बालाघाट के चिन्नौर की महक अब सागर में भी
जिला कलेक्टर की मदद से सागर पहुंचा चिन्नौर बीज
विधि से होगी खेती, बनेगा बीज और खुशबू दार भात भी
सागर –
जिले में धान की खेती के बढ़ते हुए रक्वे को देखते हुए जिला कलेक्टर दीपक सिंह के आवाहन और मदद से जिले में अब खुशबूदार चावल की पैदावार की बुनियाद रखी गई है। बालाघाट जिले के चिन्नौर चावल को कौन नहीं जानता। खुशबू से महकता इसका भात, सबको प्रिय है। इसीलिए जिले में सागर विकासखण्ड के ग्राम बम्हौरी और रहली विकासखण्ड के ग्राम हिन्नौती व छिरारी में चिन्नौर की खेती की शुरूआत की जा रही है। इसके लिए बालाघाट जिले से बीज बुलाया गया है। चूकि बीज की मात्रा कम है, फिर भी 5 एकड़ के रक्वे के लिए ये बीज मुनासिब है। अनूप तिवारी जिला प्रबंधक कृषि के अनुसार चिन्नौर प्रजाति के इस बीज को बौने से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखा गया है इससे बीज का तेजी से अंकुरण हो सकेगा। बीज को बौने से पहले, बीज उपचार किया जावेगा और 10ग्3 फुट की नर्सरी बैड जो जमीन से कम से कम 6-7 इंच उपर होगा इस बैड पर पॉलीथिन बिछाकर पकी हुई खाद का 60 प्रतिशत, 40 प्रतिशत खेत की बारीक मिट्टी अथवा कोकोपिट को मिलाकर बिछा दिया जावेगा। इस बैड पर उपचारित इन दानों को बिछाया जाकर मिट्टी खाद से तोप दिया जावेगा और पछियों से बचने के लिए पत्तों से ढक्कर पानी स्प्रेकर छोड़ दिया जावेगा। 7 दिन आयु की पौध हो जाने पर रोपाई शुरू की जा सकती है श्रीविधि में 7 से 15 दिन की बाल पौध को रोपा जाता है। रोपने से पहले पौधों की जड़ों को धोना नहीं है। किसान भाई ध्यान दें कि जड़ों में दाना भी लगा होना चाहिए। 25ग्25 सेंटी मीटर की दूरी पर ये पौधे रोपित होंगे। मां जगत जननी स्व. सहायता समूह ग्राम छिरारी की महिला सदस्यें का कहना है कि वे किसान उत्पादक समूह का निर्माण कर धान प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से सुगंधित धान की जिले में होने वाली विभिन्न प्रजातियों को प्रंसस्करण कर बाजार में लॉंच करेंगी। इसके पहले भी महिला समूहों ने देवके नाम से बाजार में दुग्ध उत्पादों को लॉंच किया है और बाजार में अपनी धाक जमाई है। केसली विकासखण्ड के ग्राम ऊंटकटा में शहडोल जिले से लाई गई परम्परागत सुगंधित धान, काला जीरा, जीरा फुल, होलंदी, विष्णुभोग की नर्सरी लगाई जा चुकी है। ज्ञातव्य है कि ये पुरातन धान की ऐसी सुगंधित प्रजातियां हैं जिनमें किसी भी प्रकार की जैनेटिक बॉडिफिकेशन नहीं किया गया है। खासतौर पर वर्तमान कोविड संकट जूझते समय में चावल कै शौकीन लोगों को इन प्रजातियों के सुगंधित चावल न केवल उनकी थाली की शोभा बढ़ायेंगे बल्कि सेहद को भी मजबूत कर सकेंगे। विधि से धान की खेती करने पर बीज की बचत होती है और परम्परागत तरीकों की तुलना में पैदावार अधिक होती है। जिले के सोयाबीन से छड़क चूके किसानें के लिए धान की खेती एक नया विकल्प है।
डॉ इच्छित गढपाले मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के अनुसार महिला स्व. सहायता समूहों को आधुनिक कृषि तकनीकी से जोड़ते हुए जिले के उत्पादन में वृद्धि किये जाने का प्रयास किया जा रहा है। सुगंधित धान की खेती कृषकों के लिए लाभ दायक साबित होगी। क्योंकि बाजार में प्रसंस्करण के उपरांत इनकी कीमतें सोयाबीन की तुलना में अधिक होंगी और जिला स्वयं की मांग को पूरा करने में सक्षम हो सकेगा।