भारत में अपराधशास्त्र की शुरुआत सागर विश्वविद्यालय से हुई– अंतर्राष्ट्रीयवेबीनार में प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा
अपराधी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए सामाजिक परिवेश की भूमिका महत्वपूर्ण : दिवाकर सिंह राजपूत
सागर-
सागर/ “आज पूरा विश्व कोविड-19 महामारी के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में भी कुछ लोग अपराध करने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसे लोगों को अपराधी प्रवृत्ति, अवसरवादी, स्वार्थी और लालची की श्रेणी में रखा जाना चाहिए । समाज के लिए यही सबसे ज्यादा घातक होते हैं। इनका सामाजीकरण और व्यक्तित्व विकास सामाजिक-मानसिक रूप से प्रदूषित एवं व्याधि ग्रसित होते हैं। इनको दण्ड के साथ सुधार की जरूरत होती है। कुछ लोगों से अनजाने में या अनायास या आत्म रक्षार्थ अपराध घटित हो जाते हैं, उनके लिए सुधारात्मक कार्यक्रमों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।” ये विचार दिये प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने।
“समाज, अपराध एवं सुधार” विषय पर केन्द्रित एक अंतर्राष्ट्रीय बेवीनार में मुख्य वक्ता के रूप में उदबोधन देते हुए प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा कि समाज में रहकर व्यक्ति सामाजिक मूल्यों को सीखता है, सुरक्षा और विकास के आधार पाता है। इसलिए आदर्श समाज के निर्माण में मूल्य परक सामाजिक परिवेश की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। डाॅ राजपूत ने अपराध के कारण-शास्त्र के ऐतिहासिक विकासक्रम को विस्तार से चर्चा करते हुए निवारण के लिए दण्ड व सुधार के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। अपराधशास्त्र विषय के विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षण की शुरुआत के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि भारत में सबसे पहले अपराधशास्त्र की शुरुआत सागर विश्वविद्यालय में हुई। डाॅ राजपूत ने जेल सुधार एवं उत्तर संरक्षण कार्यक्रमों की भी चर्चा की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंटल स्टडीज के प्रोफेसर अनन्त कुमार गिरि ने अपराधों के मानसिकता की चर्चा करते हुए जेल सुधार के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों का उल्लेख किया। डाॅ गिरि ने कुछ अध्ययनों का संदर्भ भी प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम संयोजक रणधीर गौतम सहायक प्राध्यापक रैफल्स विश्वविद्यालय नीमराना राजस्थान ने विषय की भूमिका प्रस्तुत करते हुए स्वागत भाषण दिया। अंतर्राष्ट्रीय बेवीनार का आयोजन स्वाध्याय सहचक्र भारत, रैफल्स विश्वविद्यालय नीमराना राजस्थान, रेस ग्लोबल फाउण्डेशन अमरीका और विश्वनीदम सेंटर मद्रास के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। अंत में सर्वडाॅ आनंद पुणे, वी के सिंह वाराणासी, किरण वर्धा, सोनम दुर्ग, संध्या गिरि उडीसा, डाॅ संगीता मिश्रा एवं डाॅ मितानी प्रधान आदि ने अकादमिक विमर्श में प्रश्नोत्तर के माध्यम से सहभागिता की।