नई दिल्ली। देश के नागरिक अधिकारों को और मजबूत करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय पुलिस को गिरफ्तारी के आधार की लिखित जानकारी देना अनिवार्य होगा। साथ ही, गिरफ्तार व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह इस लिखित सूचना की प्रति अपने परिवार के सदस्य या किसी मित्र को दे सके। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सूचना की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो गिरफ्तार व्यक्ति समझ सके।
यह निर्णय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि अब तक कई मामलों में पुलिस बिना कारण बताए या बिना लिखित सूचना दिए गिरफ्तारियां करती रही है। 6 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ए. जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की प्रति सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि आदेश का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
भारत में गिरफ्तारी के मौजूदा कानून और प्रावधान
भारतीय संविधान और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) नागरिकों को गिरफ्तारी के दौरान कई अधिकार प्रदान करते हैं। CrPC की धारा 41 से 60A तक गिरफ्तारी से जुड़ी प्रक्रियाएं और सुरक्षा प्रावधान विस्तार से बताए गए हैं।
इसके अलावा, हाल में लागू हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में भी इसी तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं। पुराने मामलों में CrPC लागू रहेगा, जबकि नए मामलों में BNSS के प्रावधान प्रभावी होंगे। इन कानूनों के तहत पुलिस को गिरफ्तारी के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन करना जरूरी है —
1. गिरफ्तारी का कारण बताना: पुलिस को स्पष्ट रूप से बताना होगा कि व्यक्ति को किस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है।
2. परिवार को सूचना देना: गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार या मित्र को गिरफ्तारी की सूचना देना अनिवार्य है।
3. गिरफ्तारी मेमो तैयार करना: इसमें समय, स्थान और कारण का उल्लेख होना चाहिए, जिस पर गिरफ्तार व्यक्ति और एक स्वतंत्र गवाह के हस्ताक्षर हों।
4. मेडिकल जांच: गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति की मेडिकल जांच कराना जरूरी है ताकि किसी भी तरह की शारीरिक चोट या उत्पीड़न की जानकारी दर्ज की जा सके।
5. 24 घंटे में पेशी: गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है।
संविधान का अनुच्छेद 22(1): नागरिकों की सुरक्षा की ढाल
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22(1) गिरफ्तारी और हिरासत में लिए गए व्यक्ति को विशेष अधिकार प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के तहत:
गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी तुरंत दी जानी चाहिए।
उसे अपनी पसंद के वकील से परामर्श और सहायता लेने का अधिकार है।
24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी अनिवार्य है, ताकि उसकी गिरफ्तारी की वैधता की जांच हो सके।
यह अनुच्छेद नागरिकों को मनमानी गिरफ्तारी और अवैध हिरासत से बचाने के लिए संवैधानिक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
कानून विशेषज्ञों की राय: ‘यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता की जीत’
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे का कहना है कि यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में नागरिक स्वतंत्रता को मजबूत करता है। उनके अनुसार, अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि गिरफ्तारी के आधार की लिखित सूचना देना कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मौलिक सुरक्षा है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 और नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 47 के तहत भी यही प्रावधान हैं कि पुलिस को गिरफ्तारी के कारणों की लिखित जानकारी देना आवश्यक है।
अगर किसी आपात स्थिति में तुरंत लिखित आधार नहीं दिया जा सकता, तो मजिस्ट्रेट के समक्ष रिमांड के लिए पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले यह सूचना देना अनिवार्य होगा।
पुलिस के लिए अनिवार्य नियम
सुप्रीम कोर्ट और भारतीय कानून के अनुसार पुलिस को गिरफ्तारी के समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना होगा:
गिरफ्तारी के कारणों की लिखित सूचना देना
गिरफ्तारी की जानकारी परिवार या मित्र को देना
गिरफ्तारी मेमो तैयार करना और उस पर गवाहों के हस्ताक्षर कराना
हर 48 घंटे में मेडिकल जांच कराना, खासकर जब व्यक्ति पुलिस रिमांड में हो
गिरफ्तार व्यक्ति के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना और उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करना
अगर इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी अवैध मानी जा सकती है, और संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी संभव है।
फैसले का व्यापक प्रभाव: नागरिकों को मिलेगा न्यायिक सुरक्षा कवच
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल एक कानूनी निर्देश नहीं, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता की पुनर्पुष्टि है। यह पुलिस की मनमानी पर रोक लगाने और कानून के शासन को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम है। इससे पुलिस व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी तथा नागरिकों का न्याय प्रणाली पर विश्वास और गहरा होगा।
भारतीय संविधान पहले से ही गिरफ्तारी के समय अधिकारों की जानकारी देने का प्रावधान करता है, लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश ने इसे और अधिक स्पष्ट, बाध्यकारी और प्रभावी बना दिया है।
