सागर। सागर जिले के शाहगढ़ विकासखण्ड स्थित ग्राम तिगौड़ा की मिट्टी को अपने होंठों से लगाकर प्यास बुझाने वालों की आबादी सागर के अलावा बुंदेलखंड के दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़ तक फैली है। मिट्टी के शिल्पकार लगभग 70 परिवार ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने के पहले से ही देशी फ्रिज अर्थात मटके बनाने का काम शुरू कर देते है। सागर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.सी. शर्मा ने बताया कि इस गाँव में कुल 43 समूह बने है, जिनमें 12 समूह में मिटट्टी शिल्प कार्य से जुड़े परिवार की महिलायें सदस्य है।
इन समूहों को शासकीय यौजना आजीविका मिशन की ओर से 4 लाख से अधिक की राशि और बैंक लिकेज में 18 लाख रूपये की राशि उपलब्ध करायी गई है। इससे वे अपनी लागत की प्रतिपूर्ति करते हैं । विकास स्व सहायता समूह से जुड़ी श्रीमति बंसन्ती प्रजापति, सीता स्व. सहायता समूह से जुड़ी श्रीमति हीरा प्रजापति, पारस स्व सहायता समूह से जुड़ी श्रीमति मिथलेश, कलावती, गेंदा बाई ने बताया कि वे घड़ा बनाने का काम दीपावली के तुरन्त बाद शुरू कर देते है। आम तौर पर एक परिवार कम से कम 700 से 800 घड़े तैयार करता है। इनके बने घड़ो के खरीददार स्वयं इनके गाँव में आकर ट्रक लोड करा लेते है। घड़ों का एक सीजन 60 से 70 हजार रू. का होता है। चॉक पर गोल – गोल घुम के मिट्टी के लोदे इनकी उंगलियों से आकार लेते है। भीतर उंगलियों के सहारे मटके धीरे-धीरे आकार लेते है। पुरातन काल से चले आ रहे घड़ों का एक विशिष्ट डिजाईन और स्पेसीफिकेशन सूखकर आग में तपता है। तपे हुये घड़ों से निकलने वाला खनकदार संगीत उस घड़े की परिपक्वता को दर्शाता है। समूह से जुड़ी गुडड़ी बाई, मिथलेश, गेंदा रानी ने घड़ों की कमाई से मोटर साईकिल खरीदी है।
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मध्यप्रदेश का यह गांव जहां बसतें है देशी फ्रिज के शिल्पी

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