पारंपरिक यूरिया का सीमित प्रयोग क्यों जरुरी है
सागर-
फसल में दिए गए पारंपरिक यूरिया का केवल 30-40 ही पौधों को मिल पाता है,बाकी भाग बर्बाद हो जाता है। बाकी बचा भाग जल स्त्रोत में पहुंचकर पानी को प्रदूषित करता है साथ ही हवा में घुलकर विषेली गैसों का निर्माण करता है जो की पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी एवं मौसम की विषमताएं आदि का कारक बनता है साथ ही मानव सहित सभी जीवधारियों में स्वास्थ सम्बन्धी समस्या पैदा होती हैं। मिट्टी में पारम्परिक यूरिया का बचा हुआ अंश मृदा पीएच को असंतुलित करता है इन सभी कारणों से जिस कारण मृदा सूक्ष्म जीवों के जीवन पर संकट पैदा होता है साथ ही पोधों को अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं फसल उत्पादन प्रभावित होता है।