अथ उलूक कथा- दीपावली उत्सव
कहते हैं हर उल्लू के दिन बदलते हैं, सारे साल उपेक्षित उल्लू को इन दिनों याद किया जाता है, हे लक्ष्मी जी के वाहन इस बार अपनी नजरें इनायत मेरे पर भी कर, मां देवी को थोड़ी देर के लिए ही ले आ, हर चीज महंगी है और बड़ी ककड़ी चल रही है।
दिवाली पर बावन परी के खेल जाने किसने शुरू किया जो कभी जुआ नहीं खेलते वो प्यारे नए साल में अपना भाग्य जानने के शौक में जेब ख़ाली करा आते हैं।पुलिस वाले इन दिनों यूपी बिहार जाने के लिए छुट्टी नहीं लेते,उनकी रुचि जुआ में रहती है।।जो हारा वो मुखबीरी करता है और पुलिस के बाके जवान जुआ पकड़ने की धूम मचा देते हैं। फिर अखबार में खबर आती है 220 जुआरी जुआ एक्ट में पकड़ गई और रकम जप्त हुई-1440? इस सवाल पर पर पाठक सोचता है ये जुआ पकड़ गया हैं या फिर लूटा गया है।
कुछ बरस पहले कलेक्ट्रेट के साइकल स्टेंड को छांव देने वाले पेड़ से उल्लू के एक बच्चा गिरा,वह मर गया पर वहां सबको पता लग गया पेड़ पर उल्लू मां बाप नीचे देखते बैठे हैं। मुझे खबर मिली तो कैमरा ले कर पहुंचा और फोटो ली, फेसबुक में खबर तो लिख ली, पर शीर्षक क्या बनाता की ‘कहाँ उल्लू बैठा है’, हिम्मत नहीं हुई।
उल्लू महाभारत में प्रेरक का काम करता है, युद्ध पड़ावों के पक्ष में जा रहा था,तभी दुर्योधन की दशा देख अश्वत्थामा दुखी था। वह देखता है दिन को कौओं के पीट और भय से छिपा रहने वाला उल्लू रात कौओं के ठिकाने पर हमला कर देता है। कई कौओं को मार डालता है।घोंसले उजाड़ देता है। बस फिर क्या था यह देख अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के पड़ाव पर हमला किया और पांडवों के सौये द्रौपती के पांच पुत्रो को पड़ाव समझ कर मार डाला।
याने कमांडो आज जो गुरिल्ला हमला करते हैं उसके प्रेरक सूत्रधार यही उल्लूक महोदय महाभारत काल में बने हैं।
आज के दौर में सब चुतुर-चालक है किसी को उल्लू बनाने के पहले दस बार सोच लेवें कही खुद उल्लू ना बन जाएं।।
ओम उल्लूक: नम:
प्राण चड्डा की कलम से