अपराधशास्त्र में शोध की बारीकियों के साथ वैधानिक ज्ञान भी जरूरी– प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
सागर/ “अपराधशास्त्र ज्ञान की एक विशेषीकृत शाखा है, जिसमें शोध के लिए तकनीकी बारीकियों के साथ वैज्ञानिक एवं वैधानिक ज्ञान की विशेषज्ञता जरूरी प्रतीत होती है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा और महामारी के संकट काल में अपराध व विचलनकारी व्यवहारों के जटिल होते स्वरूप ने शोध के लिए नवीन चुनौतियों को जन्म दिया है। सायबर अपराध, मानव ट्रैफिकिंग, मादक द्रव्य व्यसन के साथ ही ई-एडिक्शन, साहित्यिक चोरी या हेर-फेर, ब्लैकमेलिंग, हिंसा और दुराचार जैसी आपराधिक घटनाओं के कारण, प्रभाव व नियंत्रण जैसे बिन्दुओं पर शोध कार्य बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं , किन्तु इसके लिए शोध की विभिन्न तकनीकों व प्रविधियों के साथ ही विषय-वस्तु से संबंधित सामाजिक साँस्कृतिक एवं कानूनी प्रावधानों की भी जानकारी होना चाहिये।” ये विचार दिये प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने एक बेवीनार में।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज उत्तर प्रदेश के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान माला के 16 वें सोपान में आमंत्रित वक्ता के रूप में उदबोधन देते हुए डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्यप्रदेश के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभागमें पदस्थ प्रोफ़ेसर दिवाकर सिंह राजपूत ने “अपराध एवं सुधार विषयक शोध की बारीकियाँ” विषय पर केन्द्रित बेवीनार में विषय विशेषज्ञ के रूप में उदबोधन देते हुए शोध के नवीन आयामों पर चर्चा की। डाॅ राजपूत ने अपराध के स्वरूप, कारण और प्रभावों के साथ ही अपराध नियंत्रण और अपराधी सुधार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि शोध के माध्यम से विषय को समृद्धि देने के साथ ही सामाजिक सरोकार के लिए भी भूमिका निर्वहन कर सकते हैं। प्रो राजपूत ने कुछ दृष्टांत एवं केस स्टडीज भी प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो आशीष सक्सेना ने की । कार्यक्रम का संचालन डॉ आदित्य मिश्रा ने किया और डाॅ ने आभार व्यक्त किया।