श्वेत क्रांति की बयार ने बदला ज़िंदगी का ज़ायका
महिला समूहों ने एकजुट होकर खड़ी की स्वयं की मिल्क प्रोड्यूसर कंपनियां
देवऔर मुक्ता एफपीसी ने बढ़ाई आमदनी
सागर-
सागर जिले में महिला स्वयं सहायता समूहों ने मिलकर श्वेत क्रांति अर्थात पशुपालन के क्षेत्र में अपने कदम रखे और सफलता के परचम लहरा दिये। देवमहिला किसान प्रोड्यूसर कंपनी ने जिले में गढ़ाकोटा, मालथौन, बण्डा और खुरई विकासखण्डों में बीएमसी (ब्लक मिल्क चिलिंग सेंटर) का विस्तार किया जबकि वे पहले से ही केसली में 8 हजार लीटर की क्षमता की बीएमसी का संचालन कर रहीं थीं। मुक्ता एफपीसी में देवरी के महाराजपुर से बीएमसी की स्थापना की शुरूआत की और आगे बढ़ते हुए गौरझामर, बीना, जरूआखेड़ा तथा बहेरिया तिगड्डा में नवीन बीएमसी स्थापित की। दोनें कंपनियां प्रतिदिन औसतन 25 हजार लीटर दूध जिले में एकत्रित करते हुए दूध के व्यवसाय को एक नवीन दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं।
मिल्क के उत्पाद भी हैं
देवमहिला प्रोड्यूसर कंपनी ने बाजार में मिल्क उत्पाद भी लांच किये हैं इनमें मिल्क के फुल क्रीम, कंट्रोल क्रीम के पैकिट, दही मक्खन, पनीर, घी, श्रीखण्ड, छांछ, खोबा, मिठाईयां आदि उत्पाद बनाना भी शुरू कर दिया। वर्तमान में 3 हजार लीटर से अधिक केवल मिल्क पैक के रूप में स्थानीय बाजार में खपाया जा रहा है। जबकि औसतन 110 किलो घी, पनीर 40 से 42 किलो, 115 किलो मिल्क क्रीम का प्रतिदिन का व्यापार है।
बीएमसी वार दूध का संग्रहण-
मालथौन विकासखण्ड में ग्राम आगार्सिस, पिपरिया, मुहली, नानौनी, बीजरी समेत 18 से 20 ग्रामों में 200 से अधिक परिवारों से 1500 लीटर दुग्ध का संग्रहण हो रहा है। बण्डा में चौका, चील पहाडी भडराना पटाउआ, बम्हौरी, नाहर मउ समेत 18 ग्रामें से 1300 लीटर दूध का संग्रहण किया जा रहा है। महाराजपुर में 52 ग्रामें में 5500 लीटर, गौरझामर के 48 ग्रामों से 4500 लीटर, बीना के 62 गामें में 3500 लीटर, जरूआखेड़ा बेल्ट में 41 ग्रामें से 4500 लीटर बहेरिया तिगड्डा बीएमसी से 62 ग्रामों से 6500 लीटर दूध का प्रतिदिन संग्रहण किया जा रहा है। दुग्ध संग्रहण के कार्य में मिल्क रूट पर मिल्क वाहन जाते हैं। जो किसान स्वयं बीएमसी में स्वयं अपना दूध लेकर आते हैं उन्हें दो रूप्ये प्रति लीटर हैण्ड लॉड कमीशन के रूप में अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।
अन्य सेवायें भी-
दोनों प्रोड्यूसर कंपनी अपने किसानों को कृत्रिम गर्भाधान, चारागाह विकास, पशु आहार, प्रशिक्षण, एक्सपोजर, संघन ट्रेनिंग, पशुपालन सखियों की अतिरिक्त सुविधा भी उपलब्ध कराते हैं। कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से 6253 उन्नत नस्ल के वतस्य का सफल प्रजन्न प्राप्त हुआ है जिसमें भैंसा में मुर्रा, गाय में जर्सी, गिर, साहीवाल और एचएफ नस्ल प्रमुख रही किसानों ने बरसीन, मक्का, बाजरा, नैपीयर ग्रास से चारागाह विकास का कार्य किया है। जिले में वर्तमान में 42 प्रशिक्षित एआई वर्कर, इस कार्य में लगे हुए हैं।
श्रीमती राखी प्रजापति ग्राम पनारी, विकासखण्ड देवरी- राखी का परिवार खेतीहर मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहा था, महिला समूहों के साथ जुड़कर राखी ने लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह में दुग्ध उत्पादन का पाठ सीखा उनके घर में पहले से दो गायें थीं। जिनसे काम चलाउ दूध मिलता था उन्होंने एक अच्छी गाय समूह से पैसा लेकर खरीदी। धीरे-धीरे गायों की संख्या बढ़ाते हए वे प्रतिदिन 40 लीटर दूध बीएमसी भेजने लगीं समूह ने उनके पति को मिल्क संग्रहण का काम भी दे दिया है। इसके लिए 8 लाख 10 हजार रूप्ये ऋण लेकर छोटा हाथी खरीदा और वे मढ़पिपरिया जमुनिया, किशनपुरा, समनापुर समेत आठ गांव के बेल्ट से दूध संग्रहित करने लगे। इस काम से उन्होंने गाड़ी के लिए लिया गया अपना बैंक लोन चुकता कर लिया और अब एक और बोलेरो उन्होंने खरीद ली है। राखी बताती हैं कि पहले उनकी गाड़ी 8 गांव के इस बेल्ट से प्रतिदिन, प्रति गांव 30 से 35 लीटर दूध उठाती थी लेकिन अब उनके पति प्रतिदिन प्रति गांव 100 लीटर से अधिक दूध उठा रहे हैं। यही कारण है कि उन्हें एक और गाड़ी खरीदना पड़ी। लोगों को उनके डोर स्टेप पर बीएमसी दूध पहुंचाने, दूध की सही कीमत मिलने के कारण नवीन उत्पादक पशुओं का आगमन हुआ और लोगों को भी पशु पालन के माध्यम से घर बैठे अपनी रोटी कमाने का आसान जरिया मिल गया ।
पशुसखी सेवा-
आजीविका मिशन ने पंचायत स्तर पर ग्रामीण महिलाओं को पशुपालन सखी के रूप में विकसित किया है। इन महिलाओं का 7 दिवसीय संघन प्रशिक्षण हुआ जिसमें इनको पशु पालन टीकाकारण, कृत्रिम गर्भाधान, चारागाह विकास आदि विषयों पर अनिवार्य जानकारी भी दी गई। अनूप तिवारी जिला प्रबंधक, कृषि एवं पशु पालन ने बताया कि इनके ज्ञान कौशल को बढ़ाने के लिए एनडीआरआई करनाल में भी इनके प्रशिक्षण और एक्सपोजर कराये गये। जहां इन्होंने स्वच्छ दूध उत्पादन मिल्क प्रोड्क्ट निर्माण, उन्नत पशु पालन के सबक को सीखा।
महिला नेतृत्व विकास-
हरीश दुबे, जिला परियोजना प्रबंधक ने बताया कि देवमहिला प्रोड्यूसर कंपनी के माध्यम से केसली में बीएमसी की बुनियाद रखी गई थी शुरूआती दौर में बमुश्किल 40 से 50 लीटर प्रतिदिन से शुरू हुआ दुग्ध संग्रहण का ये सफर आज 15 हजार लीटर प्रतिदिन से अधिक पहुंचा है। इसमें पूर्व में डीपीआई और वर्तमान में आजीविका मिशन के माध्यम से सतत प्रयास शामिल हैं। इसके लिए लगातार लोगें से संपर्क समय पर भुगतान पारदर्शी प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए उन्नत उपकरणों की उपलब्धता को समय- समय पर जुटाया जाता है। वर्तमान में ऑटोमेटिक मशीन के माध्यम से दूध की पैकिंग होती है। प्रति फैट के आधार पर किसानों को सीधा उनके खाते में भुगतान किया जाता है।
जिला स्तर पर मिल्क आउटलेट भी
नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से इस कार्य को ओर अधिक आगे बढ़ाने के लिए मेडीकल कॉलेज रोड पर एक आउट लेट की स्थापना भी की गई है। नाबार्ड द्वारा संचालिए रूरल मार्ट जिसमें महिला स्वयं सहायता समूहों के द्वारा बनाये जाने वाले उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए नाबार्ड दो वर्ष तक आउट लेट स्थापना हेतु वित्तीय सहयोग देगा। इसी के अंतर्गत सीजीएम नाबार्ड टीएस राजीगैन, जिला कलेक्टर दीपक सिंह, डॉ. इच्छित गढ़पाले के माध्यम से देवउत्पादों के विपणन के लिए इस आउट लेट का शुभारंभ किया गया था।
ललित मोहन बेलवाल, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, आजीविका मिशन, भोपाल का कहना है कि आजीविका मिशन कि माध्यम से कृषि क्षेत्र में महिला समूहों को आगे लाने के लिए पशुपालन गतिविधियों पर फोक्स करते हुए इसे भी उनकी आजीविका का आधार बनाये जाने की दिशा में प्रयास किये गये। दूध के अलावा गोबर, गौ मूत्र का खेती में जैविक खाद और कीटनाशक निर्माण विधियों पर महिलाओं को जानकारी दी गई आज जिले की महिलायें पंचगव्य, मिनरल पौषक तत्वों का निर्माण कर रहीं हैं। पशु पालन सखियों को प्रदेश के बाहर हरियाणा व उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उनकी सेवायें लीं हैं।
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन के माध्यम से आजीविका को विकसित करने के लिए किसानें को दुग्ध उत्पादन और विपणन सहयोग की दिशा में दोनें प्रोड्यूसर कंपनी के माध्यम से महिला समूहों को नेतृत्व सौंपते हुए मिल्क संग्रहण इकाईयों का स्थापन किया गया है। यही कारण है कि कोविड के कठिन दौर में भी इन किसानों को आर्थिक स्वावंलबन किया दिशा में एक मजबूत सहयोग मिला है। इतना ही नहीं जिले के किसानें को उन्नत पशुपालन तथा उत्पादक पशुओं के विकास के लिए एआई वर्कर्स की सक्षम टीम तैयार की गई है। मुझे खुशी है कि महिलाआें ने अपने दायित्वों का सफलता पूर्वक निर्वाहन किया है और देवके उत्पाद अब जिले में अपना स्थान बना रही है। इतना ही नहीं निराश्रित गौ-वंशों को सहारा देने के लिए जिले के महिला समूह गौ-शालाओं का भी सफल संचालन कर रहे हैं।
……………. दीपक सिंह, जिला कलेक्टर
पशु पालन को प्रोत्साहन देने के लिए मनरेगा के माध्यम से मिल्क रूट में पशु शेड खेत तालाब सिंचाई संरचनायें और सूनी पहाड़ियों पर हरियाली का विकास किया जा रहा है। सफल उद्यमी महिलाओं को एनडीडीबी आनंद, एनडीआरआई करनाल में विशेषज्ञों के माध्यम से उन्नत प्रशिक्षण कराया जाकर उनका कौशल विकास किया गया है। जिले में उनकी आजीविका के साधनों में विकास हो इसके लिए बैंक लिंकेज भी किया गया है। ग्रामीण विकास विभाग पशुपालन के अतिरिक्त कुक्कट विकास में भी इन्हें आगे ला रहा है। वर्तमान में जिले में पांच मदर इकाईयों के माध्यम से कड़कनाथमुर्गी पालन का सफल नवाचार भी किया गया।
……………………… डॉ. इच्छित गढ़पाले मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत सागर
बदलाव-
केसली में आजीविका मिशन के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूहों के परिसंघ ने देवब्रांड से मिल्क प्रोडक्ट बाजार में उतारे हैं। अब मांग बढ़ने के साथ मिल्क उत्पादन को बढ़ाये जाने की ओर इन महिलाआें ने फोक्स करना शुरू किया है। इन्होंने गायों में गिर, जर्सी, साहीवाल, थारपारकर और भैंस में मुर्रा नस्ल के सांडों का बीज कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से डलवाकर नस्ल सुधार कार्यक्रम को अपना लिया है। केसली विकासखण्ड के ग्राम सोनपुर में लगभग 150 अनुसूचित जनजातीय परिवार देवफामर्स प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़कर दुग्ध उत्पादन के कार्य में जुट गये। इस ग्राम में 7 स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है। जिनमें सोनम, कविता, गोपाल-कृष्ण समूह, सरस्वती समूह, सीताराम समूह, लक्ष्मी समूह से लगभग 70 परिवारों की महिलाओं का जुड़ाव है। महिलायें बताती हैं कि दूध डेयरी से जुड़ने के पहले वे परम्परागत तरीके से धान और मौसमी फसलों के उत्पादन का कार्य करती थीं। लेकिन देवके माध्यम से उन्होंने पहले तो बाजार से अधिक उत्पादन देने वाले पशु खरीदे बाद में उन्होंने पाया कि कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से वे स्वयं अपने घरों में ही पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम के आधार पर उन्नत नस्ल के पशु बना सकते हैं। इस कार्यक्रम में आजीविका मिशन और पशुपालन विभाग से आगे आकर उनके साथ काम शुरू किया। फलस्वरूप सोनपुर में 6 से अधिक परिवारों ने ग्राम भोंहारा में 8 परिवारों ने 20 पशुओं का , पठा में 12 परिवारों ने 38 पशुओं का, डोमा में 13 परिवारों ने 32 पशुओं का 16 ग्रामां में 300 से अधिक पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराया गया है। डॉ. आरपी यादव उपसंचालक पशु स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवायें के अनुसार कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से देशी पशुओं से ही उन्नत नस्ल के दुधारू पशु प्राप्त होते हैं जो ग्रामीण परिवेश और वातावरण आसानी ढल जाते हैं और कृषकों को उनकी देखभाल में अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं उठाना होता है। हरीश दुबे, जिला परियोजना प्रबंधक ने बताया कि देवके माध्यम से भारतीय नस्ल के पशुओं के उत्पादन की दिशा को प्राथमिकता दी जा रही है। गिर, साहीवाल, थारपारकर, आदि भारत की परम्परागत पशु गाय की नस्लें हैं जिनके दूध में ए-2 प्रोटीन पाया जाता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता में सहायक होता है।
राजीव शर्मा आयुक्त हस्तकरघा विकास निगम ने आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं के द्वारा निर्मित उत्पाद और देवफामर्स प्रोड्यूसर कंपनी के द्वारा जिला स्तरीय आउट लेट का भ्रमण किया।
मेडीकल कॉलेज रोड पर स्थित देवआउटलेट में श्रीशर्मा ने पहुंचकर महिला समूहों के द्वारा संग्रहित और प्रसंस्कृत देवमिल्क प्रोड्क्ट के आउटलेट में इन उत्पादों को सजीव देखा उन्होंने कहा कि मिशन के माध्यम से महिलाओं के द्वारा गुणवत्ता पूर्ण उत्पादों का बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकने योग्य पैक बनाया जा रहा है। ये बहुत खुशी की बात है कि सागर जिले में इन महिलाओं ने इस स्तर तक बाजार की स्पर्धा की अपनी तैयारी कर रखी है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के द्वारा निर्मित गारमेंर्ट्स हस्तकरघा सामग्री के विपणन में निगम भी मदद के लिए तैयार है। आवश्यकता पड़ने पर इन महिलाओं को निगम कुशल कारीगरों की मदद से उत्पादों के निर्माण में तत्पर है। मृगनयनी इम्पोरियम में भी इन उत्पादों को विपणन के लिए यथोचित मदद दी जावेगी। उन्होंने तत्काल निगम से जुडे़ अधिकारियों को निर्देश दिये कि महिला समूहों के उत्पाद को भी समुचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए मृगनयनी काउंटर में स्थान दें। शर्मा ने बताया कि महिलाओं के द्वारा निर्मित मास्क और पीपीई किट रसायन रहित साबुन, गाय का देशी घी बहुत उमदा क्वालिटी का है। स्थानीय बाजार में लोगों को आगे आकर इनके इस्तेमाल में सहयोग करना चाहिए और इससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में सुधार होगा। वॉकल फॉर लोकल तथा आत्म निर्भर मध्य प्रदेश के सपने को पूरा करने में महिला समूहों का महत्वपूर्ण योगदान होगा।