भगवान के नाम की महिमा का वर्णन करने में परमात्मा भी असमर्थ है : स्वामी हृषीकेष जी महाराज

सागर। राजघाट रोड पर ग्राम मझगुवां अहीर में नीरज तिवारी फार्म हाऊस पर आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में कथा में छठवें दिन गिरीराज पूजन के साथ श्रीकृष्ण की मनोहारी लीलाओं का मंचन बालकों द्वारा किया गया। मुख्य यजमान रामशंकर तिवारी वरिष्ठ पत्रकार द्वारा विधिवत पूजन-अर्चन किया गया। इस अवसर पर कथा व्यास राजघाट धाम के महंत स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि आपका हृदय भगवान का सिंहासन है। इस हृदय रूपी सिंहासन को शुद्ध बनाएंगे तो भगवान का आविर्भाव होना सुनिश्चित है।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि एक भी श्रोता अगर भगवान को हृदय में बिठा ले तो उनकी कथा सार्थक हो जाएगी। हृदय को निर्मल बनाने के लिए निष्काम भक्ति करना होती है। भगवान तो कथा सुनने की इच्छा रखने अर्थात भक्त के हृदय में खुद ही बंदी बन जाते हैं। भगवान की कथा का रस आस्वादन भी भगवान करते हैं। मैंने शास्त्र सम्मत और अपने गुरू व संतजनों से जो सत्य जाना वो यही है कि दुर्लभ मनुष्य शरीर पाकर हमें भगवान का भजन करने के लिए सबसे पहले खुद को भगवान को सौंपना है।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भजन की विधि संत जानते हैं इसलिए ऐसे गुरू का आश्रय लेना है जिनका एकमात्र लक्ष्य भगवान ही है। ऐसे गुरू को प्राप्त करने की आपको इच्छा भर करना है, भगवान खुद गुरू को उपलब्ध करा देंगे। मगर किसी ऐसे-वैसे को खुद को न सौंपे अर्थात गुरू न बनाएं। तब तक भगवान को ही अपना गुरू मानकर समर्पित रहें। भक्ति के लिए शरीर की शुद्धि भी आवश्यक होती है, इसके लिए सबसे जरूरी पवित्र भोजन करना चाहिए। सबका कर्तव्य है कि भगवान का भजन करें, संसारी संबंध स्वार्थ पूरे होने तक ही रहते हैं यहां या तो कोई आपसे लेने आया है या देने आया है। सब अपना कर्जा ही चुका रहे हैं। संसारी संबंध ऊपर-ऊपर रखें, पर अंदर से भगवान से प्रेम करें। संसारी संबंधियों को प्रेम का अहसास रहे, लेकिन आप उसमें न उलझें।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भगवान की दी हुई श्वांस की कीमत अमूल्य है। करोड़ों की सम्पदा के बावजूद एक भी श्वांस लौट नहीं सकती। मन, वाणी और शरीर को कंट्रोल करना है, इन्हें स्वतंत्र नहीं छोड़ना है। आत्मा ही देखने-सुनने और मनन करने लायक है। सत्य वस्तु की खोज करते-करते हजारों जन्म बीत गये फिर भी झूठे शरीरों में आकृष्ट हो रहे हो। उस सत्य से प्रेम करो और जीवन को सत्यमय बनाओ। अभी चूक गये तो फिर अवसर मिलने वाला नहीं।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भगवान दीनबंधु हैं, इसलिए उनके पास दीन बनकर ही जाना चाहिए। संतों के पास बार-बार जाना चाहिए। दुर्गुणों का भी सदुपयोग करें, जैसे अहंकार करें तो सिर्फ भगवान के दासत्व का स्वाभिमान करें। क्रोध का उपयोग भक्ति के विरोधियों पर करके उसका उपयोग करें। कथा में भगवान श्रीकृष्ण जी की मनोहारी लीलाओं का मंचन बालकों द्वारा किया गया। कथा मध्य भजनों पर श्रद्धालुओं ने जमकर नृत्य किया।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि एक भी श्रोता अगर भगवान को हृदय में बिठा ले तो उनकी कथा सार्थक हो जाएगी। हृदय को निर्मल बनाने के लिए निष्काम भक्ति करना होती है। भगवान तो कथा सुनने की इच्छा रखने अर्थात भक्त के हृदय में खुद ही बंदी बन जाते हैं। भगवान की कथा का रस आस्वादन भी भगवान करते हैं। मैंने शास्त्र सम्मत और अपने गुरू व संतजनों से जो सत्य जाना वो यही है कि दुर्लभ मनुष्य शरीर पाकर हमें भगवान का भजन करने के लिए सबसे पहले खुद को भगवान को सौंपना है।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भजन की विधि संत जानते हैं इसलिए ऐसे गुरू का आश्रय लेना है जिनका एकमात्र लक्ष्य भगवान ही है। ऐसे गुरू को प्राप्त करने की आपको इच्छा भर करना है, भगवान खुद गुरू को उपलब्ध करा देंगे। मगर किसी ऐसे-वैसे को खुद को न सौंपे अर्थात गुरू न बनाएं। तब तक भगवान को ही अपना गुरू मानकर समर्पित रहें। भक्ति के लिए शरीर की शुद्धि भी आवश्यक होती है, इसके लिए सबसे जरूरी पवित्र भोजन करना चाहिए। सबका कर्तव्य है कि भगवान का भजन करें, संसारी संबंध स्वार्थ पूरे होने तक ही रहते हैं यहां या तो कोई आपसे लेने आया है या देने आया है। सब अपना कर्जा ही चुका रहे हैं। संसारी संबंध ऊपर-ऊपर रखें, पर अंदर से भगवान से प्रेम करें। संसारी संबंधियों को प्रेम का अहसास रहे, लेकिन आप उसमें न उलझें।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भगवान की दी हुई श्वांस की कीमत अमूल्य है। करोड़ों की सम्पदा के बावजूद एक भी श्वांस लौट नहीं सकती। मन, वाणी और शरीर को कंट्रोल करना है, इन्हें स्वतंत्र नहीं छोड़ना है। आत्मा ही देखने-सुनने और मनन करने लायक है। सत्य वस्तु की खोज करते-करते हजारों जन्म बीत गये फिर भी झूठे शरीरों में आकृष्ट हो रहे हो। उस सत्य से प्रेम करो और जीवन को सत्यमय बनाओ। अभी चूक गये तो फिर अवसर मिलने वाला नहीं।
स्वामी हृषीकेष जी महाराज ने कहा कि भगवान दीनबंधु हैं, इसलिए उनके पास दीन बनकर ही जाना चाहिए। संतों के पास बार-बार जाना चाहिए। दुर्गुणों का भी सदुपयोग करें, जैसे अहंकार करें तो सिर्फ भगवान के दासत्व का स्वाभिमान करें। क्रोध का उपयोग भक्ति के विरोधियों पर करके उसका उपयोग करें। कथा में भगवान श्रीकृष्ण जी की मनोहारी लीलाओं का मंचन बालकों द्वारा किया गया। कथा मध्य भजनों पर श्रद्धालुओं ने जमकर नृत्य किया।