गौरैया की खरी खरी-
शहर कम ही हैं जहां गौरैया दिखती है,पर गांव के मकानों में मुझे आज भी इसके दर्शन होते हैं।
लेकिन जब शहर के करीबी गांव में ‘बर्ड फोटोग्राफी, के लिए गया तो गौरेया सैदा, बहतराई, बेलमुंडी में दिखतीं, तब मैंने सैदा में गौरेया से निवेदन किया, ‘हमारी स्मार्ट सिटी से क्यों विमुख हो,आओ पधारो म्हारे घर मा।’
गौरेया बोली, ‘मुझे बड़ी टावर से डर कम लगता है, पर तुम्हारे घर वास्तुशिल्प से बने हैं, उसमें मेरे घोंसले की जगह कहाँ,ऐसी वाले कमरे में जाऊं कैसे और बाकी कमरों के पंखे मेरे दुश्मन हैं। बता कैसे रहूं?
मैंने कहा- आ जाओ कोई जगह बन जाएगी ।
घर घर में कभी रही घरेलू चिड़िया गौरेया बोली- रहने दो यहां, तुम्हारा घर बड़ा है पर दिल का दरवाजा बहुत छोटा होता है,इसमें खून के रिश्तेदारों को भी जगह नहीं। बूढ़े मां बाप को नौकर सा रखा, मेहमान होटल में रुकवा देते हो । पड़ोसी बच्चों को लान में खेलने नहीं देते। मन में भाई-भाई के लिए बैर पाले हो।’ सारे समय पति पत्नी लड़ते हो। बच्चे बिगड़ रहे हैं। ना बाबा ना.. बड़ी मुश्किल से छोड़ा है शहर, मन भर गया है।शहर से अब लगाव नहीं,जिस घर गई तनाव भरा मिला,शोर मुझे पसंद नही, मुझे सुकून से गांव में ही रहने दो शहर वापस नहीं आने वाली।
गौरया ने कहा चलती हूं तुम्हारे जैसे शहरी के लिए मेरे पास वक्त नहीं.. और मेरे बचपन की चिड़ी- अपने चिड़े के साथ उड़ गई। मैने देखा- “एक की चोंच में मूंग और दूसरे की चोंच में चावल का दाना था….उस खिचड़ी को बनाने, जिसकी कहानी मेरी बूढ़ी दादी मेलादेई मुझे बचपन में सुनाया करती थीं। गौरेया की खरी खरी,’खड़े हो सुनते रहा-जैसे अदालत में सिर झुका कर कटघरे में अपराधी फैसला सुन रहा हो।’
प्रेम चढ़ा द्वारा फोटो- कल कोपरा गांव से ली हैं
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गौरैया की खरी खरी: ‘हमारी स्मार्ट सिटी से क्यों विमुख हो, आओ पधारो म्हारे घर मा।

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