सरकारी कॉलेज के अतिथि विद्वान हटाए या बदले नहीं जा सकते- सुप्रीम कोर्ट
सागर। प्रदेश के सरकारी कॉलेज में अध्यापन व्यवस्था अतिथि विद्वानों के भरोसे है। लंबे समय से दैनिक मानदेय पर काम कर रहे ये अतिथि विद्वान पिछले कई सालों से फिक्स वेतन के साथ स्थाई नियुक्ति की मांग सरकार से कर रहे हैं। कॉलेजों में इसे लेकर दो तरह की व्यवस्था संचालित है। एक रिक्त पद के विरुद्ध तथा दूसरी जनभागीदारी मद से। रिक्त पद के विरुद्ध के अतिथि विद्वानों के मानदेय का निर्धारण शासन स्तर पर पूरे प्रदेश में समान रूप से लागू किया जाता है। जबकि जनभागदारी मद से कार्यरत अतिथि विद्वानों के मानदेय की दर जनभागीदारी समिति की मर्जी से तय होती है, जो रिक्त पद के अतिथि विद्वान की तुलना में काफी कम रहती है तथा उनके समान इन्हे शासन के स्वीकृत अवकाश की पात्रता भी नही रहती है। जबकि चयन के मापदंड और काम की शर्ते दोनो की ही समान रूप से हैं।
स्थाई नियुक्ति और फिक्स वेतन की बार बार मांग करने और आश्वासन मिलने के बावजूद सरकारों के अदला बदली के बाद भी इनकी स्थिति जस के तस बनी हुई है। सरकार में सुनवाई नहीं होने पर इनके द्वारा हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाज़ा खटखटाया जा चुका है। इस बीच कोर्ट से इन्हे महज इतनी राहत मिली है कि कार्यरत किसी भी अतिथि विद्वानों को हटाकर उसी पद पर दूसरा कोई नया अतिथि विद्वान नहीं रखा जा सकता है। इसके अलावा रिक्त पद के विरुद्ध काम कर रहे अतिथि विद्वान के पद पर स्थाई नियुक्ति होने की स्थिति में उस अतिथि विद्वान को फालेन आउट तो किया जा सकता है लेकिन उसे सरकार के किसी अन्य कॉलेज में रिक्त पद पर जाने का मौका दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन जनभागीदारी समिति को स्थाई नियुक्ति का अधिकार नहीं होने के चलते इस व्यवस्था के विद्वानों को रिप्लेस या हटाए जाने पर भी सुप्रीम कोर्ट की रोक है।
मिली जानकारी के अनुसार गर्ल्स डिग्री ऑटोनोमन कॉलेज सागर में यह अतिथि विद्वान जबकि पूर्व के नियमों से भर्ती किये गए थे जिनपर नया नियम लागू नही होगा
जिनमें क्रमशः- उग्रदास वर्मा, सुजाता नेमा, धर्मेंद्र सिंह, अभिषेक समैया, दीपेश जैन, अनिमेश जैन, मनीषी शाक्य, भूपेंद्र अहिरवार, नरगिस खान, शिखा कोष्टी, समरा खान, परमेश्वर दयाल, शुभांजली रैकवार, सुप्रिया यादव, अमिता विश्वकर्मा, सपना राजौरिया और निक्की बांगर शामिल है।
सूत्र बताते हैं गर्ल्स डिग्री कॉलेज सागर में षड्यंत्र के तरह पुराने अतिथि विद्वानों को हटाने की चर्चाएं चल रही है जबकि ऐसा हुआ तो वरिष्ठ उच्च शिक्षा अधिकारियों को कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता हैं वहीं पुराने नियमों के तरह कार्य कर रहे प्रदेशभर के अतिथि विद्वान सड़को पर आकर विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं।