लीवर दान कर भाई की जान बचाना चाहता था भाई,पत्नी न जताई आपत्ति,कोर्ट पहुंचा मामला 

लीवर दान कर भाई की जान बचाना चाहता था भाई,पत्नी न जताई आपत्ति,कोर्ट पहुंचा मामला 

भोपाल। यहां एक शख्स अपने भाई की जान बचाने के लिए उसे अपना लीवर दान करना चाहता था मगर उसकी पत्नी को यह बात मंजूर नहीं थी। वह बार-बार उसका विरोध कर रही थी। पति का कहना था कि वह अपने भाई को लीवर जरूर देगा वहीं पत्नी कहती थी कि नहीं तुम अपने भाई को लीवर नहीं दोगे। शख्स ने भाई को लीवर देने के लिए अस्पताल में भी संपर्क कर लिया मगर उसकी पत्नी ने इस पर आप्पत्ति जता दी। बात इतनी बढ़ गई कि मामला कोर्ट पहुंच गया।

अब इस मामले पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। एमपी हाईकोर्ट ने अपना फैसला शख्स के पक्ष में सुनाय है। हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी की बात पर इसलिए ध्यान नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उसका पति एकदम सेहतमंद है। इसकी हेल्थ ठीक है। वह अपने लीवर का एक हिस्सा अपने बीमार भाई को देने के लिए तैयार है।

दरअसल, शख्स के बीमर भाई को तत्काल ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। शख्स इसके लिए पूरी तरह तैयार था मगर उसकी पत्नी इसके लिए तैयार नहीं थी। अस्पताल में पत्नी ने आपत्ति जता दी जिसके कारण उसके भाई का ट्रांसप्लांट रुक गया।

कोर्ट ने कहा- पत्नी अपने पति के फैसले पर हावी नहीं हो सकती 

मामले में अब कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने जो चेतावनी दी थी वह याचिकाकर्ता के अधिकार पर हावी नहीं हो सकती। याचिकाकर्ता की पत्नी की आपत्ति उसके वैवाहिक जीवन को सफल बनाए रखने के लिए आदर्श हो सकती है लेकिन लीवर ट्रांसप्लांट से पहले यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि इससे उसके पति की मौत हो जाएगी।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि लीवर एक ऐसा अंग है जो समय के साथ बढ़ता है। वर्तमान में मेडिकल साइंस के कारण अंगों का सफलतापूर्वक दूसरे के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। कोर्ट ने आगे कहा कि पत्नी की धारणा पति की इच्छा से तुलना नहीं की जा सकती। वह अपना लीवर दान कर अपने भाई की जान बचाना चाहता है। विभिन्न तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए पति के फैसले को अवैध नहीं ठहराया जा सकता। बता दें कि पत्नी के इनकार के बाद जब अस्पताल ने लीवर ट्रांसप्लांट के लिए मना कर दिया तो पति ने हाईकोर्ट का रुख किया था। ताकि कोर्ट के आदेश के बाद वह अपने भाई की जान बचा सके।

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