सागर: स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में तुलसी जयंती सम्पन्न

स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में तुलसी जयंती सम्पन्न
सागर। स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में  गुरूवार प्रखर प्रज्ञा पीठ पर तुलसी जयंती का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ.सुजाता प्राध्यापक, डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, डॉ.किरण आर्य प्राध्यापक, डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, सुश्री जया मिश्रा शोधार्थी एवं कलाधिपति डॉ.अजय तिवारी  की अध्यक्षता में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर रामचरित मानस में शिव विषय पर संगोष्ठी के आयोजन में बोलते हुए सर्वप्रथम जया मिश्रा जी ने राम सीता पार्वती तथा शिव और समुद्र का मानस में वर्णित विषय का वर्णन किया । कुलाधिपति डॉ.अजय तिवारीजी ने बोलते हुए कहा- तुलसी दास जी निश्चित रूप से समन्वय वादी से उनकी आजीवन आराधना ही उनकी धार्मिक गतिशीलता का कारण ही है। जिससे तत्कालीन परिस्थति में भी धर्म की रक्षा होती रही आपने तुलसीदास के जीवन के कई प्रसंगों का वर्णन किया। मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ.किरण आर्य प्राध्यापक, डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ने कहा कि- समन्वय शब्द अपने विस्तृत और व्यापक अर्थ में वह सहयोग अथवा परस्परिक संबंध के निर्वाह का धोतक है जब हम सगुण और निर्गण के समन्वय की बात करते हैं तब हमारा अभिप्राय होता है दोनों विचार धाराओं में  समंजस्य की स्थापना इन दोनों दृष्टियों में शैव और वैश्नव के भ्रंातियों मतभेद का समाधान तुलसीदास ने मानस में विस्तार से किया है। यही उनके साहित्य की सौन्दर्य मूलक विचारधारा है। सारस्वत वक्ता डॉ.सुजाता प्राध्यापक, डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, ने कहा कि-तुलसी लोगदर्शी हैं उन्होंने तत्कालीन जनता के विचारों को और धर्म परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए अपने कवित्त के माध्यम से भक्ति दर्शन का अद्भुत समन्वय रखा। उनके हृदय में दो प्रकार के संघर्ष थे पहला सभी वैश्नव आचार्य शंकर के निर्गुण ब्रहावाद और माया के विरोधी थे दूसरा अद्वैतवाद मध्य द्वेतवाद के विरोधी थे  परंतु तुलसी ने अपने मानस में निर्गुण और सगुण को निराकार ही नहीं किया वरन् शैव और वैश्नव को भी यह बताया कि राम एक ही हैं जातिगत भेद कर्म ज्ञान भक्ति का भेद सभी के समस्या का समाधान कवि तुलसी ने रामचरित मानस में किया। इस अवसर पर कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने ने बताया कि- तुलसी का चरित्र हिन्दी साहित्य की अनमोल निधि है। और मानस घर-घर में बहती पतित पावनी गंगा है। मंच संचालन करते डॉ.सुकदेव बाजपेयी जी ने मानस में आये हुए विभिन्न संस्कृत के दोहों श्लोक आदि से विषय का विस्तार से वर्णन पटल पर रखा। आभार प्रदर्शन डॉ.सुनीता जैन कला संकाय अधिष्ठाता द्वारा दिया गया। डॉ.उमेश मिश्रा ने भी अपने विचार पटल पर रखे। इस अवसर पर डॉ.मनीष मिश्र, डॉ.बी.व्ही तिवारी, डॉ.शैलेन्द्र पाटिल, श्रीमती अनुजा श्रीवास्तव, श्रीमती वन्दना गर्ग, डॉ.आशीष यादव, वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. आर.नाथ, एवं समस्त शैक्षणिक अशैक्षणिक कर्मचारी उपस्थिति रहे। शांतिमंत्र एवं प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
खबर गजेंद्र ठाकुर✍️- 9302303212
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