Thursday, December 18, 2025

MP News: ठंड, धुंआ और प्रदूषण के मिश्रित प्रभाव ने सांस की बीमारियां बढ़ी, एक्सपर्ट डॉ सौरभ जैन ने बताये सुरक्षा उपाय

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शीत लहर और बढ़ते एक्यूआई का फेफड़े पर प्रभाव

ठंड, धुंआ और प्रदूषण के मिश्रित प्रभाव ने सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ी

सागर। शीत ऋतु एवम् बढ़ते एयर क्वालिटी इंडेक्स का सीधा असर लोगों के फेफड़ों और श्वसन नली पर पड़ता है । पिछले कुछ दिनों में ठंड, धुंध और प्रदूषण के मिश्रित प्रभाव ने सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है।

डॉ सौरभ जैन ( दमा, टी.बी, एलर्जी एवम छाती रोग विशेषज्ञ) जो बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि सर्दी के मौसम में हवा अधिक ठंडी और सूखी होने से फेफड़ों की नलियाँ सिकुड़ जातीं हैं , जिससे सर्दी , खासी और सांस लेने में कठिनाई साथ ही साँस में घरघराहट” या “सीटी जैसी सांस की आवाज़” (व्हीजिंग कफ़) आदि समस्या होतीं हैं।

इस दौरान हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 (पार्टिकुलेट मैटर) कणों का स्तर बढ़ जाने से फेफड़ों में जलन, खांसी, सीने में जकड़न और सांस फूलने जैसी समस्याएँ बढ़ जातीं हैं। अस्थमा (Asthma), सीओपीडी (COPD), ब्रोंकाइटिस, एलर्जी तथा फेफड़ों की पुरानी बीमारियां जैसे की इंटरस्टिशियल लंग डिजीस (ILD) से जूझ रहे मरीजों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इंटरस्टिशियल लंग डिजीस अर्थात फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का एक समूह, जिसमें फेफड़ों के ऊतकों में सूजन और घाव (फाइब्रोसिस) हो जाता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

डॉ सौरभ जैन का कहना है कि कम तापमान के कारण श्वसन मार्ग की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे वायरस व बैक्टीरिया जल्दी हमला करते हैं। इसके चलते बच्चों और बुजुर्गों में फ्लू, सर्दी खांसी-जुकाम और निमोनिया के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जाती है, साथ ही खराब वायु गुणवत्ता के लंबे समय तक प्रभाव में रहने से फेफड़ों की क्षमता , श्वसन कार्य एवम् ऑक्सीजन का आदान-प्रदान कम हो जाता है। यह विशेष रूप से अस्थमा , सीओपीडी, आईएलडी वाले मरीजों और बुजुर्गों के लिए हानिकारक होता है।

एक्सपर्ट सलाह :

–  सुबह-शाम की ठंडी हवा से बचें और घरों में उचित वेंटिलेशन बनाए रखें।
– ऐसे वातावरण में प्रदूषण से बचने के लिए बाहर कम से कम निकलें या फिर निकलते समय एन-95 मास्क जरूर पहनें।

– जिन मरीजों को पहले से सांस की बीमारी है, वे अपने इनहेलर/दवाइयों का नियमित रूप से उपयोग करना करें साथ ही धुआँ, धूपबत्ती और धूल से बचें।
– नाक या फेफड़ों में जकड़न होने पर भाप का सेवन करें बलगम को पतला रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएँ और संबंधित फेफड़ों ( विषय रोग विशेषज्ञ ) के डॉक्टर्स से समय – समय पर परामर्श जरूर लें एवम् फ्लू और निमोनिया के टीकाकरण लगवाएँ।

– खराब वायु की गुणवत्ता के दिनों में अनावश्यक रूप से बाहर न निकलें, प्रदूषण फैलाने वाले कारकों जैसे कचरा जलाने और धूल उड़ाने वाली गतिविधियों से बचें तथा मौसम में बदलाव के दौरान विशेष सावधानी बरतें।

सागर में डॉ सौरभ जैन से परामर्श ले सकते हैं- 88278 83111

खबर गजेंद्र ठाकुर✍️

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