सीखने के लिए संवाद की संस्कृति आवश्यक- प्रो. मिनाती पांडा
सागर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 की भाषा नीति और भाषा संबंधी अनुशंसाओं के आलोक में डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के समाजविज्ञान शिक्षण अधिगम केंद्र और राष्ट्रीय साक्षरता केंद्र, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘मध्यप्रदेश की जनजातीय भाषाओँ में प्रौढ़ शिक्षा पर इलेक्ट्रॉनिक पाठ्य सामग्री का विकास’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का दूसरा दिन पूर्णरूपेण गतिविधि आधारित और प्रायोगिक रहा | मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय एवं जनजातीय भाषाओं / बोलियों में विषयवस्तु के निर्माण हेतु आपदा प्रबन्धन, विधिक जागरूकता, स्थानीय खेल, स्थानीय संस्कृति, स्वास्थ्य देखभाल और जागरूकता, डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता, तथा यात्रा एवं सावधानी विषयों के आलोक में व्यक्तिगत गतिविधि के तौर पर सभी प्रतिभागियों द्वारा अपनी-अपनी स्थानीय भाषाओँ / बोलियों में कहानियां एवं कविता तैयार की एवं इन विषयों पर आधारित पोस्टर भी बनाया और उनका प्रस्तुतीकरण किया गया |
इसके साथ ही साथ कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, सागर की सहायक प्राध्यापक डॉ. सरोज गुप्ता ने ‘स्थानीय भाषाओँ का महत्व एवं उनका संरक्षण’ विषय पर व्याख्यान दिया एवं जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की भाषा विज्ञानी प्रो. मिनाती पांडा ने आभासी पटल के माध्यम से आदिवासी भाषाओं में पाठ्य सामग्री तैयार करने की रणनीतियों पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि जनजातीय समूहों के पास स्वयं की अपार ज्ञान-सामग्री विद्यमान है, हमें उन्हें साक्षर करते समय उन्हीं के संदर्भों, इतिहास, भूगोल, संस्कृति आदि को आधार बनाना आवश्यक है.
समुदाय की भागीदारी के साथ ही व्यक्ति को साक्षर करने की मुहिम प्रारंभ होना चाहिए. कार्यालय के संचालन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली की ज्योति तिवारी एवं टीएलसी समन्वयक डॉ. संजय शर्मा ने किया.