विश्वविद्यालय की छात्रा ने भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन और योगदान पर दिया भाषण
देश भर के 25 विद्यार्थियों को मिला मौका
सागर। भारतरत्न डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित पुष्पांजलि समारोह में डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की बीएससी बी-एड की छात्रा दीक्षा सिंह ने सहभागिता की एवं भाषण की प्रस्तुति दी। पुष्पांजलि समारोह में लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला एवं अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे। इस अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं के चयनित प्रतिभागियों ने डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन और योगदान पर अपना भाषण प्रस्तुत किया। गौरतलब है कि देश भर से 75 संस्थाओं के विद्यार्थी प्रतिनिधियों को पुष्पांजलि समारोह में आमंत्रित किया गया था। इनमें से द्विस्तरीय चयन प्रणाली के माध्यम से 25 विद्यार्थियों को भाषण प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ। भाषण का लाइव प्रसारण संसद टीवी पर किया गया। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि यह सुखद संयोग है कि विश्वविद्यालय में अभी हाल ही में प्रथम राष्ट्रीय महिला छात्र संसद का आयोजन किया गया था और हमारे विद्यार्थी को भारतीय संसद में अभिव्यक्ति का अवसर मिला। विश्वविद्यालय के विद्यार्थी लगातार ऐसे उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण आयोजनों में सहभागिता कर रहे हैं। इससे विद्यार्थियों के मनोबल में वृद्धि होगी। हमारे विद्यार्थी हर क्षेत्र में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
सुश्री दीक्षा सिंह द्वारा प्रस्तुत भाषण-
कुछ लोग थे जो वक़्त के सांचे में ढल गए,
कुछ लोग थे जो वक़्त का सांचा बदल गए.
नमस्कार!
मैं दीक्षा सिंह, भारत की हृदयस्थली सागर (मध्यप्रदेश) में स्थापित डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की विद्यार्थी, लोकतंत्र के इस पवन मन्दिर में उपस्थित जन आकांक्षा का नेतृत्व कर आप सभी देवीओं- सज्जनों के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करती हूँ.
भारत रत्न बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर एक ऐसा नाम, एक ऐसा जीवन, एक ऐसा कर्मशील योद्धा, जिसकी करुणा ने मानवता का, जिसके विचारों ने इतिहास का और जिसके संकल्पों ने वास्तविक अर्थों में वक़्त का सांचा बदल दिया.
आज 14 अप्रैल है. आज से 132 वर्ष पूर्व 1891 में 14 अप्रैल को सूरज वैसे ही निकला होगा जैसे आज निकला है, हवाओं में ऐसी ही नमी होगी जैसे आज है. पर वह दिन बाबा साहेब के जन्म के साथी ही मनुष्य सभ्यता की सबसे सुन्दर स्मृति के रूप में दर्ज हो गया हमेशा – हमेशा के लिए.
संविधान के मुख्य वास्तुकार व मसौदा समिति के अध्यक्ष रहे डॉ. भीमराव अम्बेडकर को व्यक्तिगत जीवन में जाति-व्यवस्था के दंश, भेद-भाव और असमानता को सहना पड़ा था. उन्होंने अपनी उस व्यक्तिगत पीड़ा सामूहिक मुक्ति के स्वप्न में बदल दिया.
एक महिला होने के नाते मेरी डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के प्रति कृतज्ञता और भी बढ़ जाती है। क्योंकि उन्होंने तत्कालीन सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध जाकर महिलाओं की शिक्षा, अधिकार, गरिमा, सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए अभूतपूर्व ढंग से आवाज उठाई और उसको हासिल करने के लिए जोरदार संघर्ष किया.वे कहते थे “मैं एक समुदाय की प्रगति उसकी डिग्री से मापता हूँ जो महिलाओं ने हासिल की है।” कहना न होगा कि बाबा साहेब का यह योगदान महिलाओं के हक़ में ज़ाहिर इतिहास का सर्वाधिक उज्ज्वल ज्योति-पत्र है.
बाबा साहेब व्यापक अर्थों में एक बड़े नेता, समाज सुधारक और परिवर्तनधर्मी थे. वे अपने समय की अनेक स्थापनाओं, संरचनाओं से असहमत थे, किन्तु उनकी असहमति रचनात्मक थी. बाबा साहेब ने भारत को समझने, भारत से असहमत होने और भारत को बदलने का भारतीय ढंग दिया जिस पर हाथ रख कर देशप्रेम की सौगंध खायी जा सकती है. यही बाबा साहेब का असहमति का अभिनव सौन्दर्यशास्त्र है.
आज इतिहास के इस मोड़ पर हम बाबा साहेब को किसी एक विषय, जाति और वर्ग से सम्बंधित कर देखना उनके योगदान को सीमित करना है. बाबा साहब जैसा व्यक्तित्व उन सबके सबके हैं, जिन्हें लोकतंत्र पर भरोसा है. जिन्हें मानवीय करुणा और तार्किकता पर भरोसा है, जो प्रत्येक प्रकार की गैरबराबरी को अमानवीय मानते हैं. बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर उन सबके हैं जिन्हें ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के महामन्त्र पर भरोसा है।