भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र बिंदु है मध्य प्रदेश- प्रो. विभा त्रिपाठी

भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र बिंदु है मध्य प्रदेश- प्रो. विभा त्रिपाठी
सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में आज 28 फरवरी को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र आयोजित किया गया, इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश की कला एवं संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर शोध पत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं , उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर पी.के.कठल ने की। उद्घाटन सत्र की शुरुआत प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे के स्वागत उद्बोधन से हुआ उन्होंने मंचासीन कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर पी.के.कठल, मुख्य अतिथि प्रोफेसर आलोक त्रिपाठी, मुख्य वक्ता प्रोफेसर विभा त्रिपाठी , अधिष्ठाता प्रोफेसर डी.एस.राजपूत व सभागार में उपस्थित अन्य विद्वत जनों का स्वागत किया और उन्होंने कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता का मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया।
मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग की एमिरेट्स प्रोफेसर ,प्रो विभा त्रिपाठी ने अपने बीज वक्तव्य में मध्य प्रदेश के पुरातात्विक व ऐतिहासिक पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया की किस प्रकार मध्य प्रदेश भारतवर्ष की संस्कृति और सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे भारत के हृदय स्थल के रूप में इसकी पहचान और प्रभावी हो जाती है, मध्यप्रदेश भारतीय सभ्यता और संस्कृति के केंद्र बिंदु में रखे जाने के विभिन्न कारणों को अपने अंदर सहेजे हुए “आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः” के श्लोक को चरितार्थ कर रहा है।
उन्होंने मध्य प्रदेश में ताम्रश्मीय काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के दौरान पाए गए पुरातात्विक अवेशेषों व पुरास्थलों के महत्व के विषय में विस्तार से बताया व इस दौरान के विभिन्न पुरास्थल आदमगढ़,कायथा ,एरण, खजुराहो, चौसठ योगिनी मन्दिर इत्यादि पुरास्थलों और प्राप्त पुरातात्विक महत्व के पुरावशेषों पर विस्तार से प्रकाश डाला और उन्होंने शोधार्थियों से आगे विभिन्न पुरातात्विक महत्व के अनछुए पहलुओं पर स्वतन्त्र सोच के साथ कार्य करने की सलाह दी।
मुख्य अतिथि प्रो. आलोक त्रिपाठी, अतिरिक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, (नई दिल्ली) ने मध्य प्रदेश की कला और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने के साथ औपनिवेशिक मानसिकता से हटकर पुरातात्विक महत्व के पुरास्थलों और प्राप्त सामग्री की स्वतन्त्र व्याख्या करने पर बल दिया उन्होंने यह अपील की, कि प्राप्त अवशेषों का अध्ययन उस समय के मानव और उनके कार्यप्रणाली उनकी सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था को जानने के लिए करने की आवश्यकता है, ना की परंपरागत मानसिकता के अनुसार साथ ही उन्होंने आने वाले शोधार्थियों और पुरातत्व के विद्यार्थियों को नवीन दृष्टिकोण से कार्य करने की सलाह दी।
अधिष्ठाता प्रोफेसर डी.एस.राजपूत ने भी कला और संस्कृति के विषय पर अपनी राय और अपने विचारों को साझा किया साथ ही उन्होंने कहा की हमारे जीवन जीने की शैली को संरक्षित करने का कार्य कला और संस्कृति करती है, वर्तमान में आवश्यकता है हमारे अतीत की कला और संस्कृति के विषय में अधिक जानने की और उनके योगदान को समझने की।
कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर पी.के.कठल ने इसे गौरव का पल बताया और कहा कि जब हम किसी गूढ़ विषय को समझने का प्रयत्न करते हैं , तो हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए विज्ञान का कार्य चीजों को जटिल तरीके से पेश करना नही है अपितु उसको सरलता के साथ प्रस्तुत करना है वर्तमान में आवश्यकता है, कि जब हम किसी वस्तु को देखें तो उसे एक नए नजरिए से देखने का प्रयास करें ना कि विद्यमान ज्ञान के अनुरूप।
विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग व बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान लखनऊ (उ.प्र.) के मध्य विभिन्न अकादमिक एवं शोध कार्यों हेतु हुआ एमओयू
इस अवसर डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग व बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान लखनऊ (उ.प्र.) के मध्य विभिन्न अकादमिक एवं शोध कार्यों के समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो सत्यप्रकाश उपाध्याय व डॉ. नीरज राय, निदेशक बीरबल साहनी वानस्पतिक शोध संस्थान लखनऊ के द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के समन्वयक और निदेशक डॉ सुरेंद्र यादव ने आभार ज्ञापित किया और साथ ही कार्यक्रम के रूपरेखा के विषय में बताया कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ पंकज सिंह के द्वारा किया गया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया प्रथम तकनीकी सत्र के विषय विशेषज्ञ प्रोफेसर बीके श्रीवास्तव ,अध्यक्ष इतिहास विभाग थे | प्रोफेसर सरोज गुप्ता ने तकनीकी सत्र की अध्यक्षता की डॉ निधि पांडे ने इस तकनीकी सत्र का संचालन किया इस तकनीकी सत्र के दौरान कुल पांच शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी अध्यक्ष हिंदी विभाग, डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, ने की | विषय विशेषज्ञ प्रोफेसर शिवाकांत वाजपेयी रहे, इस तकनीकी सत्र का संचालन डॉ. आर.पी सिंह ने किया इस तकनीकी सत्र के दौरान कुल 10 शोध पत्र प्रस्तुत किये गए | इस सत्र में डॉ नीरज राय, डॉ सुरेंद्र चौरसिया,डॉ मनोज कुर्मी, डॉ मनोज कुमार सिंह, डॉ उमा पराशर एवं डॉ निधि पांडेय आदि ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम में विभाग के अतिथि विद्वान डॉ शिव कुमार परोचे, डॉ मशकूर अहमद कादरी, संस्कृत विभाग के डॉ शशि कुमार सिंह, डॉ नॉनिहाल गौतम, डॉ संजय कुमार, डॉ किरण आर्या, डॉ संजय बारोलिया, डॉ प्रीति बागड़े, भरत यादव, संजय आठिया, यामिनी योगी, ईशा आदि उपस्थित थे।

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