है,
धृतराष्ट्र धृत माना छल से भाई की ही संपत्ति को हड़प लेना और पद पर बैठ कर सब कुछ जानते हुए भी अंधा होकर कार्य करता रहे।गांधारी जो उसकी सहचरी थी जिसने जानबूझ कर अपने आंखों पर पट्टी बांध ली थी। इसी प्रकार कौरव माना कौवे व गिद्ध की तरह दूसरे की संपत्ति छीनने की कोशिश करे दुर्योधन माना भ्रष्ट कर्म में धन लगाने वाला,दुशाशन माना जहाँ अनुशासन न हो सत्ता का दुरुपयोग करने वाले।
पांडव सत संगति में थे और कौरव कुसंगति में थे तो अपनी संगति को ठीक करें ऐसे ही उन्होंने महाभारत के अन्य पात्रों के नामों की सत्य व्याख्या कर उससे गीता ज्ञान को वर्तमान समय के अनुसार स्पष्ट किया।उन्होंने गीता का महत्व बताते हुए कहा कि यदि सारे वेद शास्त्रों को किसी गाय में डाल दिया जाए तो गीता का ज्ञान उसका दूध यानी सार है। हमें स्वयं में पांडवों की क़्वालिटी को धारण करना है अंत मे उन्होंने कुछ समय मैडिटेशन भी कराया।

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