जनजातीय महिला सशक्तीकरण : आजादी के 75 वर्ष पर वेबीनार का आयोजन

जनजातीय महिला सशक्तीकरण : आजादी के 75 वर्ष” पर वेबीनार का आयोजन–
“शिक्षा, जागरूकता और सक्रिय सहभागिता से महिला सशक्तीकरण की दिशा में सार्थक कदम”- प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
सागर। “जनजातीय महिलाओं के विकास तथा सशक्तीकरण की दिशा में सार्थक गति देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चरणों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, विधिक जागरूकता और राजनीतिक सहभागिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। आजादी के 75 सालों में विकास की गति का मूल्यांकन करते हुए नवीन प्रावधानों पर चर्चा एवं विचार करते हुए क्रियान्वयन के नये आयाम स्थापित किये जा सकते हैं। आदिवासी एवं जनजातीय महिला सशक्तीकरण की दिशा में इसे भी एक सार्थक कदम कहा जा सकता है।” ये विचार दिये प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने एक राष्ट्रीय वेबीनार में अध्यक्षता करते हुए।
प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा कि आजादी की मूल भावना में सुरक्षा एवं सम्मान के साथ व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण की आधार शिला समाहित होती है। आजादी केवल एक भाव नहीं, वरन् आजादी इस भावना को साकार रूप देने के लिए आदर्श स्रोत भी है।
प्रो राजपूत ने कहा कि जनजातीय आदिवासी हमारी जीवन संस्कृति के मूल में बसने वाले जीवन्त संरक्षक कहे जा सकते हैं। जनजातीय/ आदिवासी महिलाओं की भूमिका संस्कृति संरक्षण और पर्यावरणीय पोषण में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध है।
जनजातीय महिलाओं का जीवन एक ओर जहाँ बेहद शान्त सौम्य एवं करुणामय होता है, वहीं दूसरी ओर कहीं कहीं उनको अनेक व्यावहारिक कठिनाईयोंका सामना भी करना पड़ता है। समस्याओं के समाधान और विकास की मुख्य धारा में स्थापना के लिए महिला सशक्तीकरण की विभिन्न योजनाओं के साथ आदिवासी महिलाओं द्वारा देश के विकास में सहभागिता के लिए ERPA paradigm एक सार्थक आधार सिद्ध हो सकता है। इस पैराडाइम में शिक्षा, प्रशिक्षण, राजनीतिक जागरूकता और सक्रिय सहभागिता के विभिन्न आयामों पर चर्चा की गई है। प्रो राजपूत ने इस नवीन अवधारणा को प्रतिपादित करते हुए बतलाया है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भी जनजातीय महिला सशक्तीकरण की दिशा में सार्थक गति देने के लिए यह पैराडाइम महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। सशक्तीकरण स्थानीय स्तर और वैश्विक स्तर पर दोनों ही आधार पर समानांतर रूप से हो तभी ज्यादा प्रभावी हो सकता है। आदिवासी महिला सशक्तीकरण के लिए ERPA paradigm पर विस्तार से अकादमिक विमर्श किया।
कार्यक्रम में उद्घाटन करते हुए गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति प्रो आलोक चक्रवाल ने जनजातीय एवं वनवासी महिलाओं के विकास के साथ आजादी में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला। विषय प्रवर्तन करते हुए जम्मू विश्वविद्यालय से प्रो आभा चौहान ने संस्कृति संरक्षण और एकीकरण केन्द्रित चर्चा की। विषय विशेषज्ञ के रूप में पूर्व कुलपति प्रो हेमिक्षा राव ने एक्शन सोशियोलाजी आधारित विचार रखे।
विषय विशेषज्ञ के रूप में दिल्ली से डाॅ दुर्गेश त्रिपाठी और लखनऊ से डाॅ अंशु केडिया ने व्याख्यान दिये।
लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय और राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार के प्रारंभ में प्राचार्य डाॅ उदयन मिश्र ने स्वागत वक्तव्य दिया। डाॅ भावना ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए सभी का परिचय दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ भावना ने किया और डाॅ संजय पाण्डे ने आभार व्यक्त किया।
राष्ट्रीय वेबीनार में देश के विभिन्न प्रांतों से प्राध्यापकों, शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थीयों ने सहभागिता की।

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