पति कर रहा था बेटियों की परवरिश, पत्नी का आरोप दूसरी बार गलत साबित
मप्र के सागर शहर के करीब स्थित एक गांव के मजदूर युवक के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता की अपील को सप्तम अपर सत्र न्यायाधीश किरण कोल ने खारिज कर दिया है। अपर सत्र न्यायाधीश कोल ने पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ बेटियों से नफरत कर उसे छोड़ देने के आरोप को सही नहीं माना। उन्होंने कहा कि जब प्रति अपीलार्थी युवक पिछले कई साल से बेटियों को अपने साथ रखकर पढ़ा-लिखा रहा है तो फिर यह नहीं माना जा सकता कि वह बेटियों के जन्म लेने के कारण अपनी पत्नी को प्रताड़ित करता था। यह आरोप विचारण योग्य नहीं है। इसके अलावा पत्नी, पति या उसके ससुरालजनों द्वारा प्रताड़ित करने के कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाई है। इसलिए भी उसकी अपील खारिज करने के लिए पर्याप्त कारण हैं।
मजिस्ट्रेट के फैसले को सही ठहराया
प्रति अपीलार्थी के वकील पवन नन्होरिया ने बताया कि इस मामले में इसी साल प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था। जिसमें उन्होंने कहा कि पत्नी, ऐसा कोई कारण नहीं बता पाई। जिसके चलते वह अपने पति से अलग रह रही हो। चूंकि पत्नी स्वेच्छा से पति से अलग रह रही है इसलिए वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है। इसी आदेश से असंतुष्ट होकर पत्नी ने अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट में अपील की थी। जहां विद्वान न्यायाधीश ने निचली अदालत के आदेश के गुण-दोषों का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि 13 साल के वैवाहिक जीवन में 10 साल तक बिना किसी विवाद के पति के साथ रहने के बाद उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, बेटियों से नफरत जैसे आरोप लगाए जाना युक्ति संगत नहीं है। इसलिए उन्होंने प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को उचित मानते हुए इस अपील को निरस्त कर दिया।