सागर। ज्योति नगर कृश्णा नगर मकरोनिया में मुख्य यजमान पं. सिद्धगोपाल सुन्दरलाल तिवारी ( स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार व दैनिक सागर सरोज परिवार ) द्वारा कराई जा रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चैथे दिन कथा व्यास पंडित राजेंद्र मिश्रा ने बताया है कि संत के ह्रदय में भगवान निवास करते हैं भगवान के नाम के महत्व का वर्णन करते हुए ब्राह्मण अजामल के बारे में बताया कि अजामल ने अपनी दासी से विवाह किया था और उनका बुरा वक्त शुरू हो गया था । उनकी नौ संतानें हुई लेकिन एक बार कुछ संत उनके घर पधारे और उनकी पत्नी ने उन संतों की सेवा करते हुए उन्हें भोजन कराया एवं रात्रि विश्राम के लिये जगह दी तो आजामल अपनी पत्नी पर भारी क्रोधित हुए लेकिन पत्नी ने उन्हें समझाया और शांत करा दिया सुबह जब संत लोग चलने लगे तो उन्होंने आजामल से कहा कि हम तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसंन्न है और अब तुमसे दक्षिणा चाहते हैं इस पर आजामल ने कहा कि मैं तुम्हें रात में ही भगाने वाला था लेकिन मेरी पत्नी ने मना कर दिया और इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा तुम लोग यहां से जल्दी चले जाओ तब संतो ने उनसे एकवचन मांगा जिसे आजामाल ने स्वीकार करते हुए कहा कि कहो क्या चाहते हो संतो ने कहा कि तुम्हारी पत्नी के गर्भ में जो 10 वीं संतान हैं तुम उसका नाम नारायण रखोगे जिसे आजामल ने स्वीकार कर लिया जब उसके यहा दसवी संतान हुई तो उसका नाम नारायण रखा गया छोटा पुत्र होने के कारण सभी उसे प्यार करते थे और नारायण नारायण कह कर बुलाते थे अंत समय में जव अजामल मरणासन्न अवस्था में थे तब वह अपने छोटे पुत्र को बार-बार नारायण नारायण पुकारते हुए अपने प्राण त्याग दिए मृत्यु के बाद आजामल को यम के दूत ले गए और उसे नर्क ले जाने लगे तो चित्रगुप्त ने उन्हें स्वर्ग ले जाने का आदेश दिया क्योंकि आजमल ने अपने अंत समय में मन से भगवान नारायण के नाम का जाप कर स्मरण किया था इसके फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग का शुख मिला इसलिए मनुश्य को भगवान का नाम लेते हुए इस जीवन को सफल बनाना चाहिए कथा व्यास पंडित मिश्रा ने राम सेतु निर्माण का जिक्र करते हुए बताया कि जब सेतु बन रहा था और नल और नील उसमें राम राम लिखकर पत्थर डालते तो वह पानी में तैरने लगता भगवान राम ने इसे देखकर सोचा मुझे भी पत्थर डालकर देखना चाहिए कि वह डूबता है या नहीं और अलग जाकर जैसे ही समुद्र में पत्थर डाला तो वह डूब गया इस पर राम जी को बड़ा आष्चर्य हुआ वहीं पास में हनुमान जी यह दृष्य देख रहे थे भगवान राम ने हनुमान जी से पूछा ऐसा क्यों हुआ तो हनुमान जी ने बताया कि यह सब षक्ति आपके नाम की है राम नाम की शक्ति से ही है संसार चल रहा है

इसलिए मानव को भगवान भजन राम राम जपते हुए अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए कथा व्यास श्री मिश्रा जी गजेंद्र और ग्राह मगरमच्छ से संबंधित कहानी का वर्णन करते हुए बताते हैं त्रिकूट पर्वत तराई में घने जंगल में हाथ्ीयो के राजा गजेंद्र निवास करते थे एक बार गजेंद्र जल कीड़ा करते हुए सरोवर चला जाता है और वहां कमल पुश्प देखकर सरोवर के बीचो बीच चला गया इस दौरान उसे ऐसा लगा कि कोई उसे अंदर की ओर खीच रहा है तब उसे पता चला कि उसके पैर को मगरमच्छ ने पकड़ लिया और अंदर की ओर खींचने लगा तब गजेंद्र ने सभी साथियों को पुकारा और तमाम हाथियों ने उसे छुड़ाने की कोषिष की लेकिन वह सब नाकाम रहे और अंत में गजेंद्र ने भगवान विश्णु को पुकारा तो भगवान ने तत्काल उसकी मदद की भगवान श्री विश्णु ने सुदर्षन चक्र से ग्राहय के चंगुल से गजेन्द्र को बचाया और उसका उद्धार किया भगवान कहते हैं अगर कोई पापी मेरे भक्तों के पैर भी पकड़ लेता तो मैं उस पर उपकार करता हूं मनुश्य सांसारिक सुख को सर्वोपरि मानते हैं और वे गजेंद्र की तरह ही मगर के मुख में फंस जाते हैं और कश्ट पूर्ण जीवन जीते हैं इसलिए मनुश्य को भगवान भजन करते रहना चाहिएकथा के प्रारंभ में मुख्य यजमान पं. सिद्धगोपाल सुन्दरलाल तिवारी ( स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार व दैनिक सागर सरोज परिवार ) द्वारा सपरिवार आरती की गई।