अनंत चतुर्दशी 2025 : भगवान विष्णु और गणपति विसर्जन का संगम, जानें महत्व, कथा और व्रत विधान

अनंत चतुर्दशी 2025 : भगवान विष्णु और गणपति विसर्जन का संगम, जानें महत्व, कथा और व्रत विधान

सागर। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली अनंत चतुर्दशी इस वर्ष 2025 में विशेष संयोग लेकर आ रही है। यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित होने के साथ-साथ गणेशोत्सव का अंतिम दिन भी माना जाता है। इस दिन देशभर में भव्य जुलूसों और श्रद्धापूर्वक अनुष्ठानों के साथ गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाएगा, वहीं विष्णु भक्त अनंत सूत्र बांधकर कष्टों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।

अनंत चतुर्दशी का महत्व

‘अनंत’ का अर्थ है शाश्वत। यह पर्व भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना का दिन है। मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने से जीवन की सारी परेशानियाँ दूर होती हैं और घर-परिवार में शांति और समृद्धि आती है। इस दिन भक्त विशेष रूप से अनंत सूत्र (14 गांठ वाला पवित्र धागा) कलाई पर बांधते हैं। इन गांठों का संबंध सृष्टि के 14 लोकों से बताया गया है।

व्रत और पूजा विधि

अनंत चतुर्दशी की पूजा यमुना नदी, भगवान शेषनाग और भगवान विष्णु को समर्पित होती है। पूजा की शुरुआत कलश स्थापना और देवी यमुना की आराधना से होती है। दूर्वा घास शेषनाग को अर्पित की जाती है और कुश से बने अनंत की स्थापना की जाती है। इसके बाद सूती या रेशमी धागे को अनुष्ठानपूर्वक कलाई पर बांधा जाता है।

सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है।

पूजा के पूर्व गणेश जी की आराधना की जाती है।

अनंत सूत्र बांधते समय अनंत कथा सुनना या सुनाना आवश्यक माना गया है।

पूरे दिन फलाहार और दान-पुण्य करने की परंपरा है।

अनंत चतुर्दशी की कथा

कहा जाता है कि ऋषि सुमंत की पुत्री सुशीला ने पहली बार यह व्रत किया था। उनकी गरीबी दूर हुई और जीवन में सुख-समृद्धि लौटी। लेकिन जब उनके पति कौंडिन्य ने अहंकारवश अनंत सूत्र त्याग दिया तो दुर्भाग्य लौट आया। बाद में उन्होंने चौदह वर्षों तक यह व्रत कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और सब कुछ पुनः प्राप्त किया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने वनवास के दौरान यह व्रत किया था और महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त की। राजा हरिश्चंद्र ने भी इस व्रत के प्रभाव से अपना खोया हुआ राज्य वापस पाया।

गणेश विसर्जन का महत्व

अनंत चतुर्दशी का दिन गणेशोत्सव का समापन भी होता है। दस दिनों तक घर-घर और पंडालों में स्थापित गणेश जी की मूर्तियों को इस दिन नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। भक्त “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारों के साथ गणेश जी को विदाई देते हैं।

जैन धर्म में भी महत्व

जैन धर्म में भी यह दिन बेहद महत्वपूर्ण है। जैन अनुयायी इस दिन कठोर उपवास रखते हैं और कई तो जल तक ग्रहण नहीं करते। इसे आत्मसंयम और तपस्या का विशेष पर्व माना जाता है।

शहरवार मुहूर्त

अनंत चतुर्दशी का व्रत पूरे देश में मनाया जाएगा, लेकिन पूजा का सटीक समय हर शहर में सूर्योदय और सूर्यास्त के अनुसार भिन्न होगा। इसलिए पंडितों का सुझाव है कि श्रद्धालु अपने स्थानीय पंचांग और चौघड़िया देखकर ही पूजा का समय तय करें।

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