भारत राष्ट्र के पुनर्निमाण के प्रेरणास्रोत हैं राम-प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा

भारत राष्ट्र के पुनर्निमाण के प्रेरणास्रोत हैं राम-प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा

सागर। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के पुण्य स्मरण दिवस के अवसर पर डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के समाजविज्ञान शिक्षण-अधिगम केंद्र एवं दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘समय महात्मा: राम से राष्ट्र की संगति’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया| जिसमें मुख्य वक्ता प्राच्यविद एवं प्रख्यात दर्शनशास्त्री प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा ने अपने बीज वक्तव्य का प्रारंभ करते हुए कहा कि इस वर्ष गांधीजी की पुण्यतिथि यानी कि 30 जनवरी 2024 का यह दिन अपने साथ कई विलक्षणताएं लेकर आया है| आजादी के अमृत महोत्सव का संपन्न होना, पूरे देश के द्वारा 75 वें गणतंत्र दिवस के तौर पर प्लेटिनम जुबली का मनाया जाना एवं देश के जनमानस द्वारा गाँधी को भूलने के विरुद्ध स्वयं को खड़ा न कर पाना कुछ ऐसी ही विशेषताएं या विलक्षणताएं हैं। आज का यह दिन इसलिए भी विलक्षण है क्योंकि हाल ही में 22 जनवरी को अयोध्या में हुई राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ हिन्दू अस्मिता की भी प्राण प्रतिष्ठा हुई, जिसकी लड़ाई विगत पांच सौ वर्षों से लड़ी जा रही थी, और इस सु-अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री ने ‘देव से देश तक और राम से राष्ट्र तक’ का आह्वान करते हुए कहा कि आगामी एक हजार वर्षों तक भारत राष्ट्र के पुनर्निर्माण के प्रेरणास्त्रोत राम बनेगे| ये घटनाएं इस तीस जनवरी को केवल कालक्रम की दृष्टि से ही विशेष नहीं बनातीं बल्कि ये घटनाएं इस युवा देश को गंभीर विचार के लिए प्रस्थान बिंदु भी देतीं हैं| सवाल आता है कि 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी ’हे राम’ के अंतर्नोद के साथ हमलोगों से विदा क्यों हुए? इस संदर्भ में उह्न्होने हे राम शब्द के तीन अर्थों में प्रयोग पर चर्चा करते हुए बताया कि हे राम शब्द का इस्तेमाल एक तो किसी ह्रदय विरादक दृश्य को देखकर हतत्प्रद हो जाने की स्थिति में किया जाता है, दूसरा कोई गलती हो जाने पर अक्सर इस शब्द का उपयोग किया जाता है यहाँ यह जानना भी महत्वपूर्ण है इन दोनों ही स्थितियों में से गाँधी का सम्बन्ध किसी से भी नहीं था। उनके द्वारा हे राम का अंतर्नोद एक अलग किस्म की स्थिति का परिचायक है उन्होंने भारत के भविष्य को राम से जोड़ते हुए या यूं कहें कि राम के भरोसे छोड़ने के संदर्भ में इस हे राम अंतर्नोद का इस्तेमाल किया और भारत की आजादी के आन्दोलन में उन्होंने राम को अपना आइकन बनाया। क्योंकि उनके अनुसार भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता का जितना प्रतिनिधितव राम करते हैं उतना कोई और नहीं कर सकता था। इसलिए राम भारतीयता के पर्याय हैं वे भारतीय संस्कृति और सभ्यता के आदर्शभूत हैं| इसलिए प्रधानमंत्री जी ने भी आगामी १००० वर्षों तक भारतीय राष्ट्र के पुनर्निर्माण के एक मात्र प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर राम को ही रेखांकित किया| इस संदर्भ में उन्होंने आगे बताया कि राम सत्य, अहिंसा, धैर्य, शीलता आदि मूल्यों के प्रतीक हैं और ठीक वैसे ही गाँधी भी इन्हीं मूल्यों के पक्षधर हैं| इस संदर्भ में ही हमें राम से गाँधी की संगति और गाँधी से राष्ट्र की संगति को समझना होगा| क्योंकि राम और गाँधी इन दोनों के उद्देश्यों, उनकी प्राप्ति हेतु अपनाई गई कार्य प्रणाली और मूल्यों में निसंदेह एक संगति थी। अंत में प्रो. शर्मा ने अपने वक्तव्य को सार रूप में समेटते हुए कहा कि हमारे राष्ट्र पिता को तो देश के आजाद होते ही हमारे बीच से अनुपस्थित कर दिया गया लेकिन हमें इस बात पर विचार करना होगा कि आजादी के बाद दस वर्षों तक भी अगर वे होते तो देश के विकास की दिशा क्या होती, वे उसके लिए कौन सा रास्ता निकालते?

कार्यक्रम में, चीफ प्रॉक्टर डॉ. चंदा बेन, डॉ अनिल तिवारी, डॉ कालीनाथ झा, समाज विज्ञान शिक्षण-अधिगम केंद्र के समन्वयक डॉ. संजय शर्मा, मीडिया अधिकारी डॉ. विवेक जायसवाल, डॉ. आशुतोष मिश्र, विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में मौजूद थे।

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