फसल पर पीला मौजेक बीमारी की रोकथाम के लिये किसानों को दी गई यह सलाह

पीला मौजेक बीमारी से रोकथाम के लिये किसानों को दी गई सलाह
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मप्र//सोयाबीन, उड़द, मूंग आदि फसलों में होने वाले पीला मौजेक रोग की रोकथाम एवं प्रबंधन के संबंध में किसानों को सलाह दी गई है। किसानों से कहा गया है कि वे फसलों की सतत निगरानी रखें। खेतों में जल निकासी के समुचित प्रबंध करें। कृषि विभाग के मैदानी अधिकारियों से विचार विमर्श कर आवश्यक दवाईयों का छिड़काओं करें।
बताया गया है कि यह रोग व्यापक रूप से उड़द, मूंग सोयाबीन एवं भिण्डी में होता है। यह रोग मौजेक वायरस से फैलता है और इस रोग को एक ग्रसित पौधे से दूसरे स्वस्थ्य पौधे तक सफेद मक्खी (बेमेसिया टेवेसाई) नामक कीट पहुंचाता है। इस रोग का प्रकोप फसल की प्रारंभिक अवस्था में होने पर पैदावार में बहुत अधिक कमी आती है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षण फसल पर अंकुरण के एक से दो सप्ताह बाद पौधे के सबसे ऊपरी पत्ती पर पीले-हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है जिससे ग्रसित पौधों की बढ़वार अधिकतर रूक जाती है। ग्रसित पौधे फसल में दूर से ही दिखाई देते है और द्वितीयक संक्रमण के लक्षण अंकुरण के 5 से 6 सप्ताह के बाद दिखाई देते है।
जिसमें पत्तियों पर अनियमित आकार के हल्के पीले रंग के चकते दिखाई देते है जो एक साथ मिलकर तेजी से फैलते है जिससे पत्तियों पर पीले धब्बे, हरे धब्बों के अगल-बगल दिखाई देते है और संक्रमित पत्तियॉ धीरे-धीरे पीली होकर अन्त में ऊतकक्षयी हो जाती है। इस रोग के समन्वित प्रबंधन अन्तर्गत रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन एवं कार्बोक्सीन$थायरम नामक फफूंदनाशक दवा 2 ग्राम प्रति कि.लो. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग और खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। खड़ी फसल में इसके नियंत्रण हेतु एफिडोपायरोपेन 400 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिषत एस.एल. 100 मि.ली. या पाईमेट्रोजीन 120 ग्राम या डिनोटेफ्यूरान 80 ग्राम या फ्लोनिकामिड 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये और ग्रसित पौधो को तुरन्त खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहियें।

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