सवाल करना आधुनिकता का परिचायक: प्रो संध्या सिंह
✍️गजेंद्र ठाकुर-9302303212
सागर। क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले की 192 वीं जन्म जयंती के अवसर पर डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के समाजविज्ञान शिक्षण-अधिगम केंद्र (सावित्रीबाई फुले भवन) में दिनांक; 3 जनवरी, 2023 को सुबह दीप प्रज्ज्वलन एवं सावित्रीबाई फुले की प्रतिमा पर माल्यार्पण कार्यक्रम के साथ ही साथ ‘स्त्री, शिक्षा और हम’ विषय पर ऑनलाइन राष्ट्रीय व्याख्यान का आयोजन किया गया । जिसमें राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिसद दिल्ली से प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी एवं नारीवादी विमर्शकार प्रो. संध्या सिंह मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थीं । इसके साथ ही डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री संतोष सोहगौरा, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. अम्बिका दत्त शर्मा, समाज विज्ञान शिक्षण अधिगम केंद्र के समन्वयक डॉ. संजय शर्मा, और बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भी कार्यक्रम में शिरकत की । कार्यक्रम का संचालन, विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ. आफरीन खान ने किया ।
मुख्य वक्ता प्रो. संध्या सिंह ने ‘क्रियाओं’ को मात्र ‘संज्ञा’ में बदलकर छोड़ देने की वर्तमान प्रवृत्ति के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मौजूदा दौर में आवश्यकता इस बात की है कि हम सावित्रीबाई फुले को महज संज्ञा के रूप में याद न करें बल्कि उन्हें एक क्रिया के रूप में देखें और याद करें । सावित्रीबाई फुले और अन्य समकालीन महिलाओं रमाबाई, फातिमाशेख द्वारा किये गये कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रो. सिंह ने सन 1848 से 1897 तक के पूरे कालखंड का एक शब्दचित्र प्रस्तुत किया । वर्तमान हालातों की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कुछ आंकड़ों के हवाले से उन्होंने बताया कि 26 प्रतिशत लड़कियां केवल स्कूल का माहौल ठीक न होने के कारण स्कूल छोड़ देतीं हैं, 46 प्रतिशत लड़कियों का स्कूल उनके माता-पिता ही छुड़वा देते हैं, 10 में से 9 लड़कियां प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पातीं । ऐसे हालातों के चलते यह सोचना होगा कि ऐसा क्या हुआ कि पहले जो महिलायें और लड़कियां गाँधी जी के नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा में सड़कों पर आईं वे अब विद्यालय की चार दीवारों के अंदर भी सहज महसूस क्यों नहीं कर पा रहीं हैं । इसी श्रृंखला में उन्होंने ‘हम’ के निहितार्थों पर प्रकाश डालते हुए यह चिंता जाहिर की कि हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग’ से प्रारम्भ होता है लेकिन हम पश्चिम की नजरों से स्वयं को देखने के आदी हो गये हैं । हमने न तो कभी उस ‘हम’ के निहितार्थ को समझा और न ही कभी भी खुद की आँखों से खुद को देखने की कोशिश की । फुले का कार्य / योगदान राष्ट्र मुक्ति का कार्य था । राष्ट्र मुक्ति अकेले ही नहीं होती बल्कि उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मुक्ति भी शामिल होती है । लेकिन हमने कबीर, फुले और सती प्रथा जैसे कार्यों को लगातार समाज सुधार के रूप में देखा और उन्हें संकुचित कर दिया । यानी हमने दूसरों की आँख से स्वयं को देखा, अपनी छवि दूसरों के आधार पर बनाई । प्रो. सिंह आगें बतातीं हैं कि किसी भी राष्ट्र के विकास को समझने के लिए भाषा बहुत बड़ा औज़ार है, और किसी देश के बेहतर विकास को समझना है तो स्त्रियों के लिए वहां प्रयुक्त भाषा से बेहतर कोई औज़ार नहीं है । क्योंकि भाषा भी हम के उस अहसास से जुड़ी हुई होती है । अतः महिलाओं को ‘वे’ से हम तक की यात्रा कराना शिक्षा जगत का यह मुख्य कार्य है । इसी से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि सवाल करना केवल तार्किक होना नहीं है बल्कि सवाल करना आधुनिक होना भी है। सवाल करना ‘वे’ से ‘हम’ की तरफ आने का संकेत भी है ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता, प्रख्यात दर्शनशास्त्री और प्राच्यविद प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा ने कहा कि अहिल्या, कुंती, तारा और मंदोदरी को भारतीय संस्कृति में इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है कि उनके स्मरण मात्र से ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं सावित्री बाई फुले भी इन्हीं पञ्च कन्याओं की श्रेणी में से एक हैं ।
नॉलेज इकोनॉमी में महिलाओं की भागीदारी बगैर स्त्री सशक्तीकरण सम्भव नहीं-प्रो अम्बिकादत्त शर्मा
मुख्य वक्ता प्रोफेसर संध्या सिंह द्वारा व्यक्त विचार को उदृत करते हुए प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि दुनिया ‘उत्तर’ से नहीं बदलती बल्कि दुनिया बदलती है सवाल पूछने से । और जब हम प्रश्न करना बंद कर देते हैं तो क्रिया संज्ञा में बदल जाती है और यह अतीत के निष्क्रिय गौरव बोध के निश्चयेष्टीकरण की प्रक्रिया है । याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी द्वारा क्षण भंगुर / नश्वर भौतिक संपत्ति का इनकार करने की प्रसिद्ध घटना का सन्दर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि ये भारतीय संस्कृति के स्वर हैं जहां नश्वर वस्तुओं को महत्त्व नहीं दिया जाता । इसी सन्दर्भ में महिला सशक्तिकरण के आयामों पर चर्चा करते हुए प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि मानव संसाधन के रूप में नारी को तो हमारे यहाँ स्थान प्राप्त है लेकिन नॉलेज इकनोमी में महिलाओं की भागीदारी के तौर पर भारत ही नहीं पूरी दुनिया अभी भी पिछड़ी है । और सावित्री बाई ने महिला सशक्तिकरण के इसी आयाम पर बल दिया इसी आयाम की चर्चा उन्होंने की । इसे समझे बगैर हम नारी सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते । हमें मैत्रेयी के युगीन अवतार के रूप में सावित्री बाई फुले का स्मरण करना होगा ।
कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने कार्यक्रम में आभासी पटल पर उपस्थित समस्त अतिथियों का औपचारिक आभार ज्ञापन किया ।