परमाणु बम से भी घातक है अपशब्द जो मर्माहत करता है- डॉ.अनिल तिवारी

परमाणु बम से भी घातक है अपशब्द जो मर्माहत करता है- डॉ.अनिल तिवारी

सागर। स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में दिनाँक 23 सितम्बर 2022 को विषय ‘‘शाब्दिक प्रहार की अवधारणा और उसका समाधान‘‘ पर संगोष्ठी सम्पन्न हुई। दीप प्रज्जवलन के उपरांत स्वागत भाषण देते हुए संस्थापक कुलपति डॉ. अनिल तिवारी ने कहा कि-यह संगोष्ठी बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी आवष्यक है यह सामान्य विषय है इस पर कभी विचार नहीं किया गया। परमाणु बम से आप बच सकते हैं लेकिन शब्दों के प्रहार से नहीं बचा जा सकता हमें अपने शब्दों का उचित चयन करना चाहिए शब्दों में स्वच्छता होनी चाहिए। ध्वनि प्रदूषण के अन्तर्गत शब्दों का प्रहार आता है। ऐसा शब्द जो किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाए वास्तव में वही शब्दों का प्रहार है। विशेषतः मातृशक्ति, नारी के लिए अपमानजनक बात बोलना भी शाब्दिक प्रहार के अन्तर्गत आता है। हमारे मुख से जो शब्द निकलते हैं वह वातावरण में भ्रमण करता है और भ्रमण करते हुए हमारे पास वापस आते हैं। शब्दों को तोल-मोल कर बोलो, शब्दों से किसी का अपमान न करें। मुख से ही शरीर बनता है इसलिए उसका उपयोग अच्छे कार्य के लिए करें। इस तरह के व्यवहार में भी वातावरण की शुद्धता है। वही शब्द मुख से निकाले ऐसा इस संगोष्ठी के माध्यम से संदेश दिया वयस्कों में अपशब्द बोलने का एक प्रमुख कारण आज कल की फिल्में शब्दों को बोलने से पहले उनका मनन अवश्य करें इस तरह धीरे-धीरे जागरूकता फैलायें।

मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ. वंदना गुप्ता, स्वच्छ भारत अभियान, सागर की ब्रांड एंबेसडर ने कहा कि-वैचारिक स्वच्छता अभियान विकृति को कोई भी स्वीकार नहीं करता हममें सकारात्मक एवं नकारात्मक दो विचार विद्धमान होते हैं अपने अंदर की सुमति के प्रतिषत को बढ़ायें और कुमति को घटायें क्योंकि कुमति विनाष की ओर ले जाता है इसलिए भगवान गणेष एवं सरस्वती जी की पूजा की जाती है विवेक और विष्वास हमें उन्नति की ओर ले जाता है वैचारिक रूप से स्वच्छता भी आवष्यक है स्वच्छता के पैमाने पर वैचारिक स्वच्छता प्रथम होनी चाहिए वो शब्द ही था जिसने विवेकानंद जी को महान बनाया आज अपषब्दों को बड़े ही सहज रूप से स्वीकृत किया जाता है स्वच्छता को भी शामिल करना चाहिए नारी अपमानित करने वाले शब्दों से इस समाज को मुक्ति दिलानी होगी समाज में यह परिवर्तन लाना होगा। आत्मिक शक्ति को जगाकर हम अपने आप से बात करें। क्या जो हम बोल रहे क्या वह अपने लिये सुन सकते हैं वैचारिक स्वच्छता के वाहर बने ऐसा संकल्प लेकर आपकी संगोष्ठी उद्देश्य पूर्ण करें।

विशिष्ट अतिथि की आसंदी से बोलते हुए श्री अनुपम तिवारी ने कहा कि- जो हमें खुद को अच्छा न लगे वो दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए हमें अपनी सजगता नहीं खोनी चाहिए ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरों को शीतल करें आपहुं शीतल होंए। उदाहरण देकर समझाया। अपने आसपास खुशनुमा माहौल बनायें।

आभार कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने ने दिया आपने कहा कि- जो बुरा हम बोलते हैं पर बुरा सुनना पसंद नहीं करते तो हम कोशिश करें कि हम ऐसा कोई अपशब्द न बोले जो हम खुद न सुन सकें। इस अवसर पर डॉ.मनीष मिश्र, प्रो. आर.नाथ, मनीष दुबे, अभिषेक तिवारी के साथ छात्र, छात्राएं, शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। इसी अवसर पर वैचारिक स्वच्छता रखने हेतु एवं अपशब्द प्रयोग न करने के लिए सभागार में शपथ भी दिलाई गई। कल्याण मंत्र के साथ संगोष्ठी सम्पन्न हुई।

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