स्वामी विवेकांनद विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का प्रथम दिवस हुआ सम्पन्न..
मप्र,सागर। अतंर्राष्ट्रीय कार्यशाला के पहले दिन स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय फार्मेसी इंजीनियरिंग कृषि विज्ञान प्रौद्योगिकी और वैश्विक आपदा के अन्तर्गत नवीनतम शोध की प्रक्रिया विषय पर प्रबंधन, तकनीकी, कृषि विज्ञान एवं विज्ञान के तत्वाधान में दिनाँक 27 फरवरी 2021 को अन्तर्राष्टीय सेमीनार आयोजित किया गया। कार्यक्रम के पहले सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन हुआ उसके बाद स्वागत भाषण में संस्थापक कुलपति डाॅ.अनिल तिवारी बताया गया कि यह हमारी नवम् (9वी) अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला है। जिसमें राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय विषयों के विषय विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्र के महत्वपूर्ण विषयों से छात्रों को अवगत करायेंगे। कुलपति डाॅ.राजेश कुमार दुबे ने अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार का औचित्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम संयोजक डाॅ.शेलेन्द्र पाटिल विस्तार से सेमीनार की रूप रेखा रखी। तरंग ध्वनि आधारित बेवीनार एवं प्रत्यक्ष वक्तव्य हेतु सेमीनार दोनों का ही समायोजन करके सेमीनार पूर्ण किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डाॅ.एल.एल कोरी, अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा ने कहा- विज्ञान की अवधारणा एवं औचित्य विज्ञान एक चिन्तन की प्रविधि है, नवीन ज्ञान अर्जित करने की विधि है। वर्तमान के प्रयोगवादी एवं यथार्थवादी युग में उस ज्ञान को प्रश्रय दिया जाने लगा जो कि वास्तविक जीवन के लिये उपयोगी हो। यही विज्ञान है जिसने मानव जीवन में एक क्रांति उत्पन्न कर दी जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का आधुनिक जीवन पूर्णतया साहित्यिक शिक्षा के अपेक्षा व्यावहारिक जीवन में उपयोगी शिक्षा की ओर ध्यान देना प्रारम्भ किया और पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों केा महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करने पर बल दिया जाने । वैष्विक आपदा में अपना कोरोना-19 के विषय में भोपाल से आये डाॅ.आनंद यादव एवं डाॅ.जी.सी.गौतम ने विषय प्रस्तु ति की। तरंग ध्वनि से जिन महानुभावों ने अपना वक्तव्य दिया उनमें गाॅन्जालो सेन्चेज डफ्हृूज ने कहा- भूण के एक्टोडर्म और एंडोडर्म से निकलने वाले ऊतकों से, हम अब मेसोडर्म से व्युत्पन्न लोगों की ओर मुड़ते हैं। कोशिकाओं की यह मध्य परत, एक्टोडर्म और एंडोडर्म के बीच सैंडविच होती है, सहायक कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करने के लिए बढ़ती और विविध होती है। यह शरीर के संयोजी ऊतकों, रक्त कोशिकाओं और रक्त वाहिकाओं, साथ ही मांसपेशियों, गुर्दे और कई अन्य संरचनाओं और कोशिका प्रकारों को जन्म देता है। हम रक्त वाहिकाओं से शुरू करते हैं डाॅ.व्ही.रविचन्द्रन ने कहा -ड्रग रिप्रस्पोजिंग पुरानी मौजूदा उपलब्ध दवाओं के लिए नए चिकित्सीय उपयोग की पहचान करने की एक प्रक्रिया है। यह नए औषधीय चिकित्सीय संकेतों के साथ दवा के अणुओं की खोज या विकास करने में एक प्रभावी रणनीति है। डाॅ.जी.गीथा तमिलनाडु – यह प्रस्तुति कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में उभरती हुई प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग सहित उनके अनुसंधान पहलुओं के बारे में है। प्रत्येक तकनीक में व्हार्ट की स्पष्ट समझ होती है गुनाधोर एस.आकराम – नैनो तकनीक 1-100 एनएम की सीमा में उनकी लंबाई के साथ सामग्रियों के गुणों और उपयोगों के फेविक्रीशन अध्ययन से संबंधित है। इस तरह के सामग्रियों के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसमें मोबाइल फोन और अन्य के रूप में उनके तेजी से फैलने वाले या आकर्षक नूरसुच के साथ उपयोग में निर्णय शामिल हैं। रेखा गर्ग सोलंकी – मेटलहाइड्राइड चक्रों का उपयोग करते हुए गर्मी ऊर्जा भंडारण और रूपांतरण प्रणालियों को विभिन्न दृष्टिकोणों से अलग किया गया हैरू अन्य गर्मी भंडारण प्रणालियों के साथ तुलना, हाइड्राइड्स और व्यावहारिक प्रतिष्ठानों का विकास। मेटलहाइड्राइड चक्रों का उपयोग करने वाली प्रणाली एक प्रकार की दो पोत प्रणालियां हैं, जो समझदार और अव्यक्त गर्मी के भंडारण की तुलना में लंबे समय तक गर्मी भंडारण का अधिक कुशल तरीका है। विशेष रूप से, हमें धातु हाइड्राइड चक्रों में किसी भी जहरीले, संक्षारक और क्षरणकारी रासायनिक पदार्थ का इलाज करने की आवश्यकता नहीं है। डाॅ.सिटौला बेनीप्रसाद नेपाल- विश्व स्वास्थ्य संगठन ब्व्टप्क्.19 के संभावित उपचारों की तलाश में दवाओं, पारंपरिक दवाओं को फिर से तैयार करने और नए उपचारों को विकसित करने सहित दुनिया भर में नवाचारों का स्वागत करता है। डब्ल्यूएचओ मानता है कि पारंपरिक, पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के कई लाभ हैं और अफ्रीका में पारंपरिक चिकित्सा और चिकित्सकों का एक लंबा इतिहास है जो आबादी की देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डाॅ. ए.पी.मिश्रा-मृदा में रासायनिक तत्वों की अधिकता के कारण मिट्टी में स्थूल तत्वों की कमी आलू की फसल की उपज को कम करने के प्रमुख कारक हैं। हालांकि, आलू की पोषण गुणवत्ता से समझौता किए बिना मिट्टी की संरचना सिया पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति बनाए रखती है।विविध विश्लेषणात्मक और स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों द्वारा संश्लेषित और विशेषता है। सभी संश्लेषित परिसरों के संबंध प्रकृति, स्टीरोकैमिस्ट्री और रासायनिक रचनाएं प्रतिशत धातु, मौलिक विश्लेषणों से अनुमान लगाए गए थेय अवरक्त, इलेक्ट्रॉनिक, मास स्पेक्ट्रा, चालकता, गलनांक, घुलनशीलता और कमरे के तापमान चुंबकीय क्षणों का मापन। डाॅ अश्वनी दीक्षित-विषय न्यट्रास्यूटिकल्स पर भोजन संबंधी होने वाले शारिरिक विकारों के विषय पर अपना वक्तव्य दिया। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलाधिपति डाॅ.अजय तिवारी ने कहा- विद्यार्थियों में विज्ञान की प्रकृति को बोध के रूप में रखा गया है, और इस बोध को वैज्ञानिक साक्षरता मान लिया गया और अब व्यक्ति से यह आशा की जाती है, कि वह विज्ञान सम्बंधी समस्याओं पर उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता हो। इसमें शोध के लिये प्रश्न विकसित करना, आंकड़े, एकत्र करना, आंकड़ों का विश्लेषण करना व निश्कर्ष निकालना आदि प्रमुख है। विज्ञान की मुख्य विशेषताओं को हम इस रूप में देख सकते हैं कि यह तर्क और प्रमाण पर आधारित ज्ञान का योग है। ’’शिक्षा में आधुनिक वैज्ञानिक प्रवृत्ति की मुख्य विशेषतायें प्रायः ठीक वे ही है, जो इन्द्रिय-यथार्थवादी प्रवृत्ति की है। मंच संचालन डाॅ.आषुतोष ष्षर्मा एवं कुमारी रेशु जैन द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन भवनी सिंह द्वारा किया गया। कार्यशाला को सुव्यवस्थित संचालन करने हेतु जिनका सहयोग प्राप्त हुआ – डाॅ.मनीष मिश्र, हरेन्द्र सारस्वत, डाॅ.सचिन तिवारी, डाॅ.नीरज तोपखाने, डाॅ.आर.नाथ, गोविंद राजपूत, डाॅ.सुनीता जैन, डाॅ.बी.व्ही.तिवारी, डाॅ.सुकदेव वाजपेयी, डाॅ.आशीष यादव, केप्टन पी.के.दत्ता डाॅ.सुनीता दीक्षित, श्रीमती अंतिमा षर्मा का रहा।
गजेन्द्र ठाकुर की ख़बर-9302303212