स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कार्यक्रम सम्पन्न
सागर। स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में दिनांक 21 फरवरी 2022 को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा के अवसर पर स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वाधान एवं भारतीय भाषा मंच के द्वारा ʻʻसंस्कृत भाषा का हिन्दी आदि मातृभाषाओं पर प्रभावʼʼ विषय पर बेवीनार आयोजित किया गया। वेबीनार के शुभारंभ में हैदराबाद से संगोष्ठी में सहभागिता कर रही डॉ. एम.सविता ने संस्कृत में स्वास्ति वाचन किया तदोपरांत विषयाधारित औचित्य को बताने के लिए संस्थापक कुलपति डॉ. अनिल तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि- भाषा का प्रादुर्भाव और उसका प्रभाव कैसे कहां से हो रहा है इस पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है जब हम दूसरी भाषा को देखते हैं तो पता चलता है कि सभी भाषाओं में हमारी संस्कृत भाषा का समन्वय है संस्कृत का साहित्य जो भी पूर्व में लिखा गया जब आधुनिक काल में हम उसे देखते हैं तो हमें वही सब स्पष्ट दिखता है और हमारा आधुनिक विज्ञान भी उसी पुरातन का भी वर्णन करता है।
कुलाधिपति डॉ. अजय तिवारी ने कहा कि- माँ, मातृभाषा और मातृभूमि को हम कभी अलग नहीं कर सकते जिस तरह हिमालय से निकलती हुए नदियों का समापन समुद्र में होता है उसी प्रकार संस्कृत में सभी का उद्गम देखा जा सकता है हमारे व्यक्तित्व का परिचय हमारी भाषा से ही मिलता है सभी भाषाओं में धातुओं का प्रयोग संस्कृत भाषा के द्वारा ही दिया है।
मुख्य वक्ता पं. बाबूलाल द्विवेदी (मधुप), ललितपुर (उ.प्र.) ने अपने वक्तव्य में कहा कि- हम पढ़ते हैं या जनने के लिए पढ़ाते हैं जानकर मानना करण निरपेक्ष है साथ ही पाठ्कर्म नहीं पाठ्यक्रम देखना चाहिए जो हम पढ़ा रहे हैं उसका उपयोग जीवन में कहां है क्योंकि भारतीय संस्कृति में यह कहीं नहीं बताया गया कि हम षिक्षा से अलग हैं हमें अपनी पाठ्यचर्या पर विषिष्टता होनी चाहिए हम देखे कोई भी शब्दकोष हमारी संस्कृत भाषा जैसा धनी नहीं है।
डॉ. श्रीनाथधर द्विवेदी,व्याकरण विभाग, भाषाओं में प्रभाव केन्द्रीय संस्कृत विष्वविद्यालय कागड़ा हिमाचलप्रदेष ने कहा – संस्कृत साहित्य में जितनी रचनायें हुई उतनी अन्यत्र नहीं संस्कृत सभी भाषा का आधार है वैष्वीकरण के वर्तमान युग में समाज अपनी मातृभाषा के महत्व को भूलता जा रहा है लेकिन राष्ट्र की संस्कृति संप्रभुता तथा स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए आवष्यक है कि हम अपनी मातृभाषा को अपने बौद्धिक विकास का आधार बनायें।
डॉ. कुमार सिंह, असि.प्रो. संस्कृत विभाग एवं समन्वयक चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, ने कहा कि- ज्ञानार्जन बौद्धिक विकास का आवश्यक पक्ष है मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान का अर्जन जितनी सरलता से हो सकता है उतना अन्य नहीं क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और भाषा एक सामाजिक क्रिया, भाषा के द्वारा हम अपनी व्यक्तित्व और समाज को परिभाषित करते हैं शिक्षा को यदि सार्वजनिक बनाना है तो मातृभाषा में ही होना चाहिए। आभार ज्ञापन प्रभारी कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने द्वारा किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिवार के शैक्षिक अशैक्षणिक स्टॉफ उपस्थित रहा।
स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में होगी जूट डिजाइनिंग की वर्कशॉप आज से
छात्राओं में आत्मनिर्भर/स्वावलंबी विचारधारा विस्तार से शैक्षिक जगत के माध्यम से आगे बढें़, इसे दृष्टिगत करते हुए स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर के फैशन विभाग द्वारा वर्कशॉप दिनाँक 22 एवं 23 फरवरी 2022 को होने जा रही है। जिसमें मुख्य वक्ता यथा- डॉ. प्रतिभा तिवारी संयोजक आत्मनिर्भर सागर अभियान, श्री मलय चंदन चक्रवर्ती जूट आयुक्त, भारत सरकार, श्रीमती स्वर्णा मोदी पिडीलाइट एक्सपर्ट। यह जानकारी फैशन विभाग की विभागाध्यक्ष श्रीमती शैलबाला बैरागी एवं श्रीमती ज्योति गौतम के द्वारा दी गई इस अवसर पर विश्वविद्यालय छात्राओं के अतिरिक्त अन्य प्रांतों के प्रतिभागी भी सम्मिलित हो रहे हैं।
गजेंद्र ठाकुर- ✍️9302303212