दो हजार करोड़ की टैक्स चोरी मामले में नया मोड़: एलोरा टोबेको पर कार्रवाई के बाद अब 71 जीएसटी अधिकारी जांच के दायरे में
इंदौर। देश की सबसे बड़ी मानी जा रही टैक्स चोरी के मामले में सेंट्रल जीएसटी विभाग ने जांच की रफ्तार और बढ़ा दी है। एलोरा टोबेको कंपनी, दबंग दुनिया पब्लिकेशन और पांच अन्य संबद्ध फर्मों पर करीब 2002 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी निर्धारित करने के बाद अब विभाग ने अपने ही 71 अधिकारियों की भूमिका की पड़ताल शुरू कर दी है। यह अधिकारी उसी अवधि में फैक्ट्री में तैनात थे, जब उत्पादन छिपाकर बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी की जा रही थी।
नियमों के अनुसार सिगरेट निर्माण इकाइयों में प्रतिदिन कम से कम चार निरीक्षकों की उपस्थिति अनिवार्य रहती है। जुलाई 2017 से जून 2020 के बीच सांवेर रोड पर स्थित एलोरा टोबेको में कुल 76 अधिकारियों को तैनात किया गया था। इनमें 71 अधिकारी रोजाना आठ घंटे की शिफ्ट में काम कर रहे थे। इनकी जिम्मेदारी दैनिक उत्पादन, मशीनों के संचालन, कच्चे माल के रिकॉर्ड और तैयार माल की निगरानी कर रिपोर्ट कमिश्नरेट को भेजना था।
इतने कड़े प्रावधानों के बावजूद कंपनी की वास्तविक उत्पादन क्षमता छुपा ली गई। जांच में सामने आया कि कंपनी प्रतिदिन केवल एक से दो कार्टन सिगरेट बनाने का दावा कर टैक्स जमा करती रही, जबकि फैक्ट्री में प्रति दिन लगभग एक हजार कार्टन तक निर्माण करने की क्षमता थी। इससे सवाल उठने लगे हैं कि इतने बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी होते हुए निरीक्षक कैसे अनजान बने रहे।
डीजीजीआई ने 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एलोरा टोबेको पर बड़ी कार्रवाई की थी। छापों में बड़ी मात्रा में अवैध सिगरेट, मशीनें और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले थे। 268 दस्तावेजों, 92 बयानों और 45 गवाहियों का विश्लेषण करने के बाद विभाग ने 2002 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का अनुमान लगाते हुए नोटिस जारी किया।
जांच से यह भी स्पष्ट हुआ कि कागजों पर कंपनी के मालिक श्याम खेमानी दर्ज हैं, लेकिन संचालन और फैसले लेने का काम किशोर वाधवानी संभाल रहे थे। टैक्स चोरी से जुड़ी रकम के लेन-देन के लिए दबंग दुनिया पब्लिकेशन लिमिटेड सहित शिमला इंडस्ट्री, विनायका फिल्टरेट, टेन इंटरप्राइजेज, बालाजी ट्रेडर्स और नम्रता इंपेक्स जैसी कंपनियों का उपयोग किया जाता था। इन फर्मों का संचालन वाधवानी के करीबी लोगों या दबंग दुनिया के कर्मचारियों के हाथ में था।
जांच में कई और चौंकाने वाली बातें भी सामने आईं। फैक्ट्री परिसर में एक गुप्त रास्ता बनाया गया था, जिसके जरिए तैयार माल की आवाजाही होती थी। कंपनी ने केवल 16 कर्मचारियों के होने का दावा किया था, जबकि现场 जांच में 180 कर्मचारी काम करते मिले। सात में से कई मशीनों को रिकॉर्ड में खराब बताया गया, लेकिन वास्तव में उत्पादन छिपाने के लिए इन्हें जेनरेटर से चलाया जाता था ताकि बिजली खपत का हिसाब कम लगे। इन सबूतों ने कंपनी के कई दावों को कमजोर कर दिया।
इस बीच, राज्य जीएसटी विभाग की एंटी इवेज़न विंग-ए ने अलग कार्रवाई करते हुए मेटल स्क्रैप से जुड़े कारोबारों पर छापेमारी की है। देवास नाका स्थित कापर पैलेस, सांवेर रोड के टीएन स्क्रैप और मूसा स्टील सहित लगभग सात ठिकानों पर रेड की गई। प्रारंभिक जांच में बिना बिल के स्क्रैप खरीद और मिलों को बिक्री के सबूत सामने आए हैं। इसमें राज्य से बाहर के कारोबारियों से भी लिंक मिलने की जानकारी मिली है। जांच देर रात तक जारी रही और गुरुवार शाम तक टैक्स चोरी का कुल आंकड़ा सामने आने की संभावना है।
यह पूरा मामला अब अधिकारियों की भूमिका से लेकर कंपनियों के जालसाजी नेटवर्क तक कई नए सवाल खड़े कर रहा है।


