खुरई से लेकर केंद्र तक सत्ता न बदले, यही देश की आवश्यकता- संत श्री नागर जी

रामभक्ति से बड़ी है राष्ट्रभक्ति और साधु से बड़ा है सैनिक – संत श्री नागर जी

सैनिक वेतन के लिए नहीं वतन के लिए काम करता है

खुरई से लेकर केंद्र तक सत्ता न बदले, यही देश की आवश्यकता- संत श्री नागर जी

खुरई में श्रीमद् भागवत कथा के पंचम सोपान पर श्री नागर जी का उद्बोधन

गजेंद्र ठाकुर✍️
सागर। साधु से बड़ा स्थान सैनिक का है। साधु की भक्ति से बड़ी सैनिक की राष्ट्रभक्ति है और रामभक्ति से भी बड़ी राष्ट्रभक्ति है। एक सैनिक का जीवन राष्ट्र के प्रति उसके माता पिता की भावनाओं का अर्पण है। सैनिक वेतन के लिए नहीं वतन के लिए हिमखंडों की शीत में भी राष्ट्र की रक्षा के लिए खड़ा होता है। संत कमल किशोर नागर ने खुरई में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें सोपान में लीक से हट कर देश की सामयिक आवश्यकताओं को लेकर श्रद्धालुओं को जाग्रत किया और श्रध्दालुओं से आह्वान किया कि भूल से भी खुरई से लेकर केंद्र तक की सत्ता मत बदल देना यही सत्ता आज देश की आवश्यकता हैं।

लगभग सवा लाख से ज्यादा भक्तों से भरे कथा पंडाल को संबोधित करते हुए श्री नागर जी ने कहा कि यह राजनैतिक नहीं धार्मिक कथा है। लेकिन व्यासपीठ को भी कभी आवश्यकता पड़ जाती है कि वह अपने अधिकार का प्रयोग कर कुछ विषयों पर मार्गदर्शन करे। प्रबुद्ध जन इस आवश्यकता को समझ लेंगे। हमारे सैनिक वतन के लिए शीत में रात दिन पहरा दे रहे हैं और दुष्ट शत्रु उनके सम्मुख मौत का तांडव कर रहे हैं। सैनिक निर्दोष है और हमारे लिए 24 घंटे खतरे में रहता है। जब भी आप सब तप भजन करें तो अपने पुण्य का एक अंश सैनिक को अर्पण करने का संकल्प करें। इस कथा के पुण्य का एक हिस्सा इस भावना से है कि हमारा हर सैनिक अपने घर सकुशल लोटे। श्री नागर जी ने भरे गले और अश्रुओं से डबडबाते नेत्रों से व्यक्त किया कि जिस सैनिक की वीरगति होती है उसकी मां, बहिन, पत्नी के हृदयों से पूछो कि वे कितना विराट त्याग कर देती हैं।

संत श्री नागर जी ने कहा कि आज देश की आवश्यकता है कि खुरई से लेकर केंद्र तक सत्ता नहीं बदलनी चाहिए। यह सत्ता नहीं रही तो सब कुछ चला जाएगा। फिर हिंसा का तांडव, रक्तपात और अधर्म का साम्राज्य हो जाएगा, उन्होंने कहा हमारी शक्ति हमारे हाथों में है। इन्हीं हाथों से सत्ता इधर की उधर हो जाती है। ये शक्ति किसी और को दे मत देना। तुम्हारे हाथ में भारत है, तुम्हारे ही हाथों में धर्म है। नागर जी ने कहा कि मैं देश के हित में यह संकल्प दिला रहा हूं। देश के सामने नाजुक वक्त है इसलिए कहना पड़ा। आप सभी भूल कर भी अपनी देह, देश और धर्म की निन्दा नहीं करें।

संत नागर जी ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि अब मैं कथा नहीं करूंगा पर यह सच नहीं है। मैंने खुरई से पुनः कथा आरंभ कर दी है। बीच के अंतराल में आदिवासी क्षेत्रों में,वनों में हम अपने बंधुओं के बीच कथा के लिए गए थे। राष्ट्र के दुश्मन हमारे इन बंधुओं को भड़का कर हमारे ही खिलाफ करना चाह रहे हैं। हमने उन्हें समझा कर लौटाया कि राम के काज भी आदिवासियों के संग ही पूर्ण हुए थे। उनके बीच काम करके मैं पुनः देश, धर्म और गाय माता की तरफ देखूंगा और सभी स्थानों पर कथाएं करूंगा।
संत श्री नागर जी ने कथा प्रसंग में कहा कि निंदकों ने कन्हैया जी की मां से कह दिया कि यह चोर है माखन चुराकर खाता है। मां ने उसे ऊखल से बांध दिया। सोचिए यदि कन्हैया ऊखल से ही बंधा रह जाता तो कंस के असुर अपने उत्पात से सब कुछ नष्ट कर देते। शिशुपाल, जरासंध जैसे शत्रु अपनी सेनाओं से देश को रौंद देते। वैसे ही जैसे आज सीमा पर शत्रु अपनी सेनाएं लेकर बैठे हैं। नागर जी ने कहा कि दाऊ बलराम ने माता से कान्हा की शिकायत कर दी कि कान्हा मिट्टी खाता है। मां ने बुलाया तो कन्हैया ने मां को बताया कि मां मैं 11 वर्ष ब्रज में, 14 वर्ष मथुरा में और 100 वर्ष द्वारका में रह पाऊंगा। मैया मैं तो तुझे तीर्थ तक नहीं करा पाऊंगा। फिर कान्हा ने मां को दो बार अपना मुख खोल कर दिखाया कि देखो मेरे मुख में मिट्टी है क्या और कान्हा ने मैया को मुख में विराट रूप दिखा दिया जिसमें ब्रह्माण्ड के समस्त देवों, सभी तीर्थों, चराचर जीवों सहित पूरी प्रकृति के दर्शन अपने मुख में दो बार माता को करा दिए।

श्री नागर जी ने कहा कि यदि अशुभ नजर को मान्यता देते हो तो दर्शन को भी मान्यता दो वह भी तो नजर से ही है। संसार में अनेक तरह की बातें सामने आती हैं , भगवान को चोर ठहरा दिया गया। नीयत जब भरोसे पर आ जाती है तब नजर काम करना शुरू करती है। राम कथा सुना रहे थे और जानकी मैया की नजर राम के चरणों में थी। चरण से नजर हट कर हिरण पर पड़ी तो हरण में पड़ गईं।

श्री नागर जी ने कहा कि प्रतिमा, कथा, सेवा जैसे कई रूपों में भगवान मिलेगा। इनमें से जिस भी रूप में मिले समझना यह ठाकुर जी का ही साक्षात्कार है उन्हीं का दर्शन है। परिवार से हट कर देश, समाज अनाथ, दुखी, गाय की सेवा करें तो वह भी दर्शन ही है। जब भी अच्छे काम हमारे शरीर से होते हैं यह ईश्वर का साक्षात्कार ही हो रहा होता है। अच्छे विचार आएं तो चुप मत बैठना कर ही डालना। संत श्री ने कहा कि शब्द में ब्रह्माण्ड है, शब्द ही रहा अखंड, संत जन पलटे नहीं, चाहे पलट जाए ब्रह्माण्ड। कथा साक्षात शब्द दर्शन है, साक्षात दर्शन हो गए तो हम संभाल भी नहीं पाएंगे। अपात्र को भी कथा का मौका मिलता है यह ठाकुर जी की अहेतुक कृपा है। इसमें भी उसकी योजना होती है। पति परमेश्वर कहलाता है पर मीरा ने कहा कि परमेश्वर पति है। दोनों में शब्द का अंतर है। राम को अहंकार का ज्ञान था । ज्ञान अहंकार कब बनने लगता है और उसपर नियंत्रण कैसे करना है यह वे जानते थे। पर रावण को ज्ञान का अहंकार था इसलिए विनाश हो गया।

कथा के पांचवें दिवस मुख्य यजमान नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह के समस्त परिजनों सहित खुरई के समस्त गणमान्यों के साथ खनिज विकास निगम के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर, श्रीमती संध्या भार्गव, सुषमा यादव, जयंत सिंह बुंदेला, सतनामसिंह तोमर, रामकुमार सिंह बघेल, पुष्पेन्द्र तोमर, लल्लू राजा इटवा, गोलू प्रताप राय, दयाराम चौरसिया बरोदिया, नारायण सिंह लोधी बांदरी, विश्वनाथ सिंह लोधी बांदरी, जंगबहादुरसिंह बिनायठा, चंद्रप्रताप सिंह, हेमराज सिंह, मनोज राय, राकेश राय, समस्त पार्षद, नगर पालिका पदाधिकारी शामिल थे।

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