महिलाओं में मूत्र असंयम-गंभीर दुष्परिणाम का सूचक हो सकता है
सागर। मेडिकल कालेज के टी बी एवं चेस्ट विभाग, नर्सिंग होम एसोसिएशन ( NHA) सागर और FOGSI सागर के सानिध्य से संगोष्ठि आयोजित की गयी। इस संगोष्ठि को जबलपुर मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशलिटी यूरोलॉजी के विभाग्ध्यक्ष डॉ फ़ानिन्द्र सिंह सोलंकी और डॉ मोनिका जैन स्त्री रोग विशेषज्ञ ने सम्बोधित किया।
मूत्र असंयम के बारे में बताते हुए डॉ सोलंकी ने बताया के ये एक अस्थायी स्थिति हो सकती है जो एक अंतर्निहित चिकित्सा स्थिति से उत्पन्न होती है। यह मूत्र के मामूली निकलने की बेचैनी से लेकर गंभीर, बार-बार गीला होने तक हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद, या रजोनिवृत्ति (महीने बंद होने के पश्चात)के हार्मोनल परिवर्तन के बाद महिलाओं में मूत्र असंयम विकसित होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
उपचार में शामिल पद्धति में
1.पेल्विक मसल रिहैबिलिटेशन (पेल्विक मसल टोन में सुधार और रिसाव को रोकने के लिए)
2.केगल व्यायाम: श्रोणि की मांसपेशियों के नियमित, दैनिक व्यायाम से मूत्र असंयम में सुधार हो सकता है और यहां तक कि रोकथाम भी हो सकती है।
विभिन्न ऑपरेशन जिनमे से इस स्थिति में सुधार की संभावना रहती है उनमे 1
स्लिंग (सिंथेटिक जाल से)
2. मूत्राशय का निलंबन
3.परिधीय तंत्रिका उत्तेजना (पेरिफेरल नर्व स्टिम्यूलेशन) शामिल हैं.
डॉ मोनिका ने प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में आयरन की उपलब्धता बनाये रखने के संबंध में जानकारी साझा करी. कार्यक्रम के चेयरपेर्सन डॉ जयश्री चौकसे और डॉ एस एस खन्ना रहे.
संगोष्ठी में यंग अचीवर अवार्ड से तीन प्रतिभाशाली यंग डॉक्टर्स , डॉ दीपाली जैन , डॉ हिमांशी राय और डॉ जाह्नवी मुखारिया को भी सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में डॉ तल्हा साद, डॉ जागृति किरण , डॉ एस के सिंह , डॉ डी के पिप्पल , डॉ सर्वेश जैन,डॉ मनीष जैन , डॉ सत्येंद्र मिश्रा , डॉ पूजा सिंह ,डॉ अभिषेक जैन , डॉ इलयास , डॉ संजीव मुखारिया, डॉ सिम्मी मुखारिया ,डॉ राजेंद्र चौदह , डॉ रूबी रेजा , डॉ आरती सिंघाई , डॉ रूपा अग्रवाल इत्यादि मौजूद थे।